पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/६१९

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संवरणा नाटक पात्रप्रवेशादि नियम रक्षण द्वारा भाषा का प्रथम नाटक सीताराघव नाटक मेरे पिता पूज्यचरण श्री कविवर गिरिधरदास हश्चिचंद्र यशश्चंद्रिका (वास्तविक नाम बाबू गोपालचन्द्र जी) का है । इस में नरकासुरव्यायोग इंद्र को ब्महत्या लगना और उसके अभाव में नहुष का अरुणामोदिनी इन्द्र होना, नहुष का इन्द्रपद पाकर मद. उसकी इन्द्रानी बृहन्नाटक पर कामचेष्टा, इन्द्रानी का सतीत्व. इन्द्रानी के भुलावा काशिदास प्रहसन देने से सप्तऋषि को पालकी में जोत कर नहुष का अंबालभाण (श्रीवरदाचार्य) | चलना, दुर्वासा का नहुष को शाप देना और फिर इन्द्र कृष्णभक्तिचंद्रिकानाटक x (अनंतदेव) का पूर्वपद पाना, यह सब वर्णित है । मेरे पिता ने बिना अतंद्रचंद्रिका विद्यानिधि) | अंगरेजी शिक्षा पाए इधर क्यों दृष्टि दी यह बात पार्थ पराक्रम आश्चर्य की नहीं । उन के सब विचार परिष्कृत थे। भर्तृहरिनिर्वेद बिना अंगरेजी की शिक्षा के भी उन को वर्तमान समय धर्मविजयनाटक (शुक्ल भूदेव) का स्वरूप भली भाति विदित था। पहले तो धर्मही के सत्संगविजयनाटक (वैद्यनाथ) | विषम में ही वह इतने परिस्कृत थे कि वैष्णवबत चंद्रप्रभा x पूर्वपालन के हेतु अन्य देवता मात्र की पूजा और ब्रत घर कर्णसुंदरी नाटिका से उठा दिए थे । टामसन साहब लेफ्टिनेंटगवर्नर के रतिवल्लभ x (जगन्नाथ पंडितराज)| समय काशी में पहला लड़कियों का स्कूल हुआ तो जगन्नाथ वल्लभनाटक हमारी बड़ी बहिन को उन्होंने उस स्कूल में प्रकाश o ध्रुवचरित्र (पं. दामोदरशास्त्री) रीति से पढ़ने बैठा दिया । यह कार्य उस समय में बहुत अथ भाषानाटक ही कठिन था क्योंकि इस में बड़ी ही लोकनिन्दा थी । हिंदी भाषा में वास्तविक नाटक के आकार में ग्रन्थ हम लोगों को अंगरेजी शिक्षा दी । सिद्धान्त यह कि की सृष्टि हुए पच्चीस वर्ष से विशेष नहीं हुए । यद्यपि उनकी सब बातें परिष्कृत थीं और उन को स्पष्ट बोध नेवाज कवि का शकुन्तला नाटक, वेदान्त विषयक | होता था कि आगे काल कैसा चला आता है । नहुष भाषा ग्रन्थ समयसार नाटक, ब्रजवासीदास प्रभृति के नाटक बनने का समय मुझ को स्मरण है। आज प्रबोधचन्द्रोदय नाटक के भाषा अनुवाद, नाटक नाम से | पच्चीस बरस हुए होंगे जब कि मैं सात बरस का था अभिहित हैं किन्तु इन सबों की रचना काव्य की भाँति नहुष नाटक बनता था । केवल २७ वर्ष की अवस्था में है अर्थात् नाटक रीत्यनुसार पात्रप्रवेश इत्यादि कुछ नहीं मेरे पिता ने देहत्याग किया किन्तु इसी अवसर में है। भाषा कविकुल मुकुट माणिक्य देवकवि का चालीस ग्रन्थ (जिन में वलरामकथामृत, गर्गसंहिता, 'देवमायाप्रपंच नाटक' और श्रीमहाराज काशिराज की | भाषावाल्मीकि रामायण, जरासन्धबध महाकाव्य और आज्ञा से बना हुआ प्रभावती नाटक तथा श्रीमहाराज रसरत्नाकर ऐसे बड़े बड़े भी हैं) बनाए । विश्वनाथसिंह रीवा का आनन्दरघुनन्दन नाटक यद्यपि हिन्दी भाषा में दूसरा प्रन्थ वास्तविक नाटककार नाटक रीति से वने हैं किन्तु नाटकीय यावत नियमों का राजा लक्ष्मणसिंह का शकुंतला नाटक है । भाषा के प्रतिपालन इनमें नहीं है और छन्दप्रधान ग्रंथ हैं । माधुर्य आदि गुणों से यह नाटक उत्तम ग्रन्थों की गिनती विशुद्ध माणिक्य देवकवि का 'देवमायाप्रपंच नाटक' में है । तीसरा नाटक हमारा विद्यासुन्दर है । चौथे के और श्रीमहरारज काशिराज की आज्ञा से बना हुआ स्थान में हमारे मित्र लाला श्रीनिवासदास का प्रभावती नाटक तथा श्रीमहाराज विश्वनाथसिंह रीवां | तप्तासंवरण, पंचम हमारा वैदिकीहिंसा, षष्ठ प्रियमित्र का आनन्दरघुनन्दन नाटक यद्यपि नाटक रीति से बने बाबू तोताराम का केटोकृतान्त और फिर तो और भी दो है किन्तु नाटकीय यावत नियमों का प्रतिपालन इन में चार कृत विद्य लेखकों के लिखे हुए अनेक हिन्दी नाटक नहीं हैं और छन्दप्रधान ग्रंथ हैं । विशुद्ध नाटक रीति से | है । सर.विलियम म्यौर (१) साहिब के काल में (१) सन् १८७६ ईस्वी जुलाई में मैंने भी एक कवित्त भेजा था जिस पर इन्होंने अनेक धन्यवाद दिया था । जो कवित्त मैंने भेजा था वह यह है- नाटक ५७५