पृष्ठ:भारतेन्दु बाबू हरिश्चंद्र का जीवन चरित्र.djvu/१३४

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के दिनो मे लौटे तो पाते समय रास्ते ही मे बीमार पडे। बनारस पहुंचने केसाथ ही श्वास रोग से पीडित हुए। रोग दिन २ अधिक होता गया महीनो मेशरीर अच्छा हुआ। लोगो ने ईश्वर को धन्यवाद दिया । यद्यपि देखने में कुछरोज तक रोग मालूम न पडा पर भीतर रोग बना रहा और जड से नहीं गया। बीच मे दो एक बार उभड प्राया, पर शान्त हो गया था, इधर दो महीने से फिरश्वास चलता था, कभी २ ज्वर का प्रावेश भी हो जाता था । औषधि होतीरही शरीर कृशित तो हो चला था पर ऐसा न ही था कि जिससे किसी काम मे हानि होती, श्वास अधिक हो चला क्षयी के चिह्न पैदा हुए। एका एक दूसरीजनवरी से बीमारी बढने लगी, दवा, इलाज सब कुछ होता था पर रोग बढताही जाता था ६वी तारीख को प्रात काल के समय जब ऊपर से हाल पूछने के लिये मजदूरिन आई तो आप ने कहा कि जाकर कह दो कि हमारे जीवन के नाटक काप्रोग्राम नित्य नया २ छप रहा है, पहिले दिन ज्वर की, दूसरे दिन दद की, तीसरेदिन खासी की सीन हो चुकी, देखें लास्ट नाइट कब होती है। उसी दिन दोपहर से श्वास वेग से आने लगा कफ मे रुधिर आ गया, डाक्टर वद्य अनेक मोजूद थेऔर पोषधि भी परामश के साथ करते थे परन्तु मज बढता ही गया प्यो २ दवाकी। प्रतिक्षण मे बाबू साहिब डाक्टर और वधो से नींद आने पार कफ के दूर होने की प्राथना करते थे, पर करे क्या काल दुष्ट तो सिर पर खडा था, कोई जानेक्या, अन्ततोगत्वा बात करते ही करते पावे १-बजे रात को भयकर दृश्य प्राउपस्थित हुमा । अन्त तक श्रीकृष्ण का ध्यान बना रहा । देहावसान समय मे श्रीकृष्ण । श्रीराधाकृष्ण । हे राम । आते हैं सुख देख लाओ कहा और कोई दोहापढा जिसमे से श्रीकृष्ण सहित स्वामिनी इतना धीरे स्वर से स्पष्ट सुनाई दिया।देखते ही देखते प्यारे हरिश्चन्द्र जी हम लोगो की आखो से दूर हुए। चन्द्रमुखकुम्हिला कर चारो ओर अन्धकार हो गया। सारे घर में मातम छा गया, गली २मे हाहाकार मचा, और सब काशीवासियो का कलेजा फटने लगा। लेखनी अबआगे नहीं बढती बाबू साहिब चरणपादुका पर

हा | काल की गति भी क्या ही कुटिल होती है, अचान्चक कालनिद्राने भारतेन्दु को अपने वश मे कर लिया कि जिससे सब जहा के तहा पाहन से खडेरह गये। वाह रे दुष्ट काल | तूने इतना समय भी न दिया जो बाबू साहिबअपने परम प्रिय अनुज बाबू गोकुलचन्द्र जी वो बाबू राधाकृष्णदास तथा अन्य