पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/१२

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उसके लिए तकाजा किया और स्पष्ट कह देने पर उन्हें कुछ ऐसा करना नागवार मालूम हुआ। सेवक कवि का पद्यमय मुद्राराक्षस उक्त पुस्तकालय में मिल चुका था और उसे भारतेन्दु जी के मुद्राराक्षस से मिलान करने के लिए मैंने मँगवाया। इस पर सूचना मिली कि हस्तलिखित प्रतियों के घर के बाहर जाने का नियम नहीं है इसलिये यहीं आकर देख सकते हैं । सत्य ही 'घर फूंकने वाले' के-दौहित्र को इससे अधिक आशा रखनी ही नहीं चाहिए थी। हाँ जो कुछ सहायता इसके पहिले मिल चुकी थी, क्योंकि इसके बाद कभी मैंने एक चिट के लिए भी नहीं लिखा है, उसके लिए मैं उनकी सज्जनता का सर्वदा आभारी रहूँगा। इसके अनंतर ईश्वर की कृपा से बहुत से कागजात, पत्र- पत्रिकाएँ आदि आप से आप मिलती गई, जिनसे इस जीवनी के लिखने में बहुत सहायता मिली। कुछ कागजात की नक़ल कच- हरी से ली गई। दैवात् किस प्रकार सहायता पहुँचती रहती है, उसका एक उदाहरण यह है कि एक बार एक ब्राह्मण देवता अपने मकान का कागज़ कुछ सम्मति लेने के लिये मेरे पास लाए, जिससे माधवी के विषय में बहुत कुछ बात हो गया और इसका उल्लेख पुस्तक में हो भी चुका है। सबसे अधिक मैं इस कार्य में अपने मित्र पं० केदारनाथ पाठक का आभारी हूँ जिन्होंने कई प्रकार से मेरी सहायता की है। बहुत सी पत्र पत्रिकाएँ जिनमें कुछ सामग्री मिल सकती थी इन्होंने एकत्र को और किस पुस्तक में कौन उपयोगी अंश प्राप्त हो सकता है उसकी सूचना बराबर देते रहे। कितनो पुस्तकें इधर उधर से माँग लाए जिनसे कुछ भी नई बातों का पता लग सकता था। तात्पर्य यह कि इस ग्रंथ के लिये सामग्री जुटाने में