पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/७१७

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हे अंगरेजी राज के कार्यकर्ता और सच्चे अधिकारी लोग - यह आप ही लोगों के लगातार पारश्रम का गुण है कि ऐसे ऐसे फल प्राप्त हैं, और सब के पहले आप ही लोगों पर मैं इस समय श्रीमती की ओर से उनकी कृतज्ञता और विश्वास को प्रगट करता हूँ। आप लोगों ने इस भारी राज की भलाई के लिये उन प्रतिष्ठित लोगों से जो आप के पहले इन कामों पर नियत ये किसी प्रकार कम कष्ट नहीं उठाया है और आप लोग बराबर ऐसे साहस, परिश्रम और सचाई के साथ अपने तन, मन को अर्पण करके काम करते रहे जिस से बढ़कर कोई दृष्टांत इतिहासों में न मिलेगा। कीर्ति के द्वार सब के लिये नहीं खुले हैं परंतु भलाई करने का अवसर सब किसी को जो उसकी खोज रखता हो मिल सकता है । यह बात प्राय : कोई गवर्नमेंट नहीं कर सकती कि अपने नौकरों के पदों को जल्द जल्द बढ़ाती जाय, परंतु मुझे विश्वास है कि अगरेजी सरकार की नौकरी में 'कर्तव्य का ध्यान' और 'स्वामी की सेवा में तन, मन को अर्पण कर देना' ये दोनों बातें 'निज प्रतिष्ठा' और 'लाभ' की अपेक्षा सदा बढ़कर समझी जायँगी । यह बात सदा से होती आई है और होती रहेगी कि इस देश के प्रबंध के बहुत से भारी भारी और लाभदायक काम प्राय : बड़े बड़े प्रतिष्ठित अधिकारियों ने नहीं किये हैं वरन् जिले के उन अफसरों ने जिनकी धैर्यपूर्वक चतुराई और साहस पर संपूर्ण प्रबंध का अच्छा उतरना सब प्रकार आधीन है। श्रीमती की ओर से राजकाज संबंधी और सेना संबंधी अधिकारियों के विषय में मैं जितनी गुणग्राहकता और प्रशंसा प्रगट करूँ थोड़ी है क्योंकि ये तमाम हिंदुस्तान में ऐसे सूक्ष्म और कठिन कामों को अत्यंत उत्तम रीति पर करते रहे हैं और करते हैं जिन से बढ़कर सूक्ष्म और कठिन काम सरकार अधिक से अधिक विश्वासपात्र मनुष्य को नहीं सौंप सकती । हे राजकाज संबंधी और सेना संबंधी अधिकारियो, -जो कमसिनी में इतने भारी जिम्मे के कामों पर मुकर्रर होकर बड़े परिश्रम चाहने वाले नियमों पर तन, मन से, चलते हो और जो निज पौरूष से उन जातियों के बीच राज्य प्रबंध के कठिन काम को करते हो जिन की भाषा, धर्म और रीतें आप लोगों से भिन्न हैं - मैं ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ कि अपने अपने कठिन कामों को दृढ़ परंतु कोमल रीति पर करने के समय आप को इस बात का भरोसा रहे कि जिस समय आप लोग अपने जाति की बड़ी कीर्ति को थामें हुए हैं और अपने धर्म के दयाशील आज्ञाओं को मानते हैं उसी के साथ आप इस देश के सब जाति और धर्म के लोगों पर उत्तम प्रबंध के अनमोल लाभों को फैलाते हैं। उस पश्मि की सभ्यता के नियमों की बुद्धिमानी के साथ फैलाने के लिये, जिस से इस भारी राज का धन बराबर बढ़ता गया, हिंदुस्तान पर केवल सरकारी अधिकारियों ही का एहसान नहीं है, वरन् यदि मै इस अवसर पर श्रीमती की इस यूरोपियन प्रजा का जो हिंदुस्तान में रहती है पर सरकारी नौकर नहीं है, इस बात का विश्वास कराऊँ कि श्रीमती उन लोगों के केवल उस राजभक्ति ही की गुणग्राहकता नहीं करती जो वे लोग उनके और उनके सिंहासन के साथ रखते हैं किंतु उन लाभों को भी जानती और मानती हैं, जो उन लोगों के परिश्रम से हिंदुस्तान को प्राप्त होते हैं तो मैं अपनी पूज्य स्वामिनी के विचारों को अच्छी तरह न वर्णन करने का दोषी ठहरूँगा। इस अभिनाय से कि अपने राज के इस उत्तम भाग को प्रजा को सरकार की सेवा या निज की योग्यता के लिये गुणग्राहकता देखाने का विशेष अवसर मिले श्रीमती ने कृपापूर्वक केवल स्टार आफ इंडिया के परम प्रतिष्ठित पद वालों और आर्डर आफ ब्रिटिश इंडिया के अधिकारियों की संख्या ही में थोड़ी सी बढ़ती नहीं की है किंतु इसी हेतु एक बिल्कुल नया पद और नियत किया है जो "आर्डर आफ दि इंडियन एम्पायर' कहलायेगा। हे हिंदुस्तान की सेना के अंगरेजी और देशी अफसर और सिपाहियो, -आप लोगों ने जो भारी भारी काम बहादुरी के साथ लड़ भिड़कर सब अवसरों पर किये और इस प्रकार श्रीमती की सेना को युद्धकीर्ति को थामे रहे, उस का श्रीमती अभिमान के साथ स्मरण करती है । श्रीमती इस बात पर भरोसा रखकर कि आगे को भी सब अवसरों पर आप लोग उसी तरह मिलजुल कर अपने भारी कर्तव्य को सचाई के साथ पूरा करेंगे. अपने हिंदुस्तानी राज में मेल और अमन चैन बनाए रखने के विश्वास का काम आप लोगों ही को सुपुर्द करती हे वालटियर सिपाहियो. - आप लोगों के राजभक्तिपूर्ण और सफल यत्न जो इस विषय में हुए हैं कि दिल्ली दरबार दर्पण ६७३