पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/१८२

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१७२ भारतेंदु हरिश्चन्द्र हिन्दी व्याकरण के यह अच्छे ज्ञाता थे। प्राचीन लिपियाँ पढ़ने में भी यह अधिक कुशल थे । भारतेन्दु जी ने यह विद्या इन्हीं के सत्संग से सीखी थी और इन्हें साथ लेकर पाँच-छः मास में काशी के मंदिरों, घाटों आदि के लेख पढ़े और संग्रह किये थे। मिस्टर फ्रेडरिक पिन्कॉट का जन्म सन् १८३६ ई० में हुआ था। इन्होंने भारतीय भाषाओं में सबसे पहिले संस्कृत बाद में उर्दू, गुजराती, बँगला, तामिल, तैलंगी, मलायलम और कनाडी भाषाओं के सीखने पर हिन्दी का अध्ययन किया था पर इसकी ओर इनका ऐसा अनुराग बढ़ा कि वे इस भाषा के पाठक, लेखक तथा कवि तक हो गए। इनकी मृत्यु, फरवरी सन् १८६८ ई० में हुई । यह उत्तम हिन्दी पुस्तकों की समालोचना अंग्रेजी पत्रों में देते थे। भारत के. यह बड़े शुभचिंतक थे और अनेक भारतीय विद्वानों से इनकी मित्रता थी। भारतेन्दु जी से इनका बहुत स्नेह था और उनसे बराबर पत्र व्यवहार रहा करता था। भारतेन्दु जी के स्वर्गवास होने पर यह भारतवर्ष में आए थे और यहीं लखनऊ में इनका देहान्त हुआ था। इन्होंने भारतेन्दु जी की प्रशंसा में जो एक छंद बना- कर उनके पास भेजा था वह यहाँ पर प्रकाशित किया जाता है "जिससे हमारे देशीय लोग देखकर लज्जा करें कि अंग्रेज़ होकर लोग हिन्दी भाषा में इतना अनुराग रखते और इस देश लोग प्राय: इस भाषां से विरक्त रहते हैं। वैस वंस अवतंस, श्री बाबू हरिचन्द जू । छीर नीर कलहंस, टंक उत्तर लिख देव मोहि ।। पर उपकार में उदार अवनी में एक भाषत अनेक यह राजा हरिचन्द है। विभव बड़ाई बपु बसन बिलास लखि, कहत यहाँ के लोग बाबू हरिचन्द है। ,