पृष्ठ:भारतेन्दु बाबू हरिश्चंद्र का जीवन चरित्र.djvu/५८

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भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्र का जीवन चरित्न (३६) रात दिन बराबर चले पाए और पाकर श्रीचरणदशन से अपने को तृप्त किया । इस यात्रा मे मेरी माता साथ थीं। ग्रन्थ इनका सबसे पहिला प्रन्थ वाल्मीकि रामायण है, जिसका वर्णन ऊपर हो चुका है। परन्तु खेद के साथ कहना पडता है कि इनके ग्रन्थ ऐसे अस्त व्यस्त हो गए हैं कि जिनका कुछ पता ही नहीं लगता। केवल पूज्य भारतेदु जी के इस दोहे से - "जिन श्रीगिरिधरदास कवि रचे ग्रन्थ चालीस । ता सुत श्रीहरिचन्द को को न नवावै सीस"॥ इतना पता लगता है कि उन्होने चालीस ग्रन्थ बनाए थे, परन्तु उनके नाम या अस्तित्व का पता नहीं लगता। पूज्य भारतेन्दु जी ने अपनी याददाश्त मे इतने ग्रन्थो के नाम लिखे हैं-- १ वाल्मीकि रामायण (सातो काण्ड छन्द मे अनुवाद)। २ गभसहिता। ३ भाषा एकादशी को चौवीसो कथा । ४ एकादशी की कथा । ५ छन्दाणव । ६ मत्स्यकथामृत। ७ कच्छपकथामृत। ८ नृसिंहकथामृत । ९ बावन- कथामृत । १० परशुरामकथामृत । ११ रामकथामृत । १२ बलरामकथामृत । १३ बुद्धकथामृत । १४ कल्किकथामृत । १५ भाषा व्याकरण । १६ नीति । १७ जरासन्धबध महाकाव्य । १८ नहुषनाटक । १९ भारतीभूषण। २० अद्भुत रामायण। २१ लक्ष्मी नखसिख । २२ रसरत्नाकर । २३ वार्ता सस्कृत । २४ ककारादि सहस्त्रनाम। २५ गयायात्रा। २६ गयाष्टक। २७ द्वादश दल-कमल । २८ कीर्तन की पुस्तक "स्तुति पश्चाशिका" कवि सरदार कृत टीका का वणन ऊपर हो चुका है। इसके अतिरिक्त निम्नलिखित सस्कृत स्तोत्रो पर सस्कृत टीका कवि लक्ष्मीराम कृत मुझे मिली हैं- १ सङ्कर्षणाष्टक । २ दनुजारिस्तोत्र । ३ वाराह स्तोत्र । ४ शिव स्तोत्र । ५ श्री गोपाल स्तोत्र । ६ भगवत्स्तोत्र । ७ श्री रामस्तोत्र । ८ श्री राधास्तोत्र । ९ रामाष्टक। १० कालियकालाष्टक । इनके अन्यों