पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/८६७

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तदोषपरिहारार्थ यक्ष्माणं तर्पयाम्यहम् ।। ७५ ।। फिर शुद्ध हो वस्त्र पहिन के संध्यादिक करना । स्कंद पुराण में लिखा है कि श्रीगंगा जी में ये तेरह कर्म नहीं करना । शौच, कुल्ला, जूठा फेंकना, मल करना. तेल लगाना, निदा, प्रतिग्रह, रति, दूसरे तीर्थ की इच्छा तथा दूसरे तीर्थ की प्रशंसा, वस्त्र धोना, उपद्रव, ये सब कर्म श्रीगंगा जी में नहीं करना । फिर श्री गंगाजल माथे पर छिड़क कर अघमर्षण करना, फिर वस्त्रांग आचमन करके शिखा बाँधना फिर तिलक करना बिना तिलक संध्यादिक नहीं करना । यथा पादम यज्ञो दानं तपो होमः स्वाध्यायः पितृतर्पणं । भस्मीभवति तत्सर्व ऊर्ध्वपुई विना कृतम् ।। ७६ ।। यज्ञ, दान, तप, होम, स्वाध्याय, पितृतर्पण इत्यादिक सब कर्म ऊर्ध्वपुंड किए बिना जो करते हैं उनका निष्फल होता है । ऊर्ध्वपुंड्र ही लगाना और तिलक न लगाना इस का सिद्धांत श्रीश्रीगिरिधरदेव चरण ने ऊर्ध्वपुंड्र मार्तड में किया है । ऐसे ही सर्वदा तुलसी की माला धारण करना और जो सब दिन धारण न करते हों तो कार्तिक में अवश्य धारण करना । यदुक्त निर्णयसिन्धौ । अथ मालाधारणम् । तत्र स्कान्दे दरकामाहात्म्ये निवेद्य केशवे मालां तुलसीकाष्ठसंभवां । बहते यो नरो भक्त्या तस्य नैवास्ति पातकम् ।। ७७ ।। नजहयात्तुलसीमालां धात्रीमालांविशेषतः । महापातक सहन्त्री सर्वकामार्थदायिनीम् ।। ७८ ।। विष्णुधर्मे स्पृशेत्तु यानि लोमानि धात्रीमाला कलौ नृणां । तावद्वर्ष सहस्राणि वैकुंठे वसतिर्भवेत् ।। ७९ ।। मालायुगमं तु यो नित्यं धात्री तुलसिसम्भवां । वहते कंठदेशे तु कल्पकोटिदियं वसेत् ।। ८० ।। मंत्र तुलसी काष्ठसम्भूते माले कृष्णजनप्रिये बिभर्मि त्वामहं कंठे कुरु मा कृष्णवल्लभम् ।। ८१ ।। एवं सम्प्रार्थ्य विधिवन्मालां कृष्णगलेऽपितां । भारयेत् कार्तिकेयो वै सगच्छेत् वैष्णवम्पदम् ।। ८२ ।। निर्णयसिंधु ग्रंथ में माला-धारण लिखते हैं । वहाँ स्कन्द-पुराण का यह वचन है कि तुलसी के काठ की माला भगवान की प्रसादी जो लोग भक्ति से पहनते हैं उनके एक पाप भी नहीं बचते । महापापों के दूर करने वाली सब कामों के देने वाली तुलसी की माला वा आँवले की माला को कभी भी नहीं त्यागना । विष्णुधर्म में । कलियुग में आँवले की माला से जितना रोआँ छू जाता है उतने हज़ार बरस उस मनुष्य को स्वर्गवास मिलता है । ऊपर जो मंत्र लिखा है उस से जो विधिपूर्वक माला सदा धारण करते हैं वा श्री कृष्ण की प्रसादी माला जो लोग कार्तिक में धारण करते हैं उनको वैष्णव पद मिलता है। इस रीति से तिलक माला धारण करके क्या करना चाहिये, सो लिखते हैं। यथा सनत्कुमारसंहितायाम् ततः सन्ध्यामुपासीत स्वसूत्रोक्तेन कर्मणा । ततः कार्योजपो देव्या यावत्सूर्योदयो भवेत् ।। ८३ ।। फिर अपने सूत्र के अनुसार सध्या करना, फिर जब तक सूर्योदय न होय तब तक गायत्री देवी का जप करना । निर्णयसिंधु बनाने वाले ने यह निर्णय किया है कि कार्तिक के महीने में बिना अरुणोदय भी संध्या करने कार्तिक कर्म विधि ८२३