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अष्टादश पुराण की उपक्रमणिका यह पुस्तक सन् १८७५ में लिखी गयी है। पहली बार यह हरिश्चन्द्र चन्द्रिका सं. ८- १२ सन् १८७६ में प्रकाशित हुई। -सं. भूमिका व्यास जी के बनाए अठारह पुराण लोक प्रसिद्ध हैं। काव्य वाल्मीकीय रामायण, इतिहास महाभारत, अठारह पुराण, अठारह उप पुराण, पाँच पंचरात्र और पाँच संहिता इनकी समष्टि की संज्ञा पुराण है। अठारह उप पुराण, यथा १. आदि पुराण (सनत्कुमारोक्त) २. नरसिंह पुराण ३. स्कंदपुराण ४. शिव धर्म (नंदीश- प्रोक्त) ५. आश्चर्य पुराण (दुर्वासा का कहा) ६. नारदपुराण ७. कपिल पुराण ८. वामन पुराण ९. बरुण पुराण १०. शाम्ब पुराण ११. सौर पुराण १२. पराशर पुराण १३. भार्गव पुराण १४. मारीच पुराण १५. कालिका पुराण १६. देवी पुराण १७. माहेश्वर पुराण १८. पद्मपुराण। भास्कर, नंदिकेश्वर, रहस्य, उशना और ब्रह्मांड ये पाँच नाम उप पुराणों के और भी मिलते हैं। १. वशिष्ट पंचरात्र २. नारदीय पंचरात्र ३. कपिल पंचरात्र ४. गौतमीय पंचरात्र और ५. सनत्कुमारीय पंचरात्र और ब्रह्म, शिव गौतम, प्रहलाद और सनत्कुमार ये पाँच संहिता हैं। हमारे ग्राहकों में बहुत से लोगों की इच्छा होगी कि परिश्रम भी न करें और जान भी लें कि अटारहो पुराणों में क्या है। हम उनकी इच्छा पूर्ण करने को पुराणों की यह उपक्रमणिका प्रकाश करते हैं, जिससे बहुत सहज में लोग जान जायेंगे कि चार लाख श्लोक समूह के अठारह टुकड़ों में क्या क्या विषय सन्निवेशित है। हरिश्चंद्र अष्टादशपुराणोपक्रमणिका प्रथम ब्रह्मपुराण यह पुराण पूर्व एवं उत्तर दो भाग में विभक्त है । अत्रस्थ श्लोक संख्या १०००० दस सहस्र । सूत- शौनक संवाद में नाना प्रसंग एवं विविध इतिहास वर्णित हैं। पूर्व भाग - १. देवता एवं असुर गणों की उत्पत्ति वर्णन २. दक्षादि प्रजापति की उत्पत्ति वर्णन ३. सूर्यवंश वर्णन एवं तन्मध्य में श्रीराम का चतुर्वृह कथन ४. सोमवंश वर्णन तत् प्रसंग से श्रीकृष्ण चरित्र कथन, FOR भारतेन्दु समग्र