पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/१००

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पद भारतेंदु हरिश्चन्द्र भारतेन्दु जी का नानिहाल शिवाले में था। इनका जन्म भी वहीं हुआ था और यह वहाँ प्रायः जाया करते थे। बा० जगन्नाथ दास जी 'रत्नाकर' के पिता बा० पुरुषोत्तम दास, बा० केशोराम और गोस्वामी रामप्रसाद उदासी से इनकी घनिष्ठ मित्रता अंत तक रही। जब शिवाले जाते तब इन्ही में से किसी के यहाँ जमघटा बैठता था। एक बार यह बहुत तड़के ही अपने ननिहाल से उठ कर "रत्नाकर जी' के गृह पर आए । द्वार उस समय वन्द था, इससे आप बाहर ही खड़े होकर 'हर गंगा भाई हरगंगा' का गाना कुछ बनाकर गाने लगे। बा० पुरुषोत्तम दास जी ने यह सुन कर तथा आवाज न पहिचान कर नौकर से सबेरे के याचक को एक पैसा देने को भेजा । उसने द्वार खोल कर जो इन्हें देखा तो उलटे पैर हँसता हुआ लौट आया और कहा कि बाबू साहेब हैं। दक्षिण से एक सुप्रसिद्ध-वैयाकरणी आए हुए थे जो किसी भाषा के किसी शब्द का मिलता जुलता अर्थ व्याकरण के सूत्रों की मार से निकाल लिया करते थे। यह राजा शिवप्रसाद के यहाँ उतरे हुए थे और वेही उन्हें काशीराज के दरबार में लिवा गए थे। दूसरे दिन भारतेन्दु जी के बहाँ पहुँचने पर काशीराज ने उक्त विद्वान की प्रशंसा की तब इन्होने कहा कि मैं भी कुछ परीक्षा कर लूँ तब इस विषय में विशेष कह सकता हूँ। महाराज ने सभा का निश्चय किया और उस दिन उक्त विद्वान राजा शिवप्रसाद जी के साथ आए। भारतेन्दु जी भी दरबार में उप- स्थित थे और महाराज की आज्ञा मिलने पर काशी के गुण्डों की बोली में एक गाली 'झांपोक' जोर से कह डाला। इस पर राजा साहब ने काशीराज से प्रार्थना को कि 'हुजूर देखिए यह ऐसे विद्वान को गाली दे रहे हैं।' इन्होंने तुरन्त कहा कि 'हुजूर देखें राजा साहब अर्थ बतला रहे हैं। राजा साहब चुप हो गए और