पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/१३२

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पूर्वज-गण १२१ 'घर के शुभचिंतकों, ने इन्हें समझाया तथा काशिराज तक खबर पहुँचाई जिसपर उन्होंने इनसे कहा कि 'बबुआ' घर को देखकर काम करो । इन्होंने निर्भय चित्त से उत्तर दिया कि “हुजूर इस धन ने मेरे पर्वजों को खाया है, अब मैं इसे खाऊँगा।' महाराज यह सुन कर चुप रह गये । उन्ही 'शुभचिंतकों' की कृपा से २१ मार्च सन् १८७० ई० को दोनों भाइयों में तकसीमनामा लिखा गया और दूसरे ही दिन रजिस्ट्री भी हो गई। इसके लिखने के समय भारतेन्दु जी उन्नीस वर्ष ६ महीने के तथा बा० गोकुलचन्द्र अट्ठारह वर्ष तीन महीने के थे। तकसीमनामा लिखने के अवश्य कुछ पहिले ही सम्पत्ति का तकसीम हुआ होगा। भारतेन्दु जी ने, अब प्रश्न उठता है कि, कब पैतृक संपत्ति का प्रबन्ध हाथ में लिया था। बालिग होने अर्थात् अट्ठारह वर्ष पूरा होने के पहिले या बाद । आश्चर्य है कि जिन विमाता तथा प्रबंधक रायनृसिंहदास जी इनके पंद्रह वर्ष के होजाने पर इनके आय-व्यय के लिये दो चार रुपये नहीं दे सकते थे उन लोगों ने इनको कुल स्टेट बालिग होने के पहले कैसे दे दिया होगा। अस्तु, मतलब यही है कि बालिग होने के अनन्तर साल सवा साल कुल प्रबन्ध अकेले इनके हाथ में रहा होगा । पर नहीं, जैसा लिखा जा चुका है, कोठी का प्रबंध बा० गोकुलचन्द्र की नाबालगी तक दूसरों के हाथ में था, अर्थात् दो तीन महीने में इन्होंने इतना अपव्यय कर डाला कि बा० गोकुलचन्द बालिग़ होते ही एक दिन जब यह खजाना खोलने जारहे थे तब उसके द्वार पर लगे हुये ताले पर जा बैठे और कहा कि 'आप ने अपने भाग का कुल धन खर्च कर डाला है तथा अब जो कुछ आप इसमें से लेंगे हमारे हिस्से का लेंगे।' भारतेन्दु जी यह सुनते ही वहाँ से हट गये और उसी समय से आपस के बटवारे का सूत्रपात हुआ।