पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/६३३

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240 माता का नाम नागादेवी था । कर्ण के दरबार में गंगाधर कवि के मुकाबिले में राम जी के चरित्र में काव्य बनाया । यह अपने ग्रंथ में लिखता है कि किसी कारण से वह राजा भोज से न मिल सका । विक्रमांक चरित्र उसने अपने बुढ़ापे में बनाया । विदित रहे कि विल्हण ईसवी ग्यारहवें शतक के मध्य और अंत भाग में है, क्योंकि विक्रमादित्य ने (जिस के दरबार का यह पंडित था) सन् १०७६ से ११२७ तक राज्य किया था । विल्हण की कविता में कई बातें विशेष जानने के योग्य हैं, जैसा उसने कादम्बरी का अपने ग्रंथ में वर्णन किया है, जिससे स्पष्ट जाना जाता है कि वाण कवि विल्हण के पहिले हुआ है और उसके समय में भी वाण की कविता का माधुर्य भारतवर्ष में फैला हुआ था । फारसी (शिकस्त) के चाल के कोई अक्षर विल्हण के समय में कश्मीर में लिखे जाते थे, क्योंकि उसने कश्मीर के वर्णन में लिखा है कि वहाँ कायस्थ लोग अपने लिखावट की जाल से किसी को ठग नहीं सकते थे । विल्हण गुजरातियों से बहुत नाराज था, क्योंकि वह लिखता है कि गुजराती राक्षसी बोली बोलते हैं और लांघ नहीं बांधते और मैले होते हैं । विल्हण के बाप ने महाभाष्य पर कोई तिलक किया था, परन्तु अब वह नहीं मिलता । विल्हण की कविता वेदी और ओज और प्रसाद गुण से पूर्ण है। कविता से जहाँ कवि के और गुण प्रकट होते हैं वहाँ साथ ही उसका अभिमान, उबण्डता और परिहास का स्वभाव भी पाया जाता है। इसी कवि ने विक्रमादित्य का चरित्र अठारह सर्गों में कहा है । इस समय हम इस बात का झगड़ा नहीं ले बैठते कि विक्रम कितने भए और किस किस समय में भए । यहाँ पर हम केवल उस विक्रम का चरित्र वर्णन करते हैं जो दक्षिण देश मों राज्य करता कल्याण जिसकी राजधानी थी और विक्रमादित्य जिस का नाम था। हमारे पाठक लोगों को यह जान कर बड़ा आश्चर्य होगा कि यह वह विक्रम नहीं है जिसका संवत चलता है और न इस विक्रमादित्य के हुए १९४१ वर्ष हुए । इस विक्रमादित्य का जन्म चालुक्य नामक क्षत्रीवंश में हुआ था । विल्हण लिखता है कि ब्रह्मा एक, बेर अंजुली में जल लेकर अर्घ देना चाहते थे कि इंद्र अपनी विपति कहने लगा, जिस से ब्रह्मा ने अपनी अंजुली का जल गिरा दिया और उसी से चालुक्य नामक क्षत्रियों का कुल उत्पन्न हुआ । हारीत और मानव्य इस वंश के पूर्व पुरुष थे और पहले से ये लोग अयोध्या के राजाओं के अधिकार में अयोध्या जी में बसते थे । श्री रामचंद्र के समय में भी ये लोग उन की सेवा में उपस्थित थे। फिर इन लोगों ने दक्षिण में अधिकार आरंभ किया और धीरे-धीरे वहाँ के राजा हो गये । काल पाकर श्री तैलप नामक इस वंश में एक राजा हुआ । इसने सन् ९७३ से ९९७ तक राज्य किया । इस ने हिंदुस्तान के बहुत से राजाओं को मार कर अपना अधिकार बयया । श्रीयुत बूलर साहब लिखते हैं मुंज को इसी ने मारा था और मालवा पर इस ने बड़े धूमधाम से चढ़ाव किया था । उसके पीछे सत्याश्रय राजा हुआ, जिसने ग्यारह वर्ष अर्थात सन् १००८ तक राज्य किया । इसी का नामांतर सत्यत्री था । इस के पीछे जय सिंह राजा हुआ, जिसने सन् १017 तक राज्य किया । इसके पीछे आहव मल्लदेव राजा हुआ । इसी का नामांतर त्रिभुवनमल्त और त्रैलोक्यमल्ल था । इसने पवारों के देश १. "बून्दी राजवंश वर्णन" और बाबू रामचरित्र सिंह संग्रहीत "नृपवंशावली" और "राजस्थान" में देखिये। २. सिंहल के इतिहास में बंगाल का पहला हाल इतना लिखा है कि सिंहबाहु नाम एक बंगाले का राजा था । उस का बड़ा बेटा विजयसिंह प्रजाओं को पीड़ा देने के कारण जब देश से निकाला गया, तो सात सौ आदमियों के साथ जहाज में चढ़कर निकला । अनेक प्रकार के कष्ट सहने के उपरान्त सिंहल में जा पहुंचा और वहां के लोगों को जीत कर उन का राजा बन गया । विजयसिंह के मरने के बाद उस का मतीचा पांडुवास जो बंगाल में रहता था सिंहल-दीप के सिंहासन पर बैठा । यह सिंहलदीप के राजाओं में पहला राजा था । सिहवंश के राजा होने के कारण इस टापू का नाम सिंहलद्वीप हुआ । जिस साल बुद्धदेव का परलोक हुआ था उसी साल सिजयसिंह सिंहल में पहुंचा । यह साफ जान पड़ता है कि ५०० बरस ईस्वी सन के पहले बंगाले में आर्यवंश के लोगों का अधिकार बहुत बढ़ा था, क्योंकि उन लोगों ने भी समुद्र की राह से जहाज पर चढ़ कर दूर दूर के देशों को जीता था । 3. विल्हण का यह स्फुट श्लोक मिला है, जिस से उसका अभिमान स्पष्ट प्रगट होता है । वास : शुभ्रमृतुर्वसन्तसमय : पुष्पंशरन्मल्लिका । धानुष्क : कुसुमायुध : परिमल : कस्तूरिका ऽस्त्रवनु: ।। वाणीतर्वरसोज्वला प्रियतमा श्यामावयो यौवनं । देवोमाघवएवपंचमलया गीतिर्कविर्विल्हण : ।। चरितावली ५८९