पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/१९५

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१८६ भारन्दुते हरिश्चन्द्र एक बार किसी सज्जन ने यह प्रश्न उठाया कि नीबू के रस की खटास का असर हड्डी पर नहीं होता पर न मालूम क्यों उससे दाँत, जो हड्डी ही हैं, कटकिटा जाते हैं। अन्य उपस्थित लोगों के इस प्रश्न के न हल कर सकने पर भारतेन्दु जी ने उसका इस प्रकार समाधान किया कि दाँत जन्म के अनंतर दूध पीते पीते निकलते हैं अर्थात् वे दूध के बने हैं और इस कारण कि नीबू का रस दूध का शत्रु है, इसके लगने से दाँत भी खट्टे हो जाते हैं। बदन पाठक प्रसिद्ध रामायणी हो गये हैं। एक बार रामायण का अर्थ करते समय इन्होंने कहा कि गोस्वामी जी यह अच्छी तरह से जानते थे कि हमारे बाद रामायण का ठीक ठीक अर्थ करने वाला केवल एक बंदन पाठक ही होगा और ऐसा उन्होंने बालकांड में गुप्त रूप से लिखा है । भारतेन्दु जी भी वहाँ उपस्थित थे और पाठक जी की यह गर्वोक्ति सुन रहे थे। कुछ देर बाद उन्होंने पाठक जी से अपनी तीन शंकाओं का समाधान चाहा। वे तीन शंकाएँ इस प्रकार हैं : १-सरोवर के सोपान बराबर होते हैं, पर रामचरित मानस के कुछ बड़े और कुछ बहुत छोटे हैं। २-मानस भर में श्री शत्रुघ्न जी के मुख से एक भी उक्ति क्यों नहीं कहलाई गई ? ३-जिस समय श्री रामचन्द्र जी सीताहरण हो जाने पर बन में बिलाप कर रहे थे, उसी समय सत्त्री जी ने सीता रूप धारण कर उनकी परीक्षा ली थी। इस पर महादेवजी कैलाश लौट आए और 'लागि समाधि अपारा। बीते संवत सहस सतासी। तजी समाधि शंभु अविनाशी ॥' इसी बीच कुछ महीने बाद सोपान बहुत