पृष्ठ:भारतेन्दु बाबू हरिश्चंद्र का जीवन चरित्र.djvu/१२९

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संक्षिप्त जीवनी

श्रीमान कविचूडामणि भारतेन्दु हरिश्चन्द्र जी ने सन् १८५० ई० के सितम्बर मास की हवी तारीख को जन्मग्रहण किया था। जब वह ५ वष के थे तो उनकीपूज्य माता जी वो ६ वर्ष के हुए तो महामान्य पिता जी का स्वगवास हुआ,जिससे उन को माता पिता का सुख बहुत ही कम देखने में आया, उनकी शिक्षाबालकपन से दी गई थी और उन्होंने कई वष लो कालेज मे अग्रेजी तथा हिन्दी पढी थी सस्कृत, फारसी, बगला, महाराष्ट्री इत्यादि अनेकभाषाओ मे बाबूसाहिब ने घरपर रिज परिश्रम किया था। इस समय बाबू साहिब तैलडग तथातामील भाषा को छोड कर भारत की सब देश भाषा के पण्डित थे। बाबू साहिबकी विद्वत्ता, बहुज्ञता, मीतित्रता, पाण्डित्य, तथा चमत्कारिणी बुद्धि का हालसब पर विदित हे कहने की कोई आवश्यकता नहीं। इनकी बुद्धि का चमत्कारदेख कर लोगो को आश्चर्य होता था कि इतनी अल्प अवस्था मे यह सवज्ञता।कविता की रुचि बाजू साहिब को बाल्यावस्था ही से थी, उनकी उस समय कीकविता पढने से कि जब वह बहुत छोटे थे बडा पाश्चय होता है और इस समय की तो कहना ही क्या है मूर्तिमान आशुकवि कालिदास थे जैसी कविता इनकी सरस और प्रिय होती थी वसी आज दिन किसी की नहीं होती। कविता सब भाषा की करते थे, पर भाषा की कविता मे अद्वितीय थे। उनके जीवन का बहुमूल्य समय सदा लिखने पढने में जाता था। कोई काल ऐसा नहीं था कि उनके पास कलम, दावात और कागज न रहता रहा हो। १६ वष की अवस्था मे कविवचन-सुधा पत्र निकाला था जो आज तक चला जाता है। इसके उपरान्त तो क्रमश अनेक पत्र पत्रिकाएँ और सैकडो पुस्तक लिख डाले जो युग युगान्तर तक ससार में उनका नाम जैसा का तैसा बनाये रखेगे। २० वष की अवस्था अर्थात् सन् ७० मे बाबू साहिब प्रानरेरी मजिस्ट्रेट नियुक्त हुए और सन ७४ तक रहे वो उसी के लगभग ६ वर्ष लो म्यूनिस्पल कमिश्नर भी थे। साधारण लोगो मे विद्याफैलाने के लिये सन् १९६७ ई० मे जब कि बाबू साहिब की अवस्था केवल १७ वर्ष की थी चौखम्भा स्कूल जो अबतक उनकी कीर्ति की ध्वजा है, स्थापित किया,