पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/७३८

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गिहलोट वंश की चतुर्विंशति शाखा । तन्मध्य अनेक शाखा वाप्पा से समुत्पन्न । चित्तौर-अधिकार के पश्चात वाप्या ने सौराष्ट्र देश में गमन कर बंदर द्वीप के यूसुफगुल' नाम राजा की कन्या से विवाह किया । बदर द्वीप-निवासी व्यानमाता नामक एक देवी की उपासना करते थे । वाप्पा ने इस देवी की प्रतिमा और स्वीय बनिता सह चित्तौर में प्रत्यागमन किया था । गिहलोट वंशीय अद्यावधि व्यानमाता की उपासना करते हैं । वाप्पा ने इस देवी को जिस मंदिर में प्रतिष्ठित किया था, वह आज तक चित्तौर में विद्यमान है, तद्भिन्न तत्रत्य अन्यान्य अनेक अट्टालिका वाप्या कर्तृक विनिर्मित हैं, यह भी प्रवाद प्रचलित है । यूसुफगुल के कन्या के गर्भ में वाप्पा को एक पुत्र जन्मा था, उस का नाम अपराजित । द्वारका नगरी के निकटवर्ती कालवायो नगर के प्रमार वंशीव जनैक राजा की कन्या से भी वाप्पा ने विवाह किया था । उस रमणी के गर्भ में इस के पहिले वाप्पा को और एक आसिल नामक पुत्र जन्मा या, यदिच आसिल ज्येष्ठ तथापि अपराजित चित्तौर में जन्मे थे, इस कारण उन्होंने वहाँ वहाँ विपुल वंश विस्तार हुआ था । इस वंश की उपाधि आसिला गिहलोट है । करते थे । सिंधु देश से आगत बिन कासिम के साथ उन लोगों का समागम हुआ था । हिजरी १४३ अब्द में उन लोगों ने किरमान और पेशावर प्रदेश और तत सीमावर्ती समुदय स्थान अधिकार किया था ।" कोहिस्थान का भूगोल वृत्तांत, रोहिला शब्द की व्युत्पत्ति और अन्यान्य प्रयोजनीय विषय टॉड साहब ने स्वीय अनुवाद में परित्याग किया है। १. कथित है, समुद्र में बंदर दीप और स्थल में चायाल नामक स्थान यूसफगुल राजा के अधिकार में था । यूसफगुल और वंशीय राजपूत, अनल परम का संस्थापनकर्ता रेणु राज अनुमान होता है । इसीधूसफगुल का वृत्तांत कुमार-पालचरित नामक ग्रंथ में लिखा है । रेणुराज के पूर्व पुरुष बंदर द्वीप के अधिपति थे । बंदर द्वीप आज कल पोर्तुगीस जाति के अधिकार में है। इसका आधुनिक नाम डिऔ है । यह नाम पोर्तुगीस जाति प्रदत्त है। २. आसिला के नामानुसार एक किला का आसिला नाम रक्खा था, यह वंशपत्रिका से ज्ञात होता है । संग्रामदेव नामक जनेक राजा के निकट से कुंबायत (कांबे) नगर अधिकार करने के अभिलाष मों' आसिल के पुत्र विजयपाल समर में निहत हुए थे। विजय की इसी आकस्मिक मृत्यु घटना के पहिले तदगर्भस्थ पुत्र अकाल में भूमिष्ठ हुआ था, उस पुत्र का नाम सेतु । टॉड साहब कहते हैं अस्वाभाविक मृत्यु-प्राप्त व्यक्तिगण भूतयोनि प्राप्त होते है । हिंदूगण का यह संस्कार है और स्त्री भूत का हिंदुस्तानी नाम चुरइल, सेतु की माता के अस्वाभाविक मृत्यु वशत : सेतु का वश कोचोराइल नाम से प्रसिद्ध हुआ । आसिल से द्वादशतम अधस्तन पुरुष बीजा गिरनार के राजा श्रृंगार देव के मांजे थे और मातुल के निकट से इन्होंने सालन स्थान प्राप्त किया था । सुराट का राजा जयसिंह देव के साथ समर में बीजा निहत हुए थे । फिरिश्ता ग्रंथ में जो देवी सालिमा वंश का उल्लेख है, अनुमान होता रहा है देवी और चोरइल, इन दो नाम से समता से तन्नाम की उत्पत्ति हुई है। भारतेन्दु समग्र ६९४