पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/८५०

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कार्तिक कृष्णा १२ नमस्ते सर्व देवानां वरदासि हरिप्रिये । यागतिस्त्वत्प्रपन्नानां सामेभूयात्त्वदर्चनात् ।। इंद्र को भी चार दाँत के श्वेत हाथी पर बैठे ध्यान करके 'इन्द्रायनमः' इस मंत्र से पूजा करके पुष्पांजलि इस मंत्र से देना। विचित्ररावतस्थाय- भास्वत्कुलिशपाणये । पौलोम्यालिंगितागाय सहस्राक्षायतेनमः ।। इसी पुनवासी को बड़े पुत्र की आरती और तिलक करना और रात को जागरण करना । अथ कार्तिक कृष्णा ४ - इस चतुर्थी को कर्क चतुर्थी का व्रत है । इसी चतुर्थी में रानियों सहित राजा दशरथ की पूजा करना । अथ कार्तिक कृष्णा ८-इस अष्टमी का नाम राधाष्टमी है । यह अष्टमी अरुणोदय-व्यापिनी लेना और अरुणोदय की समय न मिले तो सूर्योदय-व्यापिनी मानना । इस अष्टमी को श्री राधा कुंड में स्नान करना और श्री राधिका का पूजन करना । इस दिन श्री राधा-सहस्रनाम पाठ का बड़ा पुण्य लिखा है । इस दिन पुत्रवती स्त्री को गो-पूजन का, दाम्पत्य और शिव पूजन का विधान भी कोई ग्रंथकार लिखते है। अथ कार्तिक कृष्णा ११ इस एकादशी का नाम रमा है। इसमें व्रत और जागरण और श्री राधादामोदर का पूजन करना और रात्रि को दीपदान करना । - इसको वत्स-द्वादशी कहते हैं । यह द्वादशी सायंकाल-व्यापिनी मानना और इसमें नक्त व्रत करना । ब्रह्मचर्य से रहना और उड़द का भोजन करना, पृथ्वी पर सोना, साँझ की समय गऊ की पूजा करना । वह गऊ सीधी और दूध देने वाली हो और उसका बच्चा भी उसी रंग का हो । सब पूजा करके तामे के अरघे में इस मंत्र से अघ देना । क्षीरोदार्णवसंभूते सुरासुरनमस्कृते । सर्वदेवमयेमातहाणाध्य नमोस्तुते ।। फिर इस मंत्र से गोग्रास देना । सर्वदेवमयेदेवि सर्वदेवैरलंकृते ।। मातर्ममाभिलषितं सफल कुरु नन्दिनि । इसी दिन गऊ का घी, दूध, दही और मठा तथा तेल का और कढ़ाई का किया भोजन न करना । इस द्वादशी से पाँच दिन तक साँझ पीछे देवता, ब्राहमण, गऊ, अपने से बड़े मनुष्य, मातादिक अपने से बड़ी स्त्री, हाथी और घोड़े की आरती करना और साँझ को दीये बालना । उत्तर मुख नव वा विशेष दीए बाल कर शुभाशुभ विचारना । दीया बालने का मंत्र । सूर्यांशसम्भवादीपा अंधकार विनाशकाः । त्रिकाले मां दीपयन्तु दिशन्तुच शुभाशुभम् ।। अय कार्तिक कृष्णा १३ - इस दिन साँझ को यम का दीया द्वार के बाहर देना। मंत्र - मृत्युनापाशदंडाभ्यां कालेनश्यामयासह । त्रयोदश्यांदीपदानात् सूर्यजः प्रीयतां मम ।। इसी तेरस के दिन गो-व्रत भी होता है। अथ कार्तिक कृष्णा १४ – इस चतुर्दशी में जो मंगलवार पड़े तो श्री महादेव जी का व्रत और पूजा करना । यह चतुर्दशी स्नानवाले चंद्रोदय व्यापिनी मानें और सर्वसाधारण इसमें अवश्य स्नान करें, क्योकि जो इसमें तेल लगाके सिर मल के नहीं नहाते उनको बड़ा दोष होता है । स्नान की समय खेत की हल से निकाली मिट्टी, चिचिडा, भटकटैया और तुम्बी तीन बेर अपने ऊपर से फिरावै और स्नान करक तिलक करके तब नित्य का कार्तिक स्नान करें। चिचिड़ा घुमाने का मंत्र- सीतालोष्ट समायुक्त सकंटकदलान्वित । हरपापमपामार्ग भ्राम्यमाण: नित्य स्नान करके यम तर्पण करे । यह तपण जिसका पिता जीता हो वह भी करे । मंत्र पुनः पुनः ।। ble भारतेन्दु समग्र ८०६