पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/११

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कुछ लाभ पहुँच सकता है। मैं ऐसा करना उचित नहीं समझत! और इसलिये इस विषय पर कुछ भी नहीं लिखता। भारतेन्दु जी का नाम ही यदि इसके लिये पर्याप्त न समझा जाय तो पृष्ठों गुण-वर्णन भी काफी नहीं हो सकता। यहाँ शृंगार सप्तशति के रचयिता पं० परमानन्द जी का केवल एक श्लोक उद्धृत कर देना पर्याप्त है- हरिश्चन्द्रस्याऽभूदुविबुधरघुनाथश्चिरसुहृद् हरिश्चन्द्रस्येव प्रकटित सुधः पूर्ति सुखकृत् । महीयस्योन्मीमत्कुवलयकराकारविभया महीयस्था जज्ञे शरदिवसका शशिसखी । इस कार्य में मुझे बहुत सज्जनों से सहायता मिली है और उन लोगों का मैं ह्रदय से अनुगृहीत हूँ। वा० राधाकृष्णदास जो के पितृव्य बा० पुरुषोत्तमदास जी, रायकृष्णदास जी, बा० जय. शंकरप्रसाद जी, बा० गोकुलदास जी जयपुरी, बा० जगन्नाथदास जी बा० ए० 'रत्नाकर', पं० गणेशदत्त त्रिपाठी आदि सज्जनों ने भारतेन्दु जी के विषय में कितनी ज्ञातव्य बातें बतलाई हैं । भार- तेन्डु जी का पुस्तकालय बिलकुल अस्तव्यस्त था, और वहाँ कुछ दिन बराबर जाकर उन सब को ठीक कर अपने लिये उपयोगी पुस्तकों का छाँटना तथा फिर उन्हें वहीं ,पढ़ कर अपने मतलब की बातों को नोट करना सम्भव नहीं था, इसलिये उनसे विशेष लाभ नहीं उठा सका। कवि-वचन-सुधा आदि की फाइलें भो कटी-फटी अपूर्ण हैं। पहिले कभी कभी एक या दो पुस्तके छाँट कर घर ले आता था और उनसे नोट लेकर पुनः लौटा देता था। एक बार रफ काराज पर लिखे गए बा• गोपालचन्द्र जी के साठ पैंसठ पद मिले जिनकी मैंने एक नई कापी तैयार करा ली। इस कार्य में कुछ देर होने पर मेरे ममेरे भाइयों में से एक साहव ने 9