पृष्ठ:भारतेन्दु बाबू हरिश्चंद्र का जीवन चरित्र.djvu/८५

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भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्र का जीवन चरित्र (६७) श्रम (अच्छे विरक्त थे) ७ प्रयागदत्त (सच्चरित्र ब्राह्मण थे) ८ शुकदेव मिश्र (श्री गोपाललाल जी के मन्दिर के कीर्तनिया) ६ हरीराम (प्रसिद्ध वीणकार बाजपेई जी) १० व्यास गणेशराम जी (श्री मद्भागवत के अच्छे वक्ता थे, बडे उत्साही थे, भागवत सभा, कान्यकुब्ज पाठशाला के संस्थापक थे) ११ कन्हैया- लाल जो (बाबू गोपालचन्द्र जी के सभासद) १२ शाह कुन्दनलाल जी (श्री वृन्दाबन के प्रसिद्ध कवि और महानुभाव) १३ मिश्र रामदास (?) १४ बाबा जी ( १ ) १५ बिट्ठल भट्टजी (बडे विद्वान और भावुक वक्ता थे) १६ मोरजी (प्रसिद्ध तीर्थोद्धारक गोरजी दीक्षित) १७ रामचन्द्र पत (?) १८ रघुनाथ जी (जम्बू राजगुरु बडे विद्वान और गुणी थे) १६ शीतल जी (काशी गवर्मेण्ट कालिज के सुप्रसिद्ध अध्यापक, पण्डित मण्डली में मुख्य और संस्कृत हिन्दी के कवि) २० बेचनजी (गवर्मेण्ट कालिज के प्रधानाध्यापक, पण्डित मात्र इन्हें गुरुवत् मानते थे और अग्रपूजा इनकी होती थी, महान् विद्वान और कवि थे) २१ वीसूजी (काशी के प्रसिद्ध रईस, परम वैष्णव और सत्सङ्गी) २२ चिन्ता- मणि (कवि-वचन-सुधा के सम्पादक) २३ राघवाचार्य (बडे गुणी थे) २४ ब्रह्मदत्त (परम विरक्त ब्राह्मण थे) २५ माणिक्यलाल (अब डिप्टी कलकटर हैं) २६ रामायण शरण जी (बडे महानुभाव थे, समन तुलसीकृत रामायण कठ थी, पचासो चेले लिए रामायण गाते फिरते थे, बडे सुकठ थे, काशिराज बडा आदर करते थे, काशी के प्रसिद्ध महात्मानो मे थे) २७ गोपालदास २८ वृन्दाबन जी २६ बिहारी लाल जी ३० शाह फुन्दन लाल जी (शाह कुन्दन लाल जी के भाई, बडे महानुभाव थे) ३१ पण्डित राधाकृष्ण लाहौर (पञ्जाब केशरी महा- राज रजीत सिंह के गुरु पण्डित मधुसूदन के पौत्र, लाहौर कालिज के चीफ पण्डित) ३२ ठाकुर गिरिप्रसाद सिंह (बेसवां के राजा, बडे विद्वान और वैष्णव थे) ३३ श्री शालिग्रामदास जी लाहौर (पञ्जाब मे प्रसिद्ध महात्मा हुए हैं, सुकवि थे) ३४ श्री श्रीनिवासदास लाहौर ३५ परमेश्वरी दत्त जी (श्रीमद्भागवत के प्रसिद्ध वक्ता थे) ३६ बाबू हरिकृष्णदास (श्री गिरिधर चरितामृत आदि ग्रन्थों के कर्ता) ३७ श्री मोहन जी नागर ३८ श्री बलवन्त राव जोशी ३६ व्रजचन्द्र (सुकवि हैं) ४० छोटू लाल (हेड मास्टर हरिश्चन्द्र स्कूल) ४१ रामूजी। इसमे बिना आज्ञा कोई नहीं आने पाता था। काशी के प्रसिद्ध जज पण्डित हीरानन्द चौबे जी के वशधर पण्डित लोकनाथ जी ने जो स्वय बडे कवि थे नाथ नाम रखते थे टिकट मिलने के लिये यह दोहा लिखा था--