पृष्ठ:भारतेन्दु बाबू हरिश्चंद्र का जीवन चरित्र.djvu/३५

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( १६) भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्र का जीवन चरित्र उनके साथ डङ्का, निशान, सन्तरी का पहरा, माही मरातिब नक्कीब प्रादि रियासत के पूरे ठाव थे। ___राय रत्नचन्द बहादुर ने रामकटोरेवाले बान में प्राकर निवास किया। वहाँ इनके श्रीठाकुर जी, जिनका नाम श्री लाल जी है, अब तक वतमान है। यहीं बाग काशी जी मे इस बश का पहिला स्थान समझा जाता है तथा अब तक प्रत्येक विवाह और पुत्रोत्सव के पीछे डीह डीहवार (गृह देवता) की पूजा यहीं होती है। प्रतीति होता है कि ये उस समय तक श्रीसम्प्रदाय के अनुयायी थे, क्योकि ठाकुर जी की मूर्ति तथा सामने गरुडस्तम्भ और मन्दिर के ऊपर चक्रस्थापन इसका प्रत्यक्ष प्रमाण प्रस्तुत है। इस वश मे "नकीब" की प्रथा बाबू गोपालचन्द तक थी। बाबू फतहचन्द का व्यवहार देन लेन का था। बाबू हर्षचन्द्र बाबू फतहचन्द के एकमात्र पुत्र बाबू हषचन्द हुए। ये काशी में काले हषचन्द के नाम से प्रसिद्ध हैं और इनके प्रशसनीय गुणानुवाद अब तक साधारण जन तथा स्त्रिएँ ग्राम्यगीतो मे गाया करती हैं। बाबू हर्षचन्द के बाल्यकाल ही में इनके पूजनीय पिता ने परलोक प्राप्त किया। लोगो ने इनके उमङ्ग का अच्छा अवसर उपस्थित देख इन्हें राय रत्नचन्द बहादुर से लडा दिया। परन्तु ज्यो ही इन्हो ने धूर्तों को धूतता समक्षी, चट पितृव्य के पावो पर जा गिरे और अपराध क्षमा कराकर प्रेमपल्लव को प्रवधित किया। राय रत्नचन्द्र के बेटे बाबू रामचन्द्र निस्सन्तान मरे । इससे उनकी भी सम्पूर्ण सम्पत्ति के उत्तराधिकारी ये ही हुए। ___ इनका सम्मान काशी मे कैसा था इसी से समझ लीजिए कि, सन् १८४२ मे गवर्मेण्ट ने प्राज्ञा दी कि काशी की प्राचीन तौल की पन्सेरियाँ उठा कर अग्रेजी पन्सेरी जारी हो । काशी के लोग बिगड़ गए और हरताल कर दी, तीन दिन तक हरताल रही, अन्त में उस समय के प्रसिद्ध कमिश्नर गबिन्स साहब ने बाबू हर्षचन्द्र (सरपञ्च), बाबू जानकीदास और बाबू हरीदास साहू को पञ्च माना।