पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/९४९

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063 श्री युगुलसर्वस्व सन् १८७६ में लिखा गया है। भादो शुक्ल ८ सं. १९३३ में छपा भी।- सं. श्रीयुगुलसर्वस्व (श्री नित्यलीला के निकुंज सखा सखी सहचरी सेवक परिवार आदि का नाम रूप वर्ण स्वभावादि वर्णन) श्री भागवत, उसकी टीका, पद्मपुराण, नारदपुराण, कृष्ण जन्मखंड, बाराहपुराण, आदिपुराण, रहस्यपुराण, ब्रह्मांडपुराण, नारदपंचरात्र, गौतमीतंत्र, रास उल्लासतंत्र, श्रृंदावनपटल, लघुराधा-वृहद्धातंत्र, हयग्रीव-पंचरात्र तथा श्रीहरिरायजी, श्रीगोकुलनाथ जी की भावना, श्रीद्वारकेशजी, श्रीव्रजाधीशजी, श्री गोपिकेशजी की रहस्य भावना और उज्ज्वलनीलमणि तथा गणोद्देशदीपिका आदिक ग्रंथों से संग्रह किया। समर्पण हे अंतरंगी जन! आज तक जो पुस्तक प्रकाशित हुई वह दूसरे को समर्पित हुई थी परंतु यह युगुलसर्वस्व तुम को समर्पित है, माथे चढ़ा कर अंगीकार करो । इस को अनधिकारी के हाथ खबरदार खबरदार मत देना और इस से परमानंद लाभ कर के मेरा परिश्रम सफल करना । भाद्रपद कृष्णा ९ सं. १९३३ श्रीनंदमहोत्सव आप लोगों के चरणरज का वांछक हरिश्चंद्र

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श्री युगुलसर्वस्व ९०५