पूर्वज-गण इसी प्रकार दक्षिण ही के एक धनुर्धर बेंकट सुप्पैयाचार्य काशी आए थे। भारतेन्दु जी ने इनका कौशल देखने के लिए रामकटोरा वाले अपने बाग में सभा की थी। इसमें क्वीन्स कालेज के प्रिंसिपल तथा वाल्मीकीय रामायण के अनुवादक मिस्टर ग्रिफिथ तथा अन्य यूरोपीय और देशीय विद्वान तथा सज्जनगण उपस्थित थे । इन धनुर्धर ने अपनी आँखों पर पट्टी बाँध कर एक दूसरे व्यक्ति की आँखों पर तिनका बाँध कर तथा उस पर मोम से चाँदी की दुअन्नी चिपकाकर केवल शब्द पर एक तीक्ष्ण तीर ऐसा मारा कि दुअन्नी उड़ गई और तिनका ज्यों का त्यों रह गया । दूसरा कौशल यह था कि जिस प्रकार जयद्रथ के शिर को अर्जुन ने तीरों ही के द्वारा उड़ाकर उसके पिता के गोद में गिरा दिया था, उसी प्रकार इन्होंने एक नारंगी को तीर ही मारकर बाहर चालीस पचास गज दूर खड़े एक मनुष्य के हाथ में गिरा दिया। तीसरा कौशल यह था कि कुएँ में गिरती हुई अंगूठी को बीच ही में से तीर मार कर बाहर निकाल लिया था। इस प्रकार के कई आश्चर्य-जनक दृश्य इन्होंने दिखलाए, जिन्हें देखकर यूरोपीय विद्वानों ने भी कहा कि इनके कृत्य महाभारत की कथित धनुर्विधा के कौशलों का सत्य होना साबित कर रहे हैं। बाबा तुलसीदास नामक एक पहलवान जब काशी में आए तब उनकी शक्ति के खेल दिखलाने को नार्मल स्कूल में सभा कराया था। हाथी बाँधने का सूत का मोटा रस्सा यह पैर के अँगूठे में बाँध कर तोड़ डालते थे। लोहे के मोटे से मोटे खम्भे को यह मोमबत्ती की तरह दोहरा देते थे । यह दो कुर्सियों पर सिर और पैर रख कर लेट जाते और अधर में स्थित छाती पर छ इंच मोटा पत्थर तुड़वा लेते थे। जटायुक्त नारियल सिर
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