पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/५८

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लहकि रही कमलनि की पाती । | मिलि हरिचंद मोरा जियरा जुड़ाय विहे तैसेई भंवर गुंजार करत है तैसोई त्रिविध बयार । जमुना यू की तिवारी चणु सखी । तैसेई सौरभ भरत अनेकन बन्दावन तस द्वार । | तेरो मग जोहत मनमोहन सुंदर गिरिवर-धारी । कर ले कमल गिरावत घोऊ उर फूलन की माल। तेरे हित पिरकाष कियो है सुंदर सेज सँवारी । 'हरीनंद' बलि बलि यह छषि लशि राधा और गोपाल ।५१ | विजन चलत फुहारे छूटत खस परदे सचिकारी । राग ईमन मृगमद चन्दन घोरि धरे हैं फूल-माल छथि भारी । मिलि घिहरो दोऊ आनंद भरि 'हरीचद' बलिहारी।५७ तू तो मेरी प्रान-प्यारी नैन मैं निवास करे साँझ के गए दुपहरी आए। तू ही जो करेगी मान कैसे के मनाइहैं । साँची बात कहो नंद-नंदन भले बने मन-भाए । तू ही तो जीवन-प्रान तोहि देखि जीव राधे अबलों बाट रही तव हेरत सानि परे सब साज। तूही जो रहेगी रूसि हम कहाँ जाइहै। बेठो हो श्रीजना जुलाऊँ अब न जाहु अजराज । फियो मान राधे महारानी आजु पीतम सो आए मेरे नैन सिराए सीतल जल ले पीजै । ऐसी जो सपरि कहूँ सौति सुनि पाइहै। रैनि नाहि सौ दुपहरिया मैं 'हरीचद' सुख दीजे ।५८ "हरीचंद' देखि लीजी सुनतहि दौरि दौरि अरी कोऊकरिके दया नेक ठाँव मोहि निज निज द्वार पै बधाई अजवाइ ।५२ दीची धूप लगै मोहि भारी । पांव तले मेरो गो चारत मैं प्यारे जू तिहारी प्यारी अति ही गरब भरी यह पोलत गिरिधारी। हठ की हठीली ताहि आपु ही मनाइए । नैकडू न माने सब भाँति हो मनाय द्वारी सुनि यह बचन उसीर महल में आपुहि चलिए ताहि बात बहराइए। से आई सुकुमारी। रिस भरि बैठि रही नेकट्ठ न बोले बैन 'हरीचंद' येहि मिसि मिलि विहरे ऐसी जो मानिनि तेहि काहे को रिसाइए। नवल पिया अरु प्यारी ।५९ 'हरीचंद जामे मानै करिए उपाय सोई अरी हौं बरजि रही बरज्यौ नहिं मानत जैसे बने तैसे ताहि पग परि शाइये ।।३ दौरि दौरि वार धूप ही मैं जाय। आयु मैं देखे री आली री दोल सीरे खसखाने साजि सेजह विछाय राखी मिलि पौढ़े ऊंची अटारी । भयो छिड़काव आइ ने तो जुड़ाय । मुख सो मुख मिलाइ बीरी बात छूटत फुहारो चारु देखि ती कौतुक आइ रंग भरि नवल पिया प्रानप्यारी । मोतिन सी बूंद झरे चित ललचाय । चांदनी प्रकास चारु ओर छिरकाष भयो 'हरीचंद मातु के बचन सुनि आइ पौढ़े सीतल चहू विसि चलत बयारी। बिजन करत सब सखि हरखाय ।६० 'हरीचंद' सचीगन करत विंचना राग केदारा जानि सुरति-बम भारी ।५४ फूति रही दै बेली श्री बन्दावन । राग बिहाग नव तमाल घनश्याम पिया श्री राधा पीत चमेली । पढ़े दोउ वातन के रस मीने । और फूल फूली सब सखियाँ फूलनि पहिरि नषेली । नींद न लेत अरुमि रहे दोऊ केशि-कचा चित दीने । 'हरीचंद मन पूल्ची सब साज देखि तैसड़ सीतल सेव विष्टाई सति मिजन कर लीने । भंवर भयो है हेली ।६१ हरीचंद अत्तस भरि सोए कोदिके पट मोने 1५५ राग सोरट राग सारग सखी मोहि ले चलि जमुना-तीर । मेरे प्यारे सा संदेसवा कौन कहे जाय । उर की जहाँ मिले नटवर मनमोहन सुंदर श्याम शरीर । बेदन हरे बचन कोक सखी देह मोरी पाती पहुंचाय । सुनाय । नंद-द्वार सब बड़े गोप में हो कैसे धौस जाऊँ भोन माहि जसुवा च के भय नीके लखन न पाऊँ जाह के पुलाय लाये बहुत मनस्य । गुरुजन की भव अटा भरोसाह नहि बेठन पावें Sxe भारतेन्दु समग्र २८