पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/७३५

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1 WA वाप्पा के अनेक पुत्र हुए । उन में से किसी किसी ने स्वीय वंश के प्राचीन स्थान सौराष्ट्र राज्य में गमन 'किया । आईने अकबरी ग्रंथ में लिखा है कि अकबर सम्राट के समय में इस वंश के पचास सहस्र पराक्रांत सरदार सौराष्ट्र देश में वास करते थे । वाप्पा के अपर पाँच पुत्र ने मारवाड़ देश में गमन किया था । गोहिल- वाल नामक स्थान में गोहिल वंशीय भी वाप्पा की संताने हैं । परंतु वे लोग अपने वंश का मूल विवरण आप भूल गए हैं । इति पूर्व में उन लोगों ने क्षीर १ प्रदेश में आ कर वास किया था । और अब पूर्व काल के पूर्व पुरुषगण के नाम वा वंश का अन्य कोई विवरण वह लोग नहीं बतला सकते । घटनाक्रम से उन लोगों ने बालभी ग्राम में वास भी किया, किंतु यह नहीं जाना कि यही स्थान उन लोगों की पैत्रिक भूमि है । यह लोग अब अरब गण के सहवास से वाणिज्य कर के जीविका निर्वाह करते हैं। वाप्पा के चरम काल का विवरण सपिक्षा आश्चर्य है । कधित है परिणत वसय में उन्होंने स्वरीय राजसंतान गण को परित्याग कर के खुरासान राज्य में गमन किया था और तबेश अविकार करके म्लेच्छ वंशीय अनेक रमणी का पाणिग्रहण किया था। इन सब रमणी के गर्भ से बहुसंख्यक संतान समुत्पन्न हुए सुना जाता है कि एक शत वर्ष की अवस्था में वाप्पा ने शरीर त्याग किया । देलवारा प्रदेश के सर्दार के निकट एक ग्रंथ है, उस में लिखा है कि वाप्पा ने इस्पहान, कंदहार, कश्मीर, ईराक, तूरान और कफरिस्तान प्रभृति देश अधिकार करके तत् समुदाय देशीया कामिनियों का पाणिपीड़न किया था । उन म्लेच्छ महिला के गर्भ से उनको १३० पुत्र जन्मे थे । उन लोगों की साधारण उपाधि 'नौशीरा पठान है" । उन सब पुत्रों में से प्रत्येक ने अपने अपने मातृनामानुयायी नाम से एक एक वंश विस्तार किया है । वाष्पा के हिंदू संतान की संख्या भी अल्प नहीं । हिंदू महिला गण के गर्भ में उन्होंने ९८ पुत्र उत्पादन किया था । उन लोगों की उपाधि "अग्नि उपासी सूर्यवंशी" है । उक्त ग्रंथ में लिखा है, वाप्पा ने चरम काल में संन्यास आश्रम अवलंब कर के सुमेरु शिखर २ मूल में अवस्थिति किया था । उन का प्राण त्याग नहीं हुआ है. जीवदशा में ही इस स्थान में उन की समाधि क्रिया सम्पन्न हुई थी । अन्यान्य प्रवाद में कथित है कि वाप्पा की अंत्येष्टि क्रिया संबंध में उन के हिंदू और म्लेच्छ प्रजागण के मध्य तुमुल कलह उपस्थित हुआ है । हिंदू लोग उन का शरीर अग्निदग्ध और म्लेच्छ लोग मिट्टी में प्रोत्थित करने की कहते थे । उभय दल ने इस विषय का विवाद करते करते शव का आवरण खोल कर देखा शव नहीं है तत् परिवर्तन में कतिपय प्रफुल्ल शतदल विराजमान है । उन लोगों ने वह सब कमल ले कर हृद में रोपन कर दिया था । पारस्य देश के नैशेरवा की और काशी के प्रसिद्ध भगवद्भक्त कवीर की अन्त्येष्टि क्रिया का प्रवाद भी ठीक ऐसा ही है। मेवाड़ के राजवंश के प्रधान पुरुष वाप्पा का यह संक्षेपक इतिहास प्रकटित किया । प्राचीन कालीन अन्यान्य राषपुरुष की भांति वाप्पा की कहानी भी सत्यमिथ्या से मिलित है । किंतु इस विचार को छोड़कर चित्तौर के सिंहासन में सूर्यवंशी राजगण ने दीर्घ कालावधि जो आधिपत्य किया था, उस आधिपत्य का वाप्पा से ही प्रारंभ है इस कारण गिहलोट गण का चित्तौर का राजस्व कितने दिन का है यह निरूपण करने को वाप्पा का जन्मकाल का निरूपण करना अत्यंत आवश्यक है। बल्लभीपुर २०५ संवत शिलादित्य के समय में विनष्ट हुआ था। शिलादित्य से वाप्पा दशम पुरुष, परंतु आश्चर्य का विषय यह है कि उदयपुर के राजभवन की वंशपत्रिका में वाप्पा का जन्म-काल १९१ संवत् में लिखा है । १. मारवाड़ प्रदेश के दक्षिण-पश्चिम प्रान्त में लूणी नदी के निकट क्षीर भूमि है। २. कोई कोई कहते है हिंदू ग्रंथानुसार पृथ्वी के उत्तर केंद्र का नाम सुमेरु । किसी किसी ग्रंथ में सुमेरु तद्रूप अर्थ में व्यवहृत हुआ है, परंतु पुराण केवर्णन से अनुमान होता है कि किसी विशेष पर्वत का नाम सुमेरु है । जम्बू द्वीप के मध्य इलावृत वर्ष में "कनकाचल सुमेरु विराजमान है, इसके दक्षिण में हिमवान, हेमकूट और निषध पर्वत, उत्तर नील और श्वेत पर्वत ।" चंद्रवंश का आदि पुरुष इला स्त्री रूप में जहाँ "आवृत्ति" हुए थे, उस का नाम इलावृत्त वर्ष । 'सुमेरु के दक्षिण प्रथमत : भारतवर्ष' । इस से अनुमान होता है कि मध्य एशिया का नाम इलावृत्तवर्ष । अनुसंधान करने से सुमेरु आविष्कृत हो कर पौराणिक भूगोल वृत्तांत का अधिकांश परिष्कृत हो सकता है । केवल नाम परिवर्तन होकर इतना गबड़ा हुआ । कोई कोई कहते है कि पेशावर और जलालाबाद के मध्यस्थल में प्राय : चौदह सौ हस्त उच्च मारकोह नाम अति अनुवर जो एक पर्वत है वही हिंदू पुराण का सुमेरु है उदय पुरोदय ६९१