पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/६६९

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कोई बस्ती नहीं है, परंतु नीचे होय टोन नामक एक छोटी बस्ती है, जिस में कुछ कैदी काम करने वाले रहते है। यद्याप सबेरे ऐसा लोगों ने सोचा था कि समय मिलेगा तो इस पहाड़ी पर जायेंगे, पर ऐसा निश्चय नहीं था और न यहाँ कुछ तयारी थी । ऐलिस साहिब इस पहाड़ी पर नहीं चढ़े और यहाँ पलटन के न होने से चथाम से पलटन बुलाई गई कि वह श्रीमान की रक्षा करे और वहाँ से आठ कांस्टेबल रक्षा हेतु संग हुए । श्रीमान् एक छोटे टट्ट पर चलते थे और सब लोग पैदल थे । ऊपर बहुत से ताड़ और सुपारी के पेड़ों से स्थान घना हो रहा था और चोटी पर पहुँच कर श्रीमान पांच घंटे तक सूर्यास्त को शोभा देखते रहे । यद्यपि सूर्यास्त हो चुज था पर ऊपर प्रकाश इतना था कि नीचे की घाटी दिखाती थी और अंधकार होता जान कर सब लोग नीचे उतरने लगे। मार्ग में केवल दो छुटे हुए कैदी मिले और उन लोगों ने कुछ बिनती करना चाहा । पर जेनरल स्टुअर्ट ने उन को टोका और कहा कि जब श्रीमान् स्वस्थ रहैं तब आओ । इन के अतिरिक्त और कोई मार्ग में नहीं मिला। कप्तान लकउड और कौंट बाल्गस्टन आगे बढ़ गए और एक चट्टान पर बैठे उन लोगों का मार्ग देखते थे । इस समय अधेरा हो गया था. परंतु कुछ मार्ग दिखाई नेता था और उन लोगों ने केवल कुछ मनुष्यों को पानी ले जाते देखा और कोई नहीं मिला । श्रीमान सवा सात बजे नीचे पहुंचे और उस समय संपूर्ण रीति से अंधेरा हो गया था और एक अफसर ने मशाल लाने की आज्ञा दिया इस से कई मनुष्य भी संग के उन को बुलाने हेतु दौड़ गए । जब कैदियों के झोपड़े के आगे बढ़े, जेनरल स्टुअर्ट एक आवर्सियर को आज्ञा देने के हेतु पीछे ठहर गए और श्रीमान आगे बढ़ गए । उस समय श्रीमान के आगे दो मशाल और कुछ सिपाही थे और उन के प्राइवेट सेक्रेटरी मेबन और जमादार भी कुछ दू हो गए थे और कल्नल जरविस और मि. हाकिन और मि. एलिन भी पीछे छूट गए थे कि इतने में एक मनुष्य उनके बीच से उछला और श्रीमान् को दो छुरी मारी, जिस में से पहली दहिने कंधे पर और दूसरी बाएं पर लगी । यह नहीं आना गया कि यह किस मार्ग से वहाँ आया, क्योंकि चारों ओर लोग घेरे थे । पर ऐसा अनुमान होता है कि चट्टानों के नीचे छिप रहा था । श्रीमान चोट लगते ही उछले और पास ही पानी के गड़हे में गिर पड़े यद्यपि लोगों ने उन को उठाकर खड़ा किया, पर ठहर न सके और तुरंत फिर गिर पड़े । उनके अंत के शब्द हैं "They've hit me Burne" उन लोगों ने मुझे मारा) और फिर दो एक शब्द कहे वह समझ न पड़े और उन के शरीर को लोग उठाकर जहाज पर लाने लो, परंतु श्रीमान् तो पूर्व ही शरीर त्याग कर चुके थे और वीरों को उतम गति को पहुंच चुके थे। उस दुष्ट को अर्जुन सिंह नामक क्षत्रिय ने बड़े साहस से पकड़ा । कहते हैं कि उस ने पहिले तो उस हत्यारे के मुख पर अपना दुपट्टा डाल दिया और फिर आप उस पर एक साहिब की सहायता से चढ़ बैठा और फिर तो सब लोगों ने उस को हाथो हाथ पकड़ लिया और यदि उस समय विशेष रक्षा न की जाती तो लोग क्रोधावेश में उस को मार डालते। कहते हैं कि जिस समय उन का शरीर जहाज पर लाए हैं उस समय अनवरत रूधिर बहता था। जब श्रीमान् का शरीर ग्लासगो पर लाए उस समय लेडी म्यौ के चित्त की दाशा सोचनी चाहिए ! हा! कहाँ तो यह प्रतीक्षा करी थी कि प्यारा पति फिर से आता है, अब उसके साथ भोजन करेंगे और यात्रा का वृत्तांत पूछेगे, कहाँ उस पति का मृतक शरीर सामने आया । हाय हाय ! कैसा दारुण समय हुआ है !! परंतु वाह रे इन का धैर्य कि उसी समय शोच को चित्त में छिपा कर सब आज्ञा उसी भाँति किया जैसी श्रीमान करते थे। जब यह समाचार कलकत्ते में १२वी तारीख को पहुँचा उसी समय आज्ञा हुई दुर्गध्वज अधोमुख हो और ३९ मिनिट पर सायंकाल तोप छुटे । कानून के अनुसार लार्ड नेपियर गवर्नर-जेनरल हुए और उसी टापू से एक एक जहाज उन के लाने को भेजा गया और श्रीमान के भाई भी फिर बुला लिए गये । परंतु लाई नेपियर के आने तक आनरैल स्ट्रैची स्थानापन्न गवर्नर- जेनरल हुए । कहते हैं कि लार्ड नेपियर १६ तारीख को चले । जिस दिन ये वहां से चले थे उस दिन सब लोग शोक वस्त्र पहरे हुए इनको विदा करने को एकत्र हुए थे । श्रीमान् का शरीर कलकत्ते में आया और वहाँ से आयलैंड गया । लेडी म्यौ और श्रीमान के दोनों भाई और पुत्र तो बम्बई जायंगे, वहां से जहाज पर सवार होंगे, पर श्रीमान का शरीर सीधा कलकत्ते से ग्लासगो पर जायगा । नीचे लिखा हुआ आशय का पत्र कलकत्ते के छापे वालों को सार की ओर से मिला है। 'आठवी तारीख वृहस्पति के दिन श्रीमान् गवर्नर जेनरल बहादुर पोर्टब्लेअर नाम स्थान पर पहुंचे ओर रास नाम स्थान को भली-भांति निरीक्षण कर वाइपर नामे टापू में पहुँचे, जहाँ महा दुष्ट गण रहते हैं । स्टीवर्ट साहेब सुपरिटेन्डेन्ट ने श्रीमान के शरीर रक्षा के हेतु बहुत अच्छा प्रबंध किया था कि कोई मनुष्य निकट न आने पावे । चरितावली ६२५