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के भविष्य राजा गण का चरित्र । अंतभाग उपसंहार पाद - १. वैवस्वत मन्वन्तर का संक्षेप विवरण २. भविष्य मनु का कर्म चरित्र ३. कल्प प्रलय निदेश ४. काल परिमाण विवरण ५. परिमाण और लक्षण सहित चतुर्दश लोक विवरण ६. नरक एवं विकर्म वर्णन ७. मनोमयपुर आख्यान ८. प्राकृतिक लय विवरण ९. शैवपुर वर्णन १०. सत्वादि गुण संबंध से जीव की गति विवरण ११. अनिद्देश्य ब्रहम वर्णन । फल श्रुति - यह पुराण श्रवण किंवा पाठ करै उसका पाप मोचन होय एवं देवलोक में गति होय । यह पुराण लिख कर स्वर्णसिंहासनस्थ करके ब्राहमण को दान करने से ब्रह्म लोक प्राप्ति होती है। छोड़ि अनेकन साधन को मन मान कहयो न करै चित चाही । नंद के लाल सों नेह करै किन भूलत दौरे वृथा जिय दाही ।। आजु लौं नीचन सों हरिचन्द से कौन ने बोलि तौ प्रीत निबाही । हैं गनिका सबरी गज गीध अजामिल आदिक याकी गवाही ।। १ इतिहास तिमिर नाशक तीसरा खंड में यह सिद्ध किया गया है कि पहले आर्य लोग लिखना न जानते थे किंतु • यह भ्रम है। पुराणों में प्रायः लिखने का अनेक स्थानों में वर्णन आया है जो इस अनुक्रमणिका से मालूम हुआ होगा और इसका अनेक मैंने कई एक स्थलों में संग्रह किया है । इतिहास तिमिरनाशक का भ्रम मूल लेख नीचे लिखा है । अब हम लोग मेक्समूलर साहब के लेखों को माने या पुराण को । यथार्थ में मेक्समूलर को भ्रम हुआ है और उसी को मूल मान कर राजा जी चले है तब वह क्यों न भूलें। "इसका कुछ प्रमाण नहीं मिलता कि इनको लिखना भी आता हो वेद श्रुति स्मृति शास्त्रदर्शन सूक्त ऋच साम वर्ग अध्याय अध्यापक उपाध्याय ग्रंथ पाठ पाठक पठन मनन घोषण इत्यादि सब शब्द जब उनके अर्थ पर ध्यान करो यही गवाही देते हैं कि वेदों के जमाने में लिखना किसी को नहीं आता था । वेद वा ब्राह्मण वा सूत्रों में इसका कहीं कुछ ज़िक्र नहीं है । कोई शब्द ऐसा नहीं कि जिससे इसका इशारा पाया जाय । उणदि सूत्र में जो अति प्राचीन व्याकरण है और जिसका जिक्र पाणिनी ने किया है यदि कोई शब्द ऐसा मिल भी जाता है तो वह पीछे से मिलाया हुआ मालूम होता है (इसी तरह उणादि सूत्र में दीनारः जिनः तिरीटम् स्तूमः इत्यादि शब्द पीछे से लिख दिये गए हैं । दीनारः ( Denarious) रुमी शब्द है और जि घातु को जिससे जिन निकला है । सायन ने वहां उणादि से लिखा छोड़ दिया है नृसिंह ने भी अपनी स्वर मंजरी में जि धातु को छोड़ दिया है । यह धातु किसी प्रामाणिक ग्रंथ में नहीं मिलता) जैसा अरबी शब्द किताब (पुस्तक) जिसका अर्थ ही लिखना है अथवा यूनानी शब्द पेपर (कागज) जिसका अर्थ ही पेपरिस वृक्ष की छाल से बनाया हुआ है कोई भी हाथ नहीं लगता । संस्कृत में सूत्रों की रचना ऐसी है कि जुबानी याद रक्खे जाँय । सूत्रकारों ने उन्हें लिखने के लिए कदापि नहीं रचा । मनुजी ने जहाँ पढ़ाने का बहुत विस्तारपूर्वक नियम बाँधा है (ब्रह्मारम्भेवसाने च पादौग्राहयौ गुरोस्सदा । संहत्यहस्तावध्येयं सहि ब्रहमाञ्चलिः स्मृतः ।। अध्येष्यमणन्तु गुरुनित्य कालमतन्द्रितः । अधीष्व भो इति ब्याद्विरामोसित्वति चारमेत ।) पुस्तक कलम दवात कागज का नाम भी नहीं लिखा, लिखने का कहीं किसी प्रकार से कुछ चर्चा ही नहीं किया और देखो अब तो लिखना पढ़ना ये दोनों ऐसे बंद हो गए है कि पर्यायी से जान पड़ते हैं । एक के स्मरण के साथ ही दूसरे का स्मरण भी हो आता है । निदान लिखने की विद्या इस देश में पीछे से फैली (यदि पहले होती तो महाभारत में जहाँ कौरव पांडव के दूतों का हाल लिखा है उनके साथ पत्र जाने का भी हाल लिखा होता ।) पत्र लेखनी मसी ये सब शब्द पीछे से काम में आये । उत्तर में पहले मोजपत्र और दक्षिण में पहले तालपत्र पर लिखा होगा इसी से जिस पर लिखें उसका नाम पत्र रह गया और तालपत्र पर लीकों के खींचने अर्थात् खोदने से यह काम ही लिखना ठहरा । लिप लीपना है जब पत्रों पर सियाही लगाई होगी यह शब्द काम में आया । यदि पाणिनी के समय में भी लिखना किसी को मालूम होता वह अवश्य इसके लिए कोई शब्द बनाता । इसने जो वर्ण अक्षर और विराम लिखा है वर्ण का अर्थ आवाज का रंग है, अक्षर का अर्थ अविनाशी है, विराम का अर्थ आवाज का बंद होना है । यदि वह लिखना जानता होता अनुस्वार विसर्ग जिहवामूलीय और उपध्मानीय का नाम बोपदेव की तरह बिंदु दिबिंदु बज्राकृति और गजकुभाकृति रखता ।" ROSHE भारतेन्दु समग्र ९५४