पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/८६८

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का दोष नहीं है। मया कृतं मूत्रपुरीषशौचं स्नानंच गंडूषणमेहनंच । वस्त्रस्यसंक्षालनमेवदोषान् क्षमस्वगगे मम सुप्रसीद ।। ८४ ।। श्री गंगा जी की प्रार्थना इस मन्त्र से करना । अब सूर्योदय पीछे जो करना चाहिए वह लिखते हैं । तत्रेव विष्णोः सहस्रनामाद्य सन्ध्यान्ते च पठेन्नरः । देवालये समागत्य पुनः पूजनमारभेत् ।। ८५ ।। संध्या करके विष्णुसहस्र नाम इत्यादिक ग्रंथों का पाठ करके फेर भगवान की पूजा को आरंभ करना । तहाँ फूल से भगवान की पूजा करना इसका माहात्म्य लिखते हैं । यथाभार्गवार्चनदीपिकायां नृसिंहपुराणे अगस्त्यकुसुमैर्देवं योर्चयेच्च जनाईन । दर्शनात्तस्य देवर्षे नरके नाहते नरः ।। ६ ।। विहाय सर्वपुष्पाणि मुनिपुष्पेण केशवं । कार्तिके यो ऽर्चयेद्भक्त्या वाजपेयफलं लभेत् ।। ८७ ।। स्कान्दे मालतीमालया विष्णुः केतक्या चैव पूजितः । समाः सहनं सुप्रीतो भवेत्स मधुसूदनः ।। ८८ ।। पृथ्वीचन्द्रोदये पामे कार्तिके नार्चितो यैन्तु कमलैः कमलेक्षणः । जन्मकोटिषु विप्रेन्द्र न तेषां कमला गृहे ।। ८९ ।। कार्तिके केशवो पूजा येषां नाम्ना सुतैः कृता । ते निर्भय॑ रवेः पुत्रं वसति त्रिदिवे सदा ।। ९० ।। तुलसीदललक्षेण कार्तिके योर्चयेत् हरि । पत्रे पत्रे मुनिश्रेष्ठ मौक्तिकं लभते फलम् ।। ९१ ।। अगस्त के फूल से जो भगवान की पूजा करते हैं उनके दर्शन से नरक नहीं मिलता । सब फूलों को छोड़ के कार्तिक में जो अगस्त के फूल से भक्तिपूर्वक पूजा करते हैं उन्हें वाजपेय का फल होता है । कार्तिक में जिसने कमल से श्रीभगवान की पूजा नहीं किया उनके घर कोटि जन्म तक लक्ष्मी नहीं आती । जो कार्तिक में भगवान के नाम से पूजा करते हैं वे लोग यम को अनादर दे के स्वर्ग में रहते हैं । और जो लोग लाख तुलसी दल भगवान को अर्पण करते हैं वे एक एक पत्ते में मोती समर्पण का फल पाते हैं वा एक एक पत्ते में मुक्ति का फल पाते हैं। मंत्र नमस्तुलसि कल्याणि गोविंदचरणप्रिये । केशवार्थे विचिन्वामि वरता भव शोभने ।। १२ ।। ऊपर लिखे हुए मंत्र से तुलसी तोड़ कर श्री भगवान की पूजा करने का अकथनीय फल है । अब पूजा करने की विधि लिखते हैं । वह पूजा दो प्रकार की है - जिसमें नियम नहीं और परमभावात्मिका उसका नाम सेवा और जिसमें नियम हो, चाहै नैमित्तिक होय, उसका नाम पूजा । इसके भेद और प्रकार आदि पुराण और गर्गसंहिता में और भी संप्रदाय के ग्रंथों में विस्तारपूर्वक लिखे हैं । अब हम इस स्थान पर पूजा करने की विधि लिखते हैं। श्री भगवान की पूजा में चित्त एकाग्र रखना, पहिले मंदिर में जा करके प्रभु को जगाना, फिर षोडशोपचार पूजा की सामग्री ले के पूजा आरंभ करना तहाँ पहिले आवाहन करना । मंत्र गोलोकधामाधिपते रमापते गोविन्ददामोदर दीनवत्सल । राधापते माधव सात्वतां पते सिंहासनेस्मिन्मम सम्मनोभव ।। २३ ।। भारतेन्दु समग्र ८२४