पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/६५६

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परंतु हत्कथा के किसी लेखका हम प्रमाण नहीं करते क्योंकि यह बड़ा ही असंगत ग्रंच है। जैसा उस में दो वररुचि के मंत्री होने का प्रसंग है वह इस पीठिका में कहीं मिलता ही नहीं और पाणिनी. वर्ष, किया है और गोवर्द्धन कविका काव्य जयदेव जीके काज मे निश्चित होगा। बंगाली लेखकों ने जयदेव जी का समय पन्द्रहवां शतक ठहराया है. पर इस निर्णय में परमभ्रांत हुए है, क्योकि जयदेव जी काकाल एक सहस वर्ष के पूर्व है और इसमें प्रमाण के हेतु पृथ्वीराज रायसा में चंद कविका जयदेव जी का और नियोजित वर्णन ही प्रमाण है। जयदेव जी ने गोषन कवि का वर्णन वर्तमान क्रिया से किया है। इससे अनुमान होता कि उस नमें गोगर्दन कतिदा । बंगाली लोगों में कोई बारहवे शतक में लक्षण सेन के काल में जयदेवको मानते वृहत्कथा का वर्णन और गुणाढ्य इत्यादि कवियों का वर्णन आया सप्तशती बनानेवाले गोवर्द्धन कवि ने

देवता शिव ओर स्कप थे और व्याकरण का बड़ा प्रचार था । कातंत्र, कालाप. एन्द्र, पाणिनी इत्यादि मत में परस्पर बड़ा विरोध था । संस्कृत, प्राकृत, पैशाची और देश भाषा बहुत प्रसिद्ध थी, परंतु पाँच और भाषा मी प्रचलित थी । पाटलिपुत्र नया बसा था, प्रतिष्ठानपुर जोर अयोध्या भी बहुत बसती धूर्तता फैल गई थी और हिंदुस्तान में पश्चिम देश बढ़त मिला हुआ था इत्यादि । इस हत्कथा में ऐसे ही गुणादय कवि के भी तीनों जन्म लिखे है और उस का वृहत्कथा का पैशाची भाषा में निर्माण करना, उस में छः लाख ग्रंथ जला देना और एक लाख ग्रंथ नर वाहन दत्त के चरित्र का राजा शातवाहन को इत्यादि सविस्तर वर्णित है। अब यह बृहत्कथा कब बनी है और किस ने बनाया है इस के विचार में चिन बहुत दोलायित होता है, क्योंकि इस का काल ठीक निर्णीत नहीं होता । नंद के समय की भी नहीं मान सकते, क्योंकि इसी बृहत्कथा में विक्रमादित्य. उदयन ऐसे प्राचीन नवीन अनेक राजाओं का वर्णन है, परंतु इतना कह सकते हैं कि इस का मूल प्राचीन काल से पड़ा है और उस को अनेक काल में अनेक कवि पदाले गए हैं. क्योकि "कात्यायनाचैकृतिः, तत्पुष्पदन्तादिभिः" इत्यादि पदों में आदि शब्द मिलता है । वा अनेक प्राचीन सुनी हुई कथाओं को किसी ने एकत्र कर के आदर के हेतु उस में पुष्पदंत का नाम रख दिया हो तो भी आश्चर्य नहीं क्योंकि कात्यायन वररुचि का होना खीस्ताब्दीय के १२० वर्ष पूर्व लोग अनुमान करते हैं और विक्रम का आत पडितों ने ५०० खीस्ताब्द के लगभग निश्चय किया है और ऐसा मानने से प्रोफेसर गोण्डसकर इत्यादि इतिहासवेत्ताजे का दो वररुचि मानने वाला मत भी स्पष्ट खण्डित होता है, क्योंकि वृहत्कथा में ऊब विक्रम की चरित्र है तब उसी विक्रमादित्य वाले वररुचि का नाम कात्यायन संभव है। परंतु हमारा कधन यह है कि संस्कृत वृहत् कथा गुणाढ्य को बनाई ही नहीं है, क्योंकि उस में स्पर लिखा है कि गुणादय ने संस्कृत बोलना छोड़ दिया था. इस से पिशाच भाषा में बृहत्कथा बनाया । तो इस दवा में संभव है कि किसी ने वह शत्कथा घना कर वररुचि, गुणगढ़व, पुष्पदंत इत्यादि का नाम आदर और प्रमाण पने के देतु रख दिया हो। अब जो वृहत्कथा मिलती है वह तीस हजार श्लोक में रामदेव भट्ट के पुत्र सोमदेव भट्ट को बनाई है. उसने कश्मीर के राजा संग्रामदेव के पुत्र अनंत देव को रानी सूर्यवती के चित्तविनोद के हेतु बनाई है और इसी अनंतदेव के पुत्र कमलदेव हुए और कमलदेष के पुत्र श्री हर्षदेव हुए । कश्मीर के इन राजाओं के नाम चित्त की और भी संशय में छलते है, क्योंकि रत्नावली वाला श्रीहर्ष कालिदास के पहिले का है, क्योंकि कालिदास मालविकानगिन में धावक कवि का नाम प्राचीन कवियों में लिखा है । अब इस में विरोध हो सकता है कि जिस विक्रम का नरित्र वृहत्कथा में है वह नपरल्न बाला विक्रम नहीं, किंतु कोई प्राचीन विक्रन है । और यह वृहत्कथा धावक के बोरे ही काल पहिले कश्मीर में सोमदेष ने बनाई है, क्योंकि इसमें नद और विक्रम के नाम की भांति भोज, कालिदास इत्यादि का नाम नहीं और नवरत्न बाला पररुचि दूसरा का क्योंकि उस काल में राजा और कवियों के बही नाम चारपार होते थे, इस से बहत्कथा संवत और विस्तसन के पूर्व बनी है और गुणाढ्य और वररुचि कुछ इस से भी पहिले के है। अनंत पंडित की बनाई मुद्राराक्षस की पूर्व पीठिका में नंद का नाम सुधन्वा लिया है और इस में योगनाद है। कात्यायन, डि. इद्रदत्त और अनेक ज्याकरण के आचार्य वृहत्कथा के मत से एक काल के थे. पर बुद्धिमानों इन सबके काव्य में बड़ा मेद ठहराया है। इससे इतिहास विषय में वृहत्कथा अप्रमाणिक है। 'परिहार नों ने भारतेन्दु समग्न ६१२