पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/६६५

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किया । तदनंतर १८५४ में रशिया के युद्ध का आरंभ हुआ और सन् १८५६ में समाप्त हुआ । इस युद्ध से उनकी बड़ी प्रतिष्ठा हुई । सन् १८५९ -६० इस वर्ष में उन्होंने विक्टर इमानुअल की सहायता करके इटली को आस्ट्रिया के अधिकार से निकाल कर स्वतंत्र किया और आस्ट्रिया का पराभाव करने से उन की और भी विशेष प्रतिष्ठा बद्दी और उन को कुछ देश भी इसी कारण मिला । इसी समय में महाराज नेपोलियन ने अत्युच्च पद भी प्राप्त किया, यह समझना चाहिए । तदनंतर मेक्सिको में इन्होंने प्रयल और लड़ाई करके अपना राज्य स्थापन किया, परंतु इस का परिणाम अत्यंत दुःखकारक हुआ । अंत में सन् १८७० में प्रशिया और उनके युद्ध का आरंभ होकर उन का भली भांति पराभव ता. २ सेप्टेम्बर सन् १८७० में हुआ । तदनंतर कुछ दिवस जरमनी के दुर्ग में बढ़ रह कर छूट गए । पश्चात् इंगलैंड में आप और अपनी रानी और पुत्र चिरंजीव प्रिंस नेपोलियन यह सब ता. २० मार्च सन् १८७१ को एकत्र हुए। इस पुत्र का जन्म ता. १६ मार्च सन् १८५६ में हुआथा । अंत का समय उनका साधारण मनुष्य के समान परदेश में और परराष्ट्र में व्यतीत हुआ । उन को कई दिन से रोग हुआ, पर शास्त्रोपाय बहुत करते थे, परंतु उससे कुछ न्यून न हुआ और बहुत कृश हो गए । तारीख ९ को दिन के साढ़े बारह बजे उनका देहांत हुआ । जब ये राजसिंहासन पर थे इने ने रोम के प्रथम प्रख्यात महाराज जुलियस-सीज़र का इतिहास लिखा । इन सब वृत्तांत से स्पष्ट विदित होगा कि इन को जन्म भर फेरफार उलट पुलट करते व्यतीत हुआ ; उन को भली भाँति स्वस्थता कभी नहीं हुई थी। प्रशिचन लोगों से इन का पराभव होने तक सर्व पृथ्वी में इधर दश वर्ष पर्यंत इन के समान बुद्धिमान और सर्व सामान्य गुणयुक्त दूसरा पुरुष नहीं हुआ । ऐसा लोग कहते हैं कि इन को शीघ्र इस दशा में पहुंचने का मुख्य कारण यही है कि इन से कोई परोपकार नहीं हुआ और इन के हाथ जेनरल वाशिंगटन के समान निष्काम और परोपकार से रहित ये और अपनी बुद्धि से कोई उत्तम कृत्य नहीं किया । इसी कारण इनकी कीर्ति का उय और अस्त अंतकाल में हुआ तथापि यह मनुष्य अति उच्च पद को प्राप्त कर के पतन हुआ और पणिाम अत्यंत खेदजनक हुआ । इस से सकल मनुष्यों को खेद हुआ यह वार्ता प्रसिद्ध है। ११. महाराज जंगबहादुर १० के ८ गु ११ श 09 १२ में ६ बुध ३ सू शुक २रा चं ४ more चरितावली ६२१