पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/८७६

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मार्गशीर्ष- महिमा 'मासानाम्मार्गशीर्षोहं' श्रीमद्भगवद्वाक्यं रचनाकाल सन् १८७३ । बाबू बृजरतन दास के मुताबिक कार्तिक कर्म विधि के बाद की कृति है। कार्तिक कर्म विधि की सफलता को देखते हुए भारतेन्दु ने इसे | लिखा होगा। अगहन महीने के स्नानादि की विधि इस ग्रन्थ में है। इस पुस्तक के सन्दर्भ में उन्होंने एक विज्ञापन भी कराया था। जो आगे विञ्चापनों के क्रम में दिया गया है। एक अन्य लेख से पता चलता है कि ऐसी ही उन्होंने श्रावण मास पर भी कोई पुस्तक लिखी थी। सं. मार्गशीर्ष महिमा (श्लोक, प्राचीन) नूतनवलधररुचये गोपवधूटीदुकूल चौराय । तस्मै कृष्णाय नमः संसार महीरुहस्य बीजाय ।। (श्लोक, नवीन) वजजन-सुखकारी । गोपिका-वस्त्रहारी।। सकल भुवन भारी । नित्यलीलावतारी ।। व्रजभुवि-परिचारी । गोप-नारी-विहारी ।।! दनुज-तनु-विदारी । पातुनश्चक्रधारी ।। सोरठा प्रातहि अगहन न्हात, तिन्ह गोपिन को चीर ले। तरु कदंब चढ़ि जात, चोरि चरि नित प्रातही ।। दोहा रासरसिक फल देन हित, तिनकों' करत विहार । ऐसे प्रभु के पद-कमल, बिनवत बारंबार ।। पुनि बंदौं सुखरास, भुक्ति मुक्ति पद सहजहीं । जगहित अगहन मास, कृष्ण रूप गोपिन सुखद । । सोरठा- भारतेन्दु समग्र ८३२