पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/८३७

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२. बीबी फातिमा अब हम लोग उस का जीवनचरित्र लिखते हैं जिस को करोड़ों मनुष्य सिर झुकाते हैं और जिस के दामन से प्रलय पीछे करोड़ों मनुष्य को ईश्वर के सामने अपने अपराधों की क्षमा मिलने की आशा है । यह बीबी फातिमा मुसलमान धर्माद्याचार्य महात्मा मुहम्मद की प्यारी कन्या थी । महात्मा मुहम्मद जैसे दुहितवत्सल थे वैसी ही बीबी फातिमा पितृभक्त थी । यह वाल्यावस्था ही में मातृहीना हो गई, क्योंकि इन की माता महात्मा मुहम्मद की प्रथमा स्त्री बीबी ख़दीजा इनको शैशवावस्था ही में छोड़ कर परलोक सिधारी । यद्यपि महात्मा मुहम्मद को अनेक संतति थीं पर औरों का कोई नाम भी नहीं जानता और इन को आबालवृद्ध बनिता सब जानते है । मुहम्मद ने अपने मुख से कहा है कि ईश्वर ने संसार की सब स्त्रियों से फातिमा को श्रेष्ठ किया । इन्होंने आठ बरस तक जिस असाधारण निष्ठा और परम श्रद्धा से पिता की सेवा की पराकाष्ठा की है वैसी संदेह है कि किसी स्त्री ने भी न की होगी और न ऐसी पितृगतप्राणा नारीरल और कहीं उत्पन्न हुई होगी । महात्मा मुहम्मद क्षण भर भी दृष्टि से दूर रखने में कष्ट पाते थे। पिता के अलौकिक दृष्टांत और उपदेशों के प्रभाव से शैशवावस्था ही से इन को अत्यंत धर्मनिष्ठा थी । इन का मुख भोला भाला सहज सौदर्य से पूर्ण और सतोगुणी तेज से देदीप्यमान था । कभी इन्होंने सिंगार न किया । सांसारिक मुख की ओर यौवनावस्था में भी इन्होंने तणमात्र चित्त न दिया । मर्म की विमल ज्योति और ईश्वरीय प्रताप इन के चेहरे से प्रगट था । धर्मसाधन और कठिन वैराग्य ब्रतपालन ही में इनको आनंद मिलता था और अनशनादिक नियम ही इन का व्यसन था । इन के समस्त चरित्र में से दो एक दृष्टांत रूप यहाँ पर लिखे जाते है। महात्मा मुहम्मद के चचेरे भाई और परम सहायक आदरणीय अली से इन का विवाह हुआ और सुप्रसिद्ध हसन-हुसैन इन के दो पुत्र थे । एक बेर कुरेशवंशीय अनेक सभ्रातजन महात्मा मुहम्मद के पास आए और बोले कि यद्यपि हमारा आप का धर्म संबंध नहीं है पर हम आप एक ही वंश के और एक ही स्थान के हैं, इस से हम लोगों की इच्छा है कि हम लोगों के यहाँ जो अमुक आप के संबंधी का अमुक से विवाह होनेवाला है उस कार्य को आप की पुत्री फातिमा चल कर अपने हाथ से संपादन करै । महात्मा मुहम्मद ने अच्छा कह कर बिदा किया और फातिमा के निकट आ कर कहने लगे – वत्से ! लोगों से सद्भाव तथा शत्रुओं का उत्पीड़न सहन करना और शत्रुतारूपी विष को कृतज्ञता-रूपी सुधा भाव से पान ही हमारा धर्म है । आज अरब के अनेक मान्य लोगों ने अपने विवाह में तुम को बुलाया है । यह हमारी इच्छा है कि तुम वहाँ जाओ, परंतु तुम्हारी क्या अनुमति है हम जानना चाहते हैं । फातिमा ने कहा ईश्वर और ईश्वर के भेजे हुए आचार्य की आज्ञा कौन उल्लंघन कर सकता है ? हम तो आप की आज्ञाधीना दासी हैं, इस से हमारी सामर्थ्य नहीं कि आप की आज्ञा टालें । हम विवाह सभा में जायंगे, परंतु सोच यह है कि हम कौन सा वस्त्र पहन के जायेंगे । वहाँ और स्त्री लोग महामूल्य वस्त्राभरणादिक धारण कर के आवेगी और हमारी फटी चद्दर देख कर वे लोग हमारा और आप का उपहास करेंगी । अबूजुहल की बहिन आनवा की स्त्री और शवा की बेटी इत्यादि अनेक अरब की स्त्री कैसी असभ्यचारिणी और मंदप्रकृति है यह आप भली भाँति जानते हैं और हमालन की बेटी आप के चलने की राह में काँटा बिछा आती थी तथा अबूसफिनान की स्त्री को आप की निंदा के सिवा कोई काम ही नहीं है, यह भी आप को अविदित नहीं । सब उस सभा में उपस्थित रहेंगी और रूम और मिश्र के बहुमूल्य अलंकार धारण कर के मणिपीठ के ऊंचे आसन पर बड़े गर्व से बैठेगी । उस सभा में आप की कन्या को एक मैली फटी पुरानी चद्दर ओढ़ कर जाना होगा । हम को देख कर वे सब कहेंगी कि इस कन्या को क्या हुआ । इस की माता की अतुल संपत्ति क्या हो गई जो इस वेश से यहाँ आई है । पिता ! इन लोगों को धर्मज्ञान और अंतरचक्षु नहीं है, केवल जगत के वाहयाडंबर में भूली हैं, इस से हम को देख कर वह आप की निंदा करेंगी और केवल हमारे कारण आप का अपमान होगा। फातिमा पिता से यह कहती थीं और उनके नेत्रों से जल बहता था । महात्मा महम्मद ने उत्तर दिया बेटी ! तुम किंचितमात्र भी सोच मत करो । हमारे पास उत्तम वस्त्राभरण और धन तो निस्संदेह कुछ भी नहीं है. परंतु निश्चय एक्खो कि जो आज लाल पीले वस्त्र पहन कर अलंकार के उद्यान में फूली फूली दिखाई पड़ती है वे अपने दुष्कर्मों से कल तृण से भी तुच्छ हो कर नर्क की अग्नि में जलेंगी। हम लोगों का वस्त्र और शोभा वैराग्य है । महात्मा महम्मद और भी कुछ कहना चाहते थे कि फातिमा ने कहा - पिता ! क्षमा कीजिए. 'अब विलंब करने का कुछ प्रयोजन नहीं. आपकी आज्ञा हम को सर्वथा शिरोधार्य है।

पंच पवित्रात्मा ७९३ -