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( ३० ) भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्र का जीवन चरित्र गवनर बङ्गाल ने शोक प्रकाश किया और वृद्ध पिता राय राधाकृष्ण को आश्वासन देने के लिये स्वय पाए थे। राय खिरोधर लाल को श्री मती पार्वती देवी के अतिरिक्त और कोई सन्तान न थी इस लिये उनकी स्त्री श्री मती नन्ही देवी ने दोहित्र बाबू गोकुलचन्द्र को अपने पास रक्खा था और उन्ही को अपनी सम्पत्ति का उत्तराधिकारी किया। श्रीमती पावती देवी के मरने पर इनका दूसरा विवाह उसी वष फाल्गुण सम्वत १९१४ मे बाबू रामनारायण की कन्या मोहन बीबी से हुआ। मोहन बीबी से इन्हें दो सन्तान हुए। प्रथम पुत्र हुमा । नाम उसका श्याम चन्द्र रक्खा गया था, परन्तु तीन ही महीने का होकर मर गया। द्वितीय कन्या हुई जो कि प्रसूतिगृह मे ही मर गई ।मोहन बीबी की मृत्यु सम्वत १९३८ के माघ कृष्ण १० को हुई। बाबू हर्षचन्द्र का परलोकवास ४२ वष की अवस्था मे सम्वत १९०१ मिती वैसाख बदी १३, को हुआ। बाबू गोपालचन्द्र की अवस्था उस समय केवल ११ वष की ही थी। कविता की कमनीय कान्ति का अनुराग बाबू गोपालचन्द्र को बाल्यावस्था ही से था। इसी से आप लोग समझ लीजिए कि १३ ही वर्ष की अवस्था में सम्वत १९०३ मे वृहत् बात्मीकीय रामायण का भाषा छन्दोवद्ध अनुवाद इन्होने किया, परन्तु दुर्भाग्यवश अब इस अनुवाद का पता कहीं नहीं लगता है। केवल अस्तित्व के प्रमाण के लिये ही मानो "बाला बोधिनी" मे इसका एक अश छपा है। हिन्दी और सस्कृत की कविता इनकी प्रसिद्ध है। परन्तु कभी कभी उर्दू की भी कविता करते थे। उन्होने एक "गजल" मे लिखा है। "दास गिरिधर तुम फकत हिन्दी पढे थे खूबसी, किस लिये उर्दू के शायर मे गिने जाने लगे।" शिक्षा और चरित्र पाठक स्वय विचार सकते हैं कि इतने बडे धनिक के एक मात्र पुत्र सन्तान का लालन पालन कितने लाड चाव से हुआ होगा, और हमारे देश की स्थिति के अनुसार इनकी सी अवस्था के बालक, जिनके पिता भी बचपन ही में परलोकगामी