पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/७००

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हल्दोपपत्तनायामगोउलीग्राम निवासिनो निखिलजन पदानुपगतानपि च राजाराची युवराज मन्त्रिपुरोहितप्रतिहार-सेनापतिभाण्डारिकाक्षपटलिकभिकनैमिमित्तिकान्तः पुरिक इतकरि तुरगपत्तनाकरस्थान्नागोकुलाधि पुरुषानाज्ञापयति बोधयत्यादि- शतिश्चयथा विदितमस्तुभवतां मयोपरिलिखितग्राम: सजलस्थल: सहोहलवणाकरः समत्स्याकरः सगोखरः समधूकानवनबाटिक: विटपतृणयुतोगोचरपर्य्यन्तः सोविम्बत्तर: घटविबद्धः स्वमीमापर्यन्तः द्वयषीत्यधिकैका दशशत संवत्सरे ११८२ माघेमासि कृष्णपक्षे षट्यान्तिथौ भृगावपिर्तः ग्रीवमतीस्थलेगंगायां स्नात्वा विधिवन्मन्त्रदेव मुनिमनुजभूत पितृगणां स्तर्पयित्वा तिमिर पटल पाटन पद्मह- समुद्धतार्चिषमुपस्थायौषधिपतिसकलशेखरं सप्रभ्यर्च्य त्रिभुवनचतुर्वासुदेवस्य पूजा विधायप्रचुरप्रायसेनहविषा हविर्भुजहुत्वा मातापित्रौ रात्मनश्च पुण्ययशोभि- वृद्धयेऽस्माभिरने करणकुशलतायुतकमतुलोदक पूर्वगौतमगौत्रास्यांगौतमांकिर समुद्गलत्रिः प्रवराभ्यांठक्कुर श्रीआल्हनपुत्राभ्यां श्रीछीछट श्रीवाछट शर्मभ्यां आचन्द्रकिं यावच्छासती कृत्यप्रदत्तमत्वा यथा दीयमानभाग भोगकर प्रवणिकरतु- राष्कदण्ड सर्वादायनाज्ञां विवेकी भूयक्षान्तव्योति। भवन्तिचात्र श्लोकाः । भूमियः प्रतिगृहणाति यश्चभूषिप्रयच्छति। उभौ तौपुण्यकर्माणौ नियतंस्वर्ग- गामिनौ ॥१॥ संबंधमासनंछत्र वाराश्वावरवारणा: । भूमिदानस्यचिन्हानि फलमेत- त्पुरंदर ॥२॥ सम्वनितान्भाविन: पार्थिवन्द्रान्भूयो भूयो याचतेरामचन्द्रः । सामा- न्योड्यां धर्मसेनतुर्नृपाणां कालेकालेपाल-नीयोभवद्भिः ॥३॥ बहुभिर्वसुधाभुक्ता राजभिःसगरादिभिः । यस्ययस्ययदाभूमिस्तस्यतस्यतदाफलम् ॥४॥ गामेकाम् स्वर्णमेकञ्च भूमेरप्येकमंगलम् । हरन्नरकमाप्नोति यादवाहूतसंप्लवम् ॥५॥ तड़ागानां सहस्रेणाप्यञ्च मेघशतेनश्च । गवांकोटिप्रदानेन भूमिहर्ता न शुद्धति॥६॥ इति । नागमंगला का दानपत्र श्रीरंगपट्टन से १५ कोस उत्तर नागमंगल शहर में एक मंदिर है। वहाँ पर निम्नलिखित लेख ६ ताम्रपत्रों पर खोदा हुआ मिला है जोकि एक मोटे धातु के कड़े से बेधित हैं, ये पत्रे १० इंच लम्बे और ५ इंच चौड़े हैं। इस लेख से ज्ञात होता है कि पृथिवी निगुड़ राजा की स्त्री कुंदेवी जो पल्लवाधिराज की पोती थी उसने शके ६९९ में एक जैन मंदिर स्थापित किया था। इसी के सहायता के कारण उस के पति को विजय स्कन्धावार के महाराज पृथ्वी कोगिणि से उसके राज्यप्राप्ति के पचास बरस बाद प्रार्थना करने पर यह दानपत्र मिला था। मर्कए के पत्रों के लेख से मिलता हुआ कुछ कोएगू राजाओं का वृत्तांत इस लेख के पूर्व में है, जो सन् ४६६ से आरंभ होता है । इन लेखों में केवल इतना ही अंतर है कि इस में प्रथम महाराज का नाम कोडगणी वर्म धर्म महाधिराज और छठे का कोगणी महाधिराज लिखा है और केवल दानकर्ता को कोण्गयी लिखा है। इस शब्द के भिन्न भिन्न प्रकार के लिखे जाने से कुछ प्रयोजन नहीं केवल इस से यह सूचना होती है कि कुर्ग में एक पत्थर पर खुदा लेख निकाला था और जिसको सत्यवाक्य कोडगिणी वर्म धर्म महाराजाधिराज ने सन् ८४० में लिखा था उस में भी इसी शब्द कोण्गणी ही का अपभ्रंश है और इस को कभी कभी कोडगू भी लिखते थे जो कि कोड़ागू से बहुत मिलता है । यह कोड़ागू उस देश का प्रचलित नाम है जिसको अंग्रेज लोग कुर्ग लिखते हैं। मर्करा के लेख के सदृश इस से भी ज्ञात होता है कि दूसरे माधव और कदंब राजाओं में संबंध भया था अर्थात् पूर्वोक्त ने दूसरे की भगिनी से विवाह किया था, इस में विष्णु गोप के पुत्र गोद लेने और डिंडिकरराय के राज्य का कुछ भी वर्णन नहीं है। इस समय से लेकर भूविक्रम के राज्य तक जिसने सन् ५२१ में राज्यसिंहासन को सुशोभित किया दानपत्र और राज्य इतिहास दोनों में राजाओं की नामावली संपूर्ण मिलती है । इसके पश्चात विलंड जिसका शुद्ध नाम राजा श्रीवल्लभाख्य था उसको इतिहास में वर्तमान राजा का भाई भारतेन्दु समग्र ६५६