पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/८३२

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लंकाकांड-(३ सर्ग १२ श्लोक) (३ सर्ग १३ श्लोक) (३ सर्ग १६ श्लोक) (३ सर्ग १७ श्लोक) (४ सर्ग २३ श्लोक) (२१ सर्ग श्लोक अंत का) (३९ सर्ग २६ श्लोक) (६० सर्ग ५४ श्लोक) (६१ सर्ग ३२ श्लोक) (७६ सर्ग ६८ श्लोक) (८६ सर्ग २२ श्लोक) । इन श्लोकों में यंत्र और शतघ्नी का वर्णन है। यंत्र और शतघ्नी ये रामायण में किस किस प्रकार से वर्णन की गई है यह ऊपर के श्लोकों के देखने से प्रगट होगा । इन दोनों के विषय में हमें कुछ विशेष कहना नहीं है, क्योंकि हमारे पाठकों पर आप से आप यह प्रगट होगा कि यंत्र और शतघ्नी का कोई रूप रामायण से हम ठीक नहीं कर सकते । पत्थर ढोने की कल किसी चाल की बाल्मीकि जी के समय में अवश्य रही होगी और किवाड़ भी किसी चाल के कल से बंद किये जाते होंगे। यंत्र बहुत ऊंचे ऊँचे भी होते थे, जैसा कि कुंभकर्ण की उपमा में कहा गया है । शतघ्नी फौलाद की बनती थी और वृक्षों की तरह लंबी होती थी और केवल किले ही पर नहीं रहती थी परंतु लड़ाई में भी लाई जाती थी । इन बातों से हमारा यह कहना तो ठीक ज्ञात होता है कि आगे कल अवश्य थी पर शतघ्नी किस चाल का हथियार था यह हम नहीं कह सकते । ११३ सर्ग ४२ श्लोक में राजा भोज को बेटे के नाम से जो सिंह और रीछ की कहानी प्रसिद्ध है वह ठीक ठीक यहाँ कही गई है 1 (११० सर्ग २७ श्लोक) रामजी से ब्रह्मा ने कहा कि सीता लक्ष्मी हैं और आप कृष्ण हैं । (इस से हमारा बासुदेव शब्द वाला पहिला प्रमाण और भी दृढ़ होता है । (१२७ सर्ग ३ श्लोक) पुराणों का वर्णन है । (१२८ सर्ग) जब राजा लोग राज पर बैठते थे तब नज़र खिलअत इत्यादि आगे पी ली और दी जाती थीं। इसी सर्ग में लिखा है कि रामायण वाल्मीकि जी ने जो पहिले से बनाया है वह जो सुनता है सो सब पापों से छुट जाता है । इस में (पुराकृत) पद से जैसे मनु का शास्त्र भृगु ने एकत्र किया है वैसे ही वाल्मीकिजी की कविता भी किसी ने एकत्र किया है, यह संदेह होता है । इसी सर्ग के १२० श्लोक में लिखा है कि जो रामायण लिखते है। उनको भी पुण्य होता है । इससे उस काल में पोथियाँ लिखी जाती थीं, यह भी स्पष्ट है । उत्तरकांड- उत्तरकांड में बहुत सी बातें अपूर्व और कहने सुनने के योग्य हैं पर अंग्रेज़ विद्वानों ने उस के बनाने का काल रामायण से पीछे माना है, इससे हमारा उन बातों के लिखने का उत्साह जाता रहा तब भी जो बातें विशेष दृष्टि देने के योग्य हैं यहाँ लिखी जाती हैं। (३१ सर्ग श्लोक ४२।४३) रावण शिव जी की पूजा करता था, इससे दयानंद स्वामी का यह कहना कि रामायण में मूर्तिपूजा नहीं है, खंडित होता है । हाँ, यदि वे भी कह दें कि यह कांड क्षेपक है या नया बना है तो इस का उत्तर नहीं। १. महाभारत की टीका में युद्ध में नीलकंठ चतुर्धर ने यंत्र का अर्थ अग्नि यंत्र लिखा है, पर राजा राधाकांत ने अग्नियंत्र और अग्नयन इन दोनों शब्दों का अर्थ बंदूक किया है (कामान बंदूक इति भाषा") और दारुयंत्र का अर्थ कल लिखा है । महाभारत में एक जगह लिखा है "यंत्रस्यगुण दोषौ न विचाय्यों मघुसूदन । अहं यंत्रो भवान यंत्री न मे दोषो न मे गुणः । २. विषय रक्षित ग्रंथ में लिखा रे "अयः कटक संछन्ना शतघ्नी महती शिला' अर्यात लोहे के काँटों से छिपाई हुई शिला का नाम शतघ्नी है । मेदिनीकोष में करज भी इस का नाम है। ३. पाणिनि के सूत्रों में वासुदेव आदि शब्द मिले है। इस विषय का विस्तार हमारे प्रबंध 'वैष्णवता और भारतवर्ष में देखो। १. यत्रयत्रस्मयातीह रावणोराक्षसेश्वरः । जाम्बूनदमय' लिङग तत्र तत्रस्मनीयते ।।४२।। वालुका बेदि मध्येतुतल्लिडंगस्थाप्य रावणः । अर्चयामासगन्धैश्चपुष्पैश्चामतगन्धिभिः ।।४३।। Stokke भारतेन्दु समग्र ७८८