पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/८०५

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yote काटकर आप राज पर बैठा । किली में चार महीने तक इस का सिक्का चलता रहा । इस के समय में हिंदुओं ने मुसल्मान सारो को स्त्रियों को दासी और पेश्या बनाया. मसजिदों में मुरते विठा दी और कुरान की चौकी बनाकर उस पर बैठते थे। यह उपद्रव सुनकर पंजाब । सूबेदार गाजीया सेना लेकर दिल्ली में आया और खुसरो को मार कर आप बादशाह बना । गाजी खाँ ने बादशाह होकर अपना नाम गियासुदीन तुगलक रखा (१३२१) । इसका बाप मलबन का गुलाम था । पीडर और पारंगल जीता । तुगलकाबाद का किला बनाया । तिरहुत जीत कर जब लोटा, तो नगर के बाहर इस के बेटे जूना ने एक काठ का नाचघर जो इसके लौटने के आनंद में बनाया था उस के नीचे दब कर मर गया । (१३२५) जूनारखों ने गद्दी पर बैठ कर अपना नाम मुहम्मद तुगलक रक्खा । (१३२५) इसका प्रकृत नाम फखरुद्दीन अलगना था । पहिलो यह घड़ा बुद्धिमान और बड़ा बानी था । हजार दर का महल बनाया । मुगलों ने सुलह किया और दक्षिण में अपना अधिकार फैलाया । पर पीछे से ऐसे काम किये कि लोग उसे पागल समझने लगे । हुकुम दिया कि दिल्ली की प्रजा मात्र दिएणी छोड़ कर देवगढ़ में रहै, जिसको दक्षिण में शेललावाद नाम से बसाया था । इसका फल यह हुआ कि देवगढ़ लो न बसा किंतु दिल्ली उजड़ गई । अंत में फिर दिल्ली लौट आया । फारस और खुरासान जीतने के लिये तीन लाख सतरह हजार सवार इकट्ठे किए । इन में से एक लाख को चीन लेने के लिए भेजा । ये सब के सब हिमालय में नष्ट हो गये, कोई न बचा । बहुत से कर प्रचलित किए । लोग शहर छोड़ कर जंगलों में भाग गये पर वहाँ भी पीष्ठा न छोड़ा और जानवरों की भांति उन लोगों का शिकार किया गया । कागज का सिक्का चलाया बड़ा भारी दुर्भिक्ष पना । लाखों मनुष्य मरे । चारों और विद्रोह हो गया । बंगाल और तैलग स्वाधीन हो गये । मालवा, पंजाब और गुजरातवाले विद्रोही हो गये । कर्नाटक में विजयपुर नाम का एक नया राज्य हो गया । हुसैन वामनी ने मध्यप्रदेश में एक नया राज्य बनाया । अंत में विद्रोह शान्ति के लिए स्वयं सब जगह पूमा कितु मालपा और पंजाब छोड़कर कड़ी शांत न हुआ, रास्ते में सिंधु के पास ठहा में इसकी मृत्यु हुई (१३५१) । मुहम्मद का भाई फीरोजशाह बादशाह हुआ (१३५१) । इसने स्थान स्थान पर हम्माम, चिकित्सालय, सराव, पुल, तालाब, पाठशाले और सुंदर महल बनवाए थे । काल से डाँसी हिसार तक जमुनाजी नहर निकाली । इसने अपने को अति वृद्ध समझकर नसीरवीन को राज्य दिया किंतु इस के दो घरस पीछे नसीरुद्दीन के दो भाइयों ने बलवा करके इस को निकाला दिया और फीरोज शाह के पोते गियासुचीन को तख्त पर बैठाया । १३८९ में नध्ये बरस की अवस्था में फीरोज मरा और उसके पांच सी महीने बाद १९८९ में इन्डी बलवाइयों नो गियासुधीन को भी मार डाला और उसके भाई अबूबकर को बादशाह किया । अबूबकर साल भर भी राज्य नहीं करने पाया कि नसीरुद्दीन उस को बीत कर अप बादशाह बन बैठा । चार बरस राज्य कर के यह मर गया और इस का बड़ा बेटा हुमायूं आने को सिकंदर शाइ प्रसिद्ध करके बादशाह हुआ । यह केवल ४५ दिन जीजा और इसके पीछे का छोटा भाई महमूद तुगलक बादशाह हुबा (१३९४) । इस की अवस्था छोटी होने के कारण राज्य में चारों ओर आप्रबंध हो गया और गुजरात, मालया और खानदेश के सूबे स्वतंत्र हो गये और वज़ीर विगहकर जौनपुर का स्वतंत्र राजा बन श्रेठा । इसी समय अमीर तैमूरलंग जो कि परमेश्वर की मानो मूर्तिमयी सहार शक्ति थी बहुत से तातारियों को लेकर हिंदुस्तान में आया (१३९८)। यह लंगड़ा था। इस के नाम तैमूर साहाकिरा और गोरको थे और जगवाहक चंगेजखों के यश में था। पंजाब के रास्ते भटनेर इत्यादि विने नगर या गाँव मिले उनको प्रताय की तरह लटता और जलाता हुआ दिल्ली को भी खूब लूटा और जलाया । लाख मनुष्य जो रास्ते में पकर गये थे कतल किये गये। नहीं मारे गये । महमूद गुजरात में भाग गया और तैमूर के नाम का खुतबा पा गया । सन् १३९५ में मेरठ ( बरस से छोटे लाडके गुलामी के लिए लुटला हुआ यह अपने देश चला गया । महमूद फिर जाया और बरस राज्य करके मर गया । और दौलत खां लौदी ने पंद्रह महीने तक राज्य किया । सैमूर से सूबेदार खिा खा सैयद ने इस से राज्य छीन लिया । सैषाद अहमद ने अपने जामेवम नामक नन में नसीरुधीन आदि दो तीन बादशाह और लिखे है जो और तवारीखों में नहीं है । १४१४ से १४२१ तक खिज्र खां बादशाह रहा और उस के मरने पर उस का बेटा मुबारकशाह वारशाह हुआ । १४३६ में उस के मंत्री अब्दुल सैयद और सानंद सत्री ने उस को मार कर उस के मतीजे मुहम्मद को बादशाह बनाया । १४४४ ई. में इसके मरने पर इस का बेटा अलाउदीन बादशाह हुआ। उस समग को बादशाहत नाम मात्र को था । १५५० ई. में पहलुल लोदी ने पंजाब से आकर तन्ज छीन लिया और बादशाह दर्पण ७६१ ROAK Naveta