पृष्ठ:भारतेन्दु बाबू हरिश्चंद्र का जीवन चरित्र.djvu/१०३

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भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्र का जीवन चरित्न (८५) D00 Meanwaura- श्रीनिम्बार्क श्रीरामानुज श्रीमध्व । श्रीविष्णुस्वामि - -- वेदान्त रत्न यतीन्द्रमत वेदान्त रत्न षोडश ग्रन्थ, प्रविष्ट मजूषा, वेदान्त दीपिका, माला, तत्व षोडशबाद, रत्नमाला, शतदूषणी प्रकाशिका सप्रदाय प्रदीप सुरदुम मजरी वेदान्त कौस्तुभ | श्रुति सूत्र भाष्य सुधा, | विद्वन्मडल स्वर्ण और प्रभा, तात्पय्य निणय, न्यायामृत सूत्र, निबन्ध प्रवीण| षोडशी रहस्य, , प्रस्थान वय श्रावण भग का भाष्य वामहस्त, पडित करभिदिपाल, वहिर्मुख मुख मद्दन पर पारङ्गत अध्यास गिरि | वेदान्ताचाय्य | सहस्र दूषिणी | वज्र सेतुका, का लघु भाष्य, जान्हवी मुक्ता वहच्छतदूषणी वली प्रणु भाष्य, भाष्य प्रदीप, भाब्य प्रकाश, प्रमेय रत्नार्णव भारतेन्दु की पदवी इनके गुणो से मोहित होकर इनका कैसा कुछ मान देशीय और विदेशीय सज्जन इनके सामने तथा इनके पीछे करते थे यह लिखने की आवश्यकता नहीं। हम केवल दो चार बात इस विषय मे लिख देना चाहते हैं । सन् १८८० ई० के 'सारसुधानिधि' मे एक लेख छपा कि इन्हें 'भारतेन्दु' की पदवी देना चाहिए, इसको एक स्वर से सारे देश ने स्वीकार कर लिया और सब लोग इन्हें भारतेन्दु लिखने लगे, यहाँ तक कि भारतेन्दु जी इनका उपनाम ही हो गया। इस पदवी को न केवल १ यदि रश्मि मे परीक्षा दे तो ५००) २० पारितोषिक मिले।