पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/८८४

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YO** श्रीमद्भागवतं नामपुराणं ब्रहम सम्मितं । शृणुयाच्छदया' युक्तो ममसन्तोषकारणं । । यावधिनानि हे पुत्रशास्त्र भागवतं कली । तावत्कुर्वन्ति पितरः स्वर्गेत्वमृत भोजनं ।। यत्र यत्र चतुर्वक्त्र श्री मद् भागवतं भवेत् । गच्छामि तत्रतत्राहं गौर्यथासुतवत्सला ।। इत्यादि श्रीमद्भागवत माहात्म्यं । मार्गशीर्ष में गोपी गोविंद तीर्थ की यात्रा और गोविन्द नाम स्मरण यही करना चाहिए। यथा वायु पुराणे लक्ष्मीसहितायां काशी माहात्म्ये । गोपी गोविन्द तीर्थ तु गोपी गोविन्दसंज्ञक । तत्रमार्गशिरेमासिमहिमाबहु गीयते । । इति मार्गशीर्ष महिमा मार्गशीर्ष महिमा चतुर्ग, मोक्षादिक पाने का बहुत सहज उपाय । हम लोग माघ वैशात कार्तिकादि नहाने को अति पवित्र जानकर स्नान दानादिक करते हैं परंतु हम लोग नहीं जानते कि एक महीना इन सभों में महा पुनीत और थोड़ेसाधन में बहुत फल का देनेवाला बच गया है और उसमें हम लोग कुछ स्नानदानादिक नहीं करते और जिसके प्रसिद्धि के वास्ते हम बड़े आनंद से यह इश्तिहार देते हैं। वह गोप्यमासा जिसका माहात्म्य सब शास्त्रों में बड़े आदर से कहा है वह मार्गशीर्ष अर्थात् अगहन का महीना है, जिसका गुन गान करने से महात्मा लोग तृप्त नहीं होते और यह महीना सब महीनों का राजा और भगवान का स्वरूप है। मासानाम्मार्गशीर्षो ऽहं । श्री कुमारिका गनों ने इसी के स्नान से श्रीकृष्ण को पाया था और स्कंद पुराण में इसकी बड़ी स्तुति लिखी है। यथा स्कांदे ब्रहमाप्रति भगवद्वाक्यम् । सर्वयज्ञेषु यत्पुण्यं सर्वतीर्थेषुयत्फलं । सहसाप्नोतितत्सर्वे मार्गशीर्षे कृते सुत ।। १ ।। यज्ञाध्ययनदानाद्यैस्सर्वतीर्थावगाहने: । संन्यासेन च योगेन नाहम्बश्योभवामिच ।। २ ।। यह श्री भगवान ने श्रीमत् भागवत और श्री भगवत गीता में श्री मुख से आज्ञा किया है कि सब महीने में अगहन हमारा स्वरूप है । और स्कंदपुराण में भी ब्रहमा से श्री भगवान फिर आज्ञा करते हैं । यथा स्नानेन दानेनच पूजनेन होमे विधाने तपआदितश्च । वश्यो यथामार्गशिरेस्वमासि तथा न चान्येषुहिगर्भमुक्त ।। ३ ।। माघान्छतगुणं पुण्यं वैशाखे मासि लभ्यते । तस्मात् सहस्रगुणितं तुलासंस्थे दिवाकरे ।। ४ ।। तस्माच्च कोटि गुणितं वृश्चिकस्थे दिवाकरे । मार्गशीर्षे ऽधिक तस्मात्सयंदा मम वल्लभ ।। ५ ।। आप कहते हैं कि हे गर्भमुक्त ब्रहमा, हम स्नान, दान, पूजन, होम, विधान इत्यादिक से वश नहीं होते. हम मार्गशीर्ष-स्नान से वश होते हैं । माघ में वैशाख का सौ गुना पुण्य है और वैशाख से हजार गुना पुण्य कार्तिक में है और कार्तिक से करोड़ गुना पुण्य वृश्चिक के सूर्य में, और अगहन में इससे भी अधिक पुण्य । 04*** भारतेन्दु समग्र ८४०