पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/७२

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1106 तन्यो बितान गगन अवनी लो भयो सुहावन तीर । । वात पिनु करत पिया बदनाम | जमुना-बल झलकत आभा मिलि लहरत रंग भरि नीर। कौन हेतु यह खाउ हरे मम बिना बात ये-काम । धीर समीर बहत अंग सहरत सोभित धीर समीर । आज गई हो प्रात जमुन-नन आयो नई पनम्याम । 'हरीचंद' इक तुष पिनु फीको सब मानत बलपीर ।। पर मोहि जल बीच हलोरयो तोरो गर को दाम । सखी री साँझ सहायक आई लार ककन को दियो खरोटा मेरे मस सुनु आम । मेट्यो भय पैरो प्रकास को सब कछु दीन दुराई । 'हरीचंद जाते जामें सब छिपे न प्रीति मुदाम १७ अवनि अकास एक भयो नहि परत दिखाई। विहरत रस भरि लाल बिहारी सूने भए सबै थल अजवन घर में रहे में रहे दुराई 1 | ज्यों ज्यो धन गरजत है त्यो त्यो लांट रहत पिय प्यारी। गरजि बुलावति तोहि चंचला चमकत राह दिखाई। होड़ा-होड़ी धन नामांन सो कोन करन सबकारी । औरन के चकचौधा लावत तेरी करत सहाई । बोलत मोर दामिनी चमकत लखि उमगत रस भारी । तैसेहि झीगुर झनकत नूपुर जासों नाहिं सुनाई । | रहे सिहराइ भुजा भुज दीने राधा भान-दुलारी । वायु सुखद ता दिसि तोहि भेजत तरू हिलि रहल बुलाई। 'हरीचन्द कपि गन किए पावन कविता दोस निवारी। बरसत नान्ती बूंद हरन श्रम कोकिल करत बधाई । दासिन भैर कर बिनु बात 'हरीनंद' चलि उत किन भामिनि रह पिय अंकम लाई। विधन बनत बिनु बात कंज मैं जब कबहूँ चमकात । सांझ भई री परम सुहानि विरि नम कीन बितान । निधरक जुगल रहन नहि पावत प्रगटावत रस-बान । भा पर जलना-ना भयो सार सो भान । 'हरीचर' आखिर तो चपला हि नहि सकत सिहात। घर गए गोप गाय गई गोहर सूनभये मग थान । दामिनि बैरिनि धेर परी। पायम समय जान मय वर्गाह माग नर-नारी पटनान । जान न देत पिया प्यारे ढिग प्रगटत बात दूरी । अनि काम एक भयो दौसयत परन नाहि कह जान। रेन अंधेरी स्याम प्रसन तन जाप रहस धरी । झनकत झिालनी रट रहे दादर कियो जात नाह कान । 16 चर्माक बिनु पाल बैरिनी मेरी नाज हरी । तारं चन मंद भए सारे गांसह कोउ न प्रयान । "हरीचन' उठि चा निधरक त् मति चूक करि मान । होच' नांज मक क्रांती पिय-मारग निको ।१० | घन गरजत बूंदन सखि वर नहि रांहयै धीर धरी । जगायन ही मनु अाया। | मंगलमय सखि जुगाला-बिहार । भयो भोर पिय उठी उठी कहि मधुर गर्राज सुनायो । बड़े प्रात ही कज भोट लें क्यों चुपके नहि खेत निहार। बोगे मोर कोकिला कहके दादर रोर मचायो । भवन रस मंगल तहाँ जुगल मंगल की खानि । गर्मािन दमकी मंगल बंदी-जन मनु नाच्यो गायो । मंगल बाह बाद मैं नीन मंगा वान प्रामाही पानि । रोटी धुंद परांस चौकाए भाषम सधे मिटायो । मंगल जागत भालस पागत मंगल नीर भरे जुग नैन । 'हरीनंद' पिच प्यारी को इन घेगाह आज जगायो ।४ मंगल लापांट लपटि के पुनि पुनि आजु प्रानप्यारी प्राननाथ सो मिलन चाली कवर उठत कार कबहुँ सैन । लाख के पास दास साजी है सवारी । मंगल परिरभन आलिंगन मंगल तोतरे शब्द उचार । नून के पाँवरे विलाय धन धनि मंगल सुनाय 'हरीचर' मंगल बल्लभ-पद जा दािन दर्माफ धागे कर जियारी । बल विहरत बिना बिकार ।११ ठौर और राह बतावत झिाली श्रा का मंगल धन उनए । बूंद बसि हरे श्रम सुखकारी । 'हरीचंद समे को उचित उपचार कार परसत बुंदन मनु अभिसेचत मगल कलस हाए । पावत न्यौछावर पिच जनहारी । नकि मंगलामुखी मिनी मंगल करत नए । आजु तन भीजे बसनन सोहे देखि लेहु भरि लोचन सोभा जुगल अरी मन मोहें उपरे तन अनुरागहु उर के छिपे न जप लजोडे । रति के चिन्ह जुगा तन बसनन देकेड उरि उमटोहैं। अंग प्रभा मनु बसन सको नहिं प्रगटि खुली सब सौहै । 'हरीनद' दुग भौजि रहे कि उडिन सकत लानना है Te न पावस आयो। गरजत मंद मंद सोई मंगल मनवत कूज छए । मंगल परख बग की पंगत मंगल दादर गान गए । मंगा नाचन मोर मोरनी मंगा कंज बितान का। मंगल ब्रज वृदावन जमुना मंगल गिरिवर नाम लाए । 'हरीच: मंगल बाभ-पर जाका जगन विहार भए ।१२ 18 मास ये बदरा बरसनगागरी। मोहि मोहन पिय बिनु जानि जानि, भारतेन्दु समग्न ३२