पृष्ठ:भारतेन्दु बाबू हरिश्चंद्र का जीवन चरित्र.djvu/५६

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भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्र का जीवन चरित्न (३७) मे से किसी महात्मा से इन्होने कहा कि "भगवान श्री कृष्णचन्द्र में भगवान श्री रामचन्द्र से दो कला अधिक थीं, अर्थात् इनमे सोलहो कला थीं ।" उक्त महानु- भाव ने उत्तर दिया “जी हॉ, चोरी और जारी"। कई महात्मानो की कथा भी धूमधाम से हुई थी। बुढवामगल यह हम ऊपर लिख पाए हैं कि बाबू हषचन्द्र के समय से बुढवामङ्गल का कच्छा इनके यहाँ बहुत तयारी के साथ पटता था और बिरादरी मे नेवता फिरता था, तथा गुलाबी पगडी दुपट्टा पहिर कर यावत् बिरादरी और नौकर आदि कच्छे पर आते थे। वैसी ही तयारी से यह मेला बाबू गोपालचन्द्र के समय मे भी होता था। एक वर्ष कच्छे के साथ के कटर पर सध्या करने के लिये बाबू साहब पाए थे और कटर के भीतर सध्या करते थे। छत पर और सब लोग बैठ थे। सध्या करके ऊपर आए, सब लोग ताजीम के लिये खडे हो गए। इस हलचल मे नाव उलट गई और सब लोग अथाह जल मे डूब गए। उस समय उसी नाव पर एक नौकर की गोद मे बडी कन्या मुकुन्दी बीबी भी थीं। यह दुघटना चौसट्ठी घाट पर हुई थी। इस घाट पर चतु षष्टि देवी का मन्दिर है और होली के दूसरे दिन यहाँ धरहडी को बहुत बडा मेला लगता है ।। स घाट पर अथाह जल है और रामनगर के किले से टकराकर पानी यहाँ प्राकर लगता है, इससे यहाँ पानी का बडा बेग रहता है, उस पर इनको तैरने भी नहीं पाता था-और भी आपत्ति यह कि लडके साथ मे । बाहि भगवन, उस समय क्या बीती होगी। परन्तु रक्षा करने वाले की बॉह बडी लम्बी हैं। उसने सभी को ऐसा उबारा कि प्राणियो की कौन कहे, किसी पदार्थ को भी हानि न होने पाई। बाबू गोपालचन्द्र मेरे पिता बाबू कल्याण- दास से लिपट गए। यह बडे घबराए कि अब दोनो यहीं रहे। परन्तु साहस करके इन्होने उनको अपने शरीर से छुडाकर ऊपर की ओर लोकाया। सौभाग्य- वश नौकाएँ वहाँ पहुँच गई थीं, लोगो ने हाथोहाथ उठा लिया। मुकुन्दी बीबी अपनी सोने की सिकरी को हाथ से पकडे नौकर के गले से चिपटी रहीं। निदान सब लोग निकल आए, यहाँ तक कि जितने पदार्थ डूबे थे वे सब भी निकल पाए।