पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/५६९

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लवंग 'रक्खें। जानी जाती है। परंतु यदि संयोग से उनके सामने (गोप आता है) तुरुही या किसी दूसरे प्रकार का बाजा बजाया जाय तो गोप धूतू धूतू पिपी पिपी धूतू धूतू ! वह शीघ्र ही सबके सब ठठक कर खड़े हो जायगे और लवंग -कौन पुकारता राग के प्रभाव से कुछ देर के लिये उनकी घबड़ाहट दूर गोप-धूतू धूतू ! तुम जानते हो कि लवंग | हो जायगी । एक कवि का कथन ठीक है कि तानसेन महाशय और उनकी स्त्री कहाँ है ? घूतू धूतू ! के गाने का प्रभाव वृक्ष, पत्थर, जल पर भी होता था लवंग- अरे कान न फोड़े डाल, इधर आ । क्योंकि कोई वस्तु ऐसी कठोर और भयानक नहीं गोप-धूतू धूतू ! किधर ? किधर ? जिसकी प्रकृति-स्वभाव को अधिक नहीं तो थोड़ी ही देर लवंग-यहाँ । के लिये राग बदल न देता हो । जिस मनुष्य को गाने गोप- उनसे कह दो कि मेरे स्वामी के पास से का आनंद नहीं और जिसके जी पर सुरीले शब्द का एक दूत आया है । जिस की तुरुही मंगल समाचारों से प्रभाव नहीं होता उससे अत्याचार, छल और चोरी भरी हुई है, वह सबेरा होते होते यहाँ पहुँच जायगे । इत्यादि जो कुछ न हो सब थोड़ा है क्योंकि ऐसे मनुष्य - प्यारी आओ, घर में चल कर उनके का चित्त नरक से अधिक अंधा और भ्रष्ट और बुरा जाने की राह देखें. या अच्छा यहीं बैठी रहो भीतर जाने होता है और वह कदापि विश्वास के योग्य नहीं होता । की कौन सी आवश्यकता है । भाई तूफानी नेक भीतर तुम ध्यान देकर गाना सुनो । जाकर लोगों से जना दो कि तुम्हारी स्वामिनी आती हैं (पुरश्री और नरश्री कुछ दूर पर चली आती हैं) और अपने साथ गवैयौं को बाहर बुलाते लाओ । पुरश्री- वह प्रकाश जो सामने दृष्टि पड़ता है (तुफानी जाता है) मेरे ही दालान में हो रहा है। देखो तो एक छोटे से इस बुरुज पर चाँदनी कैसी छिटक रही ! आओ हम दीपक का प्रकाश कितनी दूर तक फैला हुआ है । इसी तुम यहीं बैठकर गाना सुनें । एक तो सन्नाट मैदान भांति संसार में शुभकर्म चमकता है। नरश्री-- जब चाँदनी थी तो यह प्रकाश जान और दूसरी रात, यह दोनों राग का आनंद दूना बम देते हैं। बैठो जसोदा, देखो तो आकाश क्या शोभा दिखला नहीं पड़ता था । रहा है, यह प्रतीत होता है कि मानों उसमें हजारों सोने पुरश्री- इसी भाँति बड़ा तेज अपने सामने छोटे तेज को दबा लेता है। किसी कवि ने कितना ठीक कहा के कुंकुमे लटकते हैं । जितने यह दृष्टि आते हैं इनमें से छोटे से छोटे की चाल से भी देवताओं के राग का सा है - दिये (दीपकों) की तो प्रकट में चमक है, पर दिये (दान) का प्रकाश परलोग में भी है । राजा की लाते हैं । ऐसा ही सुरीलापन मनुष्य के निश्शब्द | अनुपस्थिति में उसके प्रतिनिधि ही की प्रतिष्ठा राजा के आत्मा में भी है परंतु वह इस भौतिक वस्त्र को, जो समान होती हैं परंतु उसके सामने जैसे नदी की समुद्र नष्ट हो जाने वाला है, पहने है इसलिये हम उसके के सामने कुछ गिनती नहीं उसका भी कोई मान नहीं होता । ऐं देखो, कहीं से गाने का शब्द आता है ! मीठे राग को सुन नहीं सकते। (गाने बजाने वाले आते हैं) कोई मान नहीं होता । ऐं देखो, कहीं से गाने का शब्द इधर आओ और कोई राग ऐसा छेड़ो कि तानसेन आता है नरश्री-सखी यह आप ही के महल में गाना हो भी नींद से चौंक उठे और जब तुम्हारे मीठे सुरों का रहा है। आलाप तुम्हारी स्वामिनी के कान तक पहुंचे तो वह भी विवश होकर घर की ओर दौड़ी आवें । पुरश्री- इसमें संदेह नहीं कि हर वस्तु के जसोदा-मैं तो जिस समय अच्छा राग सुनती लिये एक नियत काल है और उसी समय वह भली हूँ सत्र सुध बुध दूर भाग जाती है। जान पड़ती है । मेरी सम्मति में इस समय गाना दिन (लोग गाते हैं) की अपेक्षा अधिक मनोहर होता है। लवंग-- इसका कारण यह है कि तुम अपना नरश्री-सखी यह आनंद एकांत के कारण से ध्यान जमाती और उस पर सोचती हो । तुमने देखा प्राप्त हुआ होगा कि नये सीधे बछड़े जिन्हें किसी ने हाथ तक न पुरश्री- यदि कोई कान ही न दे तो कौने का लगाया हो आपस में क्या क्या कुलेलें करते, छलाँगे शब्द वैसा ही कोमल और मधुर है जैसा कोयल का और ती मारते और हिनहिनाते हैं जिससे उनके रुधिर की गर्मी । मेरी सम्मति में दिन को जब कि बत्तक काँव काँव कर Kelem HNKA दुर्लभ बन्धु ५२५ शब्द आता है, मानों वह उनके शब्द के सात सुर