पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/७०९

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का काम चलाया। इन लोगों के समय में औरंगजेब ने महाराष्ट्र' को बहुत बिगाड़ना चाहा, परंतु कुछ फल न हुआ, यहाँ तक कि वह सन १७०७ में आप ही मर गया । जब संभाजी का पुत्र शिवाजी औरंगजेब के पास रहता था तब औरंगजेब इस के दादा को लुटेरा शिवाजी और उस को साह शिवाजी कहता था, इसी से दूसरे शिवाजी का नाम साहूराजा हुआ । सन १७०८ ई. में जब साहू औरंगजेब की कैद से छूट कर आया तब सर्दारों ने उसे सितारे की गद्दी पर बिठाया, और तब उस की चाची ताराबाई ने अपने पुत्र शिवाजी को लेकर कोलापुर का एक अलग स्वतंत्र राज स्थापन किया । जब साहू राजा १७ वर्ष तक कैद में था तब औरंगजेब की बेटी उस पर और उस की मा पर बड़ी मेहरबान थी । इसी से औरंगजेब ने अपने यहाँ के दो बड़े बड़े मरहठे सरदारों की बेटी उसे ब्याह दी थी और उसे बहुत सी जागीर भी दी थी । जब साहू राजा दिल्ली से सितारे आता था तब एक स्त्री ने अपना दूध पीनेवाला बालक उस के पैर पर रख दिया था, जिस के वंश में अब अकलकोट के राजा हैं । साहू राजा का स्वभाव विषयी था, इसी से उस ने अपना सब काम घनाजी राव यादव को सौंप रक्खा था और उसने आवाजी पुरंदरे और बालाजी विश्वनाथ नाम के दो मनुष्य अपने नीचे रक्खे थे । घना जी के मरने पर सन् १७१४ ई. में बालाजी विश्वनाथ पेशवा हुआ और महाराष्ट्र के इतिहास में इस का नाम सब से प्रसिद्ध है। साहू राजा बयालीस वर्ष राज कर के छाछठ वर्ष की अवस्था में सन् १७४९ ई. में मर गया और इस के पीछे सितारे का राज्य पेशवा के अधिकार में रहा । यह मरते समय लिख गया था कि ताराबाई के पोते राजाराम को गोद ले कर कर हमारी गद्दी पर बिठा कर राज काज पेशवा करें। राजाराम सन् १७४९ ई. में नाम मात्र का राजा हो कर सन् १७७० तक राज्य करके अपुत्र मरा । फिर शिवाजी के भांजे के वंश का एक पुरुष दत्तक लेकर साहू महाराज के नाम से गद्दी पर बिठाया, जो सन् १८०८ ई0 में मरा और उस के पीछे उस का पुत्र प्रताप सिंह गद्दी पर बैठा । इस को सन् १८१८ में सर्कार अंगरेज बहादुर ने पेशवा के राज्य से बहुत मुल्क दिया, पर सन् १८४९ में इस दोषारोप होने से अंगरेजों ने इसे निकाल कर इसके छोठे भाई शाहाजी को गद्दी पर बिठाया, जो सन् १८४८ ई. में निवेश मर कर इस वंश का अंतिम राजा हुआ और उसका सारा राज्य सर्कारी राज्य में मिल गया । दुसरा भाग बालाजी विश्वनाथ ने पेशवा होकर सैयदों की सहायता से दिल्ली के परतंत्र बादशाह से अपने स्वामी का गया हुआ सब राज्य फेर लिया और छ वर्ष पेशवाई करके सन् १७२० में सासवड़ गाँव में मर गया । उसी साल में हैदराबाद के नवाबों का मूल पुरुष निज़ामुलमुल्क नर्मदा के इस पार आकर बादशाही सेना से लड़ाई कर रहा था और अपना अधिकार बहुत बढ़ा लिया था । साहू राजा ने बालाजी विश्वनाथ के बड़े पुत्र बाजीराव को पेशवाई का अधिकार दिया । यह मनुष्य शूर और युद्ध में बड़ा कुशल था और उस का छोटा भाई चिमनाजी आप्पा भी बुद्धिमान और वीर था और अपने बड़े भाई की राज्य और लड़ाई के कामों में बड़ी सहायता करता था । निजामुलमुल्क से इस ने तीन लड़ाई बड़ी भारी भारी जीती और गुजरात, मालवा इत्यादि अनेक देशों पर अपना इख्तियार कर लिया और अपनी सेना ले कर सारे हिंदुस्थान को लूटता और जीतता फिरता था । संधिया, हुल्कर और गाइकवाड़ ने इसी के समय उत्कर्ष पाया, पर सेंधिया के पुरुषा पहले से बादशाही फौज के सारदारों में थे । वरंच कहते हैं कि औरंगजेब ने इन्हीं पुरुषों में से किसी की बेटी साइराजा को व्याही थी । नागपुर वालों ने भी इसी के समय राज पाया । चिमनाजी आप्पा ने पोर्तुगीज लोगों से साष्ठीनेट का इलाका बड़ी बहादुरी से छीन लिया था । बाजीराव सन् १७४० में मरा और उस का बड़ा पुत्र बालाजी उर्फ नाना साहब पेशवा हुआ । इस का एक छोटा भाई रघुनाथ राव नाम का था । इस ने पूना को अपनी राजधानी बनाया । इसके छोटे भाई के अधिकार में राज्य का सब काम था । यद्यपि नाना साहब राज्य के कामों में बड़ा चतुर था पर कपटी और बड़ा आलसी मनुष्य था, पर उस के दोनों भाई अपने काम में ऐसे सावधान थे कि उस की बात में कुछ फरक न पड़ने पाया । सदाशिव राव भाऊ ने रामचंद्र बाबा शेणवी को साथ लेकर महाराष्ट्री राज्य का फिर से नया और पक्का महाराष्ट्र देश का इतिहास ६६५