पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/८५

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अब सोऊ न साथहि साजती हैं। चवाव घने उपराजती हैं। लखि कै मोहि भाजती हैं। बोलिवे सों अब लाजती हैं ।४५ अब ही हम लाइ मिलावती हैं। जे हमारी कहावती हैं। न जाने मनोरथ कौन सजै । अड़े हैं टरै न कहूँ को भजै । Spast जिनको लरकाई सो संग कियो पै पिया 'हरिचंद' सों नैन लगे केहि हेत ये बातें बनावती हो 'हरिचंद' जू जानि हमैं बदनाम यहाँ कौन जो मानै तिहारो कयौ हमें बातन क्यों बहरायती हो। हर हाय कलंकिनि ऐसी भई सखियाँ सबनी मन पास नहीं हमरे तुम कौन को का समुझावती हौ ।५० निसि-बासर संग मैं जे रहती मुख जब सों हम नेह कियो उन सों तब पहिले भाँति भरोसो दियो गों तुम बातें सुनावती हौ । बहुत हम औरन के बस में हैं परी 'हरिचंद' भरोसे रही उनके सखियाँ 'हरिचंद' कहा समुझावती हो। कोउ आपुन भूलिहै बूझहु तौ तुम क्यों इतनी बतरावती हौ । अब वेई जुदा ह्वै रहीं हम सो उलटो मिलि के समुझावती हैं। हन नैनन को सखी दोष सबै हमें झूठहि दोष लगावती हौ ।५१ पहिले तो लगाई कै आग अरी जल कों जिनके हित त्यागिकै लोक की लाज अब आपुहि धावती हैं ।४६ कों संगही संग में फेरो कियो । सब आस तो छूटी पिया मिलबे की 'हरिचंद' जू त्यौं मग आवत जात में साथ घरी घरी घेरो कियौ । 'हरिचंद' जू दु:ख अनेक सहैं पै जिनके हित में बदनाम भई तिन नेकु कयौ नहि मेरो कियो । सब सों निरसंक हवै बैठि रहै सो हमें व्याकुल छोडिकै हाय सखी निरादर हू सों कछू न लजै । कोउ और के जाइ बसेरौ कियो ।५२ नहिं जान परै कछु या तन को कहि पिय रूसिबे लायक होय जो रूसनो मोह तें पापी न प्रान तजै ।४. वाही सों चाहिए मान किये। मोहन सों जबै नैन लगे तब 'हरिचन्द' तौ दास सदा बिन मोल कों तो मिलिकै समुभावन धाई । बोलै सदा रुख तेरो लिये । प्रीति की रीति औ नीति कही रहै तेरे सुखै सों सुखी नित ही मुख मिलिबे को अनेकन बात सुनाई । तेरो ही प्यारी बिलोकि जिये । वेऊ दगा दै जुदा हुदै गई 'हरिचंद' इतने हु पै जानै न क्या तू रहै जू एकह काम न आई। सदा पीय सो भौह तनेनी किये ।५३ हाय मैं कौन उपाय करौं सखियाँ पहिले दिनु जाने पिछाने बिना मिली अपुनी ह्वै गई जु पराई ।४८ धाइ के आगे बिचारे बिना । हाय दशा यह कासों कहीं कोउ अपुने सों जुदा ह्वै गई तुरतै निज नाहिं सुनै जौ करे हूँ निहोरन । लाभ औ हानि सम्हारे बिना । कोऊ बचावनहारो नहीं 'हरिचंद' 'हरिचंद' जू दोष सबै इनको जू यों तो हितू हैं करोरन । जो कियो सब पूछे हमारे बिना । बरिआई लखो इनकी उलटी अब सो सुधि के गिरिधारन की अब धाई के दूर करौ इन चोरन । रोवहिं आपु निहारे बिना ।५४ प्यारे तिहारे निवास की ठौर को आय के जगत बीच काहू सों न करै बैर बोरत हैं अंसुआ बरजोरन ।४९ कोऊ कठ्ठ काम करै इच्छा जौ न जोई की । हित की हम सों सब बात कही ब्राह्मण की क्षत्रिन की बैसनि की सदन की सुख-मूल सबै बतरावती हौ । 1 अन्त्यज मलेछ की न ग्वाल की न भोई की ।। प्रेम माधुरी ४५