पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/८३३

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(५३ सर्ग श्लोक २०,२१,२२) श्रीकृष्णावतार का वर्णन है । विदित हो कि तीसरे सर्ग के १२ श्लोक में भी एक जगह विष्णु का नाम गोविद कहा है “गोविद कर निस्मृता" और गोविंद श्रीकृष्ण का नाम तब पड़ा है जब गोबर्दन उठाया है, यह विष्णुपुराणादिक से सिद्ध है, यथा “गोविंद इतिचाभ्यधात्" तो इस से भी हमारी बालकांड वाली युक्ति सिद्ध हुई। (९४ सर्ग श्लोक ८) छन्दोविदः पुराणज्ञान इस वाक्य में पुराणों का वर्णन किया है। पुराणज्ञैश्च महात्मभिः इत्यादि वाक्यों में और भी कई स्थानों पर पुराणों का वर्णन है और पुराणों की अनेक कथा भी इस कांड में मिलती हैं । इस से यह निश्चय होता है कि उत्तरकांड के बनने के पहले पुराण सब बन चुके थे। पुराणों के विषय की बहुत सी शंकाएँ काल क्रम से मिट गई । जिन पुराणों को विलायती विद्वानों ने चार पांच सौ बरस का बना बतलाया था उन की सात सात सौ बरस की प्राचीन पुस्तकें मिली । लोग भागवत ही को बोपदेव का बनाया कहते थे, किन्तु चन्द के रायसे में भागवत का वर्णन मिलने से और प्राचीन पुस्तकों से यह सब बातें खंडित हो गई। उत्तरकांड से मालूम होता है कि अयोध्या, काशी और प्रयाग ये तीनों राज्य उस समय अलग थे और उस समय हिन्दुस्तान में तीन सौ राज्य अलग अलग थे। इसी कांड के चौरान्नबे सर्ग में यह लिखा है कि उत्तरकांड भार्गव ऋषि ने बनाया है । यह भी एक आश्चर्य की बात है। इस वाक्य से तो अंगरेज़ी विद्वानों का संदेह सिद्ध होता है। ।। इति ।। एक श्लोकी रामायणम् । आदौ रामतपोवनादिगमनं हत्वा मृगं काञ्चनम. वैदेहीहरणं जटायुमरणं सुग्रीवसंभाषणम् । वालीनिग्रहणं समुद्रतरणं लंकापुरीदाहनम्, पश्चाद्रावणकुम्भकर्णहननम् एतदि रामायणम् ।। २. उत्पत्स्यतेहिलोकेऽस्मिन् यदूना कीतिवर्दनः । वासुदेव इति ख्यातो विष्णुःपुरुषविग्रहः ।।२०।। स ते मोक्षयिता शापात रास्तस्मादविष्यसि । कृता च तेन कालेन निष्कृतिस्ते भविष्यति ।।२१।। भाराषतरणार्थेहि नरनारायणावुभौ । उत्पत्स्येते महावीर्योकलौयुगउपस्थिते ।।२२।। रामायण का समय ७८९