पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/७१८

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यदि प्रयोजन पड़े तो आप सरकार की नियत सेना के साथ मिलकर सहायता करें इस शुभ अवसर पर हृदय से धन्यवाद पाने के योग्य है। हे इस देश के सरदार और रईस लोग, जिन की राजभक्ति इस राजा के बल को पुष्ट करने वाली है और जिनकी उन्नति इसके प्रताप का कारण है, श्रीमती महारानी आप को यह विश्वास करके धन्यवाद देती है कि यदि इस राज के लाभों में कोई विघ्न डाले या उन्हें किसी तरह का भय हो तो आप लोग उस की रक्षा के लिये तैयार हो जायेंगे । मैं श्रीमती की ओर से और उन के नाम से दिल्ली आने के लिये आप लोगों का जी से स्वागत करता हूँ और इस बड़े अवसर पर आप लोगों के इकट्ठे होने को इंगलिस्तान के राजसिंहासन की ओर आप लोगों की उस राजभक्ति का प्रत्यक्ष प्रमाण गिनता हूं जो श्रीमान प्रिंस आफ वेल्स के इस देश में आने के समय आप लोगों ने दृढ़ रीति पर प्रकट की थी । श्रीमती महारानी आप के स्वार्थ को अपना स्वार्थ समझती हैं, और अँगरेजी राज के साथ उसके कर देने वाले और स्नेही राजा लोगों का जो शुभ संयोग से संबंध है उस के विश्वास को दृढ़ करने और उसके मेल जोल को अचल करने ही के अभिप्राय से श्रीमती ने अनुग्रह करके वह राजसी पदवी ली है जिसे आज हम लोग प्रसिद्ध करते हैं। हे हिंदुस्तान की राज राजेश्वरी के देसी प्रजा लोग, - इस राज को वर्तमान दशा और उस के नित्य के लाभ के लिये अवश्य है कि उन के प्रबंध को जांचने और सुधारने का मुख्य अधिकार ऐसे अँगरेजी अफसरों को सुपुर्द किया जाय जिन्होंने राज काज के उन तत्त्वों को भली भाँति सीखा है जिनका बरताव राज राजेश्वरी के अधिकार स्थिर रहने के लिये अवश्य है । इन्हीं राजनीति जानने वाले लोगों के उत्तम प्रयत्नों से हिंदुस्तान सभ्यता में दिन दिन बढ़ता जाता है और यही उसके राज काज संबंधी महत्व का हेतु और नित्य बढ़ने वाली शक्ति का गुप्त कारण है और इन्हीं लोगों के द्वारा पच्छिम देश का शिल्प, सभ्यता और विज्ञान, (जिन के कारण आज दिन यूरोप लड़ाई और मेल दोनों में सब से चढ़ बढ़ कर है) बहुत दिनों तक पूरब के देशों में वहाँ वालों के उपकार के लिये प्रचलित रहेगा। परंतु हे हिंदुस्तानी लोग ! आप चाहे जिस जाति या मत के हो यह निश्चय रखिये कि आप इस देश के प्रबंध में योग्यता के अनुसार अँगरेजों के साथ भली भाँति काम पाने के योग्य हैं, और ऐसा होना पूरा न्याय मी है, और इंगलिस्तान तथा हिंदुस्तान के बड़े राजनीति जानने वाले लोग और महारानी की राजसी पार्लमेंट व्यवस्थापकों ने बार बार इस बात को स्वीकार भी किया है । गवर्नमेंट ऑफ इंडिया ने भी इस बात को अपने सम्मान और राजनीति के सब अभिप्रायों के लिये अनुकूल होने के कारण माना है । इसलिये गवर्नमेंट आँव इंडिया इन बरसों में हिंदुस्तानियों की कारगुजारी के ढंग में, मुख्यकर बड़े बड़े अधिकारियों के काम में पूरी उन्नति देख कर संतोष प्रगट करती है। इस बड़े राज्य का प्रबंध जिन लोगों के हाथ में सौंपा गया है उन में केवल बुद्धि ही के प्रबल होने की आवश्यकता नहीं है वरन उत्तम आचरण और सामाजिक योग्यता की भी वैसी ही आवश्यकता है । इस लिये जो लोग कुल, पद और परंपरा के अधिकार के कारण आप लोगों में स्वाभाविक ही उत्तम हैं उन्हें अपने को और अपने संतान को केवल उस शिक्षा के द्वारा योग्य करना आवश्यक है, जिससे कि वे श्रीमती महारानी अपनी राजराजेश्वरी की गवर्नमेंट की राजनीति के तत्वों को समझे और काम में ला सकें और इस रीति से उन पदों के योग्य हो जिन के द्वार उन के लिये खुले हैं। राजभक्ति, धर्म, अपक्षपात, सत्य और साहस देश संबंधी मुख्य धर्म है उनका सहज रीति पर बरताव करना आप लोगों के लिये बहुत आवश्यक है, और तब श्रीमती की गवर्नमेंट राज के प्रबंध में आप लोगों की सहायता बड़े आनंद से अंगीकार करेगी, क्योंकि पृथ्वी के जिन जिन भागों में सरकार का राज है वहाँ गवर्नमेंट अपनी सेना के बल पर उतना भरोसा नहीं करती जितना कि अपनी संतुष्ट और एकजी प्रजा को सहायता पर जो अपने राजा के वर्तमान रहने ही में अपना नित्य मंगल समझकर सिंहासन के चारों ओर जी से सहायता करने के लिये इकट्ठे हो जाते हैं। श्रीमती महारानी निर्बल राज्यों को जीतने या आसपास की रियासतों को मिला लेने से हिन्दुस्तान के राज की उन्नति नहीं समझती वरन् इस बात में कि इस कोमल और न्याययुक्त राज्यशासन को निरुपद्रव बराबर चलाने में इस देश की प्रजा क्रम से चतुराई और बुद्धिमानी के साथ भागी हो । जो हो उनका स्नेह और कर्तव्य भारतेन्दु समग्न ६७४