पृष्ठ:भारतेन्दु बाबू हरिश्चंद्र का जीवन चरित्र.djvu/३४

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भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्र का जीवन चरित्न (१५) इसी एक वश का पता लगता है। और उसी समय से इनके यहाँ विवाहादि शुभ कम्मों, तथा शोकसमय शोकसम्मिलन तथा पगडी बंधवाने के हेतु, स्वयम् काशीराज उपस्थित होते हैं। यह मान इस वश को अब तक प्रतिष्ठापूर्वक प्राप्त है। सेठ गोकुलचन्द के और कोई सन्तान न होने के कारण बाबू फतहचन्द उनके भी उत्तराधिकारी हुए। फारसी मे एक ग्रन्थ ता २८ सफर सन् १२५४ हिजी का लिखा है जिसमे गवर्नरजेनरल की ओर से प्रधान राजा महाराजा और रईसो को जैसे कागज और जिस प्रशस्ति से पत्र लिखा जाता था उस का संग्रह है उस मे इनकी प्रशस्ति यो लिखी है -- دارو صاحب مهرداں دو سدا سلامت چند ماه دادو در حاتمی - اعد اوشان مهر د رد अर्थात् प्रादि बाबू साहब मेहबान दोस्तान सलामत अन्त-विशेष क्या लिखा जाय कागज सोनहल छिडकाव का छोटी मोहर-- बाबू फतहचन्द ने अगरेजो को राज्यादि के प्रबन्ध करने में बहुत कुछ सहायता दी थी। सुप्रसिद्ध "दवामी बन्दोबस्त" के समय डडून साहब ने इनकी सहायता का पूर्ण धन्यबाद दिया है । इनके काशी या बसने के कुछ काल उपरान्त उनके बड़े भाई राय रत्नचन्द्र बहादुर भी मुर्शिदाबाद से यहाँ ही चले पाए । १ ये हनुमान जी के बड़े भक्त थे। प्रति मङ्गलवार को काशी भदैनी हनुमानघाट वाले बडे हनुमान जी के दशन को जाया करते थे। काशी मे बडे हनुमान जी का मन्दिर परम प्राचीन और प्रसिद्ध है। यहाँ केवल एक विशाल प्रस्तरमूर्ति हनुमान जी की है। एक दिन उन्हे जो प्रसाद मे माला मिली वह पहिरे हुए घर चले आए। यहा आकर जो माला उतारी तो उस मे से एक हनुमान जी की स्वर्णप्रतिमा छोटी सी अगुष्ठ प्रमाण गिर पड़ी। उसी समय से इस प्रतिमा की सेवा बडी भक्ति से होने लगी और अब तक इस वश मे कुलदेव यही महावीर जी हैं। यह मूर्ति साधारण हनुमान जी की भाँति नहीं है, वरञ्च बिलकुल बानराकृति है और एक हाथ मे लड्डू लिए हुए हैं। ।