पृष्ठ:भारतेन्दु बाबू हरिश्चंद्र का जीवन चरित्र.djvu/८७

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्र का जीवन चरित्र (६६) कहेंगे। और न कभी ऐसा बाद अवलम्बन करेंगे जिस्से आस्तिकता की हानि हो। १५ चिन्ह की भॉति तुलसी की माला और कोई पीत वस्त्र धारण करेंगे। १६ यदि ऊपर लिखे नियमो को हम भग करगे तो जो अपराध बन पड़ेगा हम समाज के सामने कहेंगे और उसकी क्षमा चाहेंगे और उसकी घणा करेंगे। मिती भाद्रपद शुक्ल ११ सवत १९३० साक्षी हरिश्चद्र प० वेचन राम तिवारी हस्ताक्षर तदीय नामाङ्कित अनन्य प० ब्रह्मदत्त वीर वैष्णव चिन्तामणि यद्यपि मैंने लिख दिया है तथापि दामोदर शर्मा इसकी लाज तुम्हीं को है शुकदेव (निज कल्पित अक्षर मे) नारायण राव मुहर | तदसीय। माणिक्यलाल जोशी शर्मा समाज - - - . - - - लोक-हितकर सभा आदि इस समाज के अतिरिक्त "हिदी डिबेटिङ्ग क्लब", "यन मेन्स एसोसिएशन", "काशी सार्वजनिक सभा", "वैश्य हितैषिणी सभा", अदालतो मे हिन्दी जारी कराने के लिये सभाएँ प्रादि कितनी ही सभा सोसाइटिएँ इन्होने स्थापित की थीं कि डिनका अब पूरा पूरा पता तक नहीं लगता। इन अपनी सभा सोसाइटिनो के अतिरिक्त जितने ही देशहितकर तथा लोक- हितकर कार्य होते थे सभो मे ये मुख्य सहायक रहते थे। "बनारस इन्स्टिट्यट" के ये सस्थापको मे से थे । इस 'इन्स्टिटयट' मे इनसे और राजा शिवप्रसाद से प्राय चोट चलती थी। "कारमाइकल लाइब्रेरी" तथा "बाल-सरस्वती-भवन" के सस्थापन मे प्रधान सहायक थे, हजारो ही ग्रन्थ दिए थे। "काशीपत्रिका", "भारतमित्र", "मित्रविलास", "प्रायमित्र" आदि यावत् प्राचीन हिन्दी पत्रो को प्रोत्साहन तथा लेखादि सहायता द्वारा जन्म देने के ये प्रधान कारण थे। खानदेश