पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/५६८

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पुरश्री- जैन के घर का पता लगा कर उससे | की राह ताकता हुआ, जो यवनपुर के खेमे में थी, हृदय झटपट इस पांडुलिपि पर हस्ताक्षर करा लो । हम से ठंडी साँस निकाल रहा था । लोग आज ही रात को चलते होंगे, जिसमें अपने पति से जसोदा- ऐसी ही रात में कादम्बिनी ओस पड़ी एक दिन पहले घर पहुँच रहें । लवंग इस लिपि को हुई घास पर डर डर कर कदम रखती थी कि यकायक देखकर अत्यंत प्रसन्न होगा । सिंह की पर्खाई सामने देखकर बेचारी भय से भाग (गिरीश आता है) गई। सिंह की पईि सामने देखर बेचारी भय से भाग गई । गिरीश महाराज बढ़ी बात हुई कि आप मिल लवंग- ऐसी ही रात में जयलक्ष्मी समुद्र के गए । मेरे मालिक बसंत ने अंतत: सोच समझ कर किनारे खड़ी होकर छड़ी से अपने प्यारे को कामपुर वह अँगूठी आप की सेवा में भेजी है और प्रार्थना की है लौट आने के लिये संकेत करती थी। कि आज आप उन्हीं के साथ भोजन करें। जसोदा-ऐसी ही रात में मालिनी ने जड़ी पुरश्री- मैं असमर्थ हूँ, हाँ उनकी अंगूठी मैंने बुटियों को जंगल में एकत्र किया था, जिनके प्रभाव से सिर आंखों से स्वीकार की । तुम मेरी ओर से जाकर बूढ़ा पुरुष जवान हो गया। विनती कर देना । अब तुम इतनी कृपा और करो कि लवंग-- ऐसी ही रात में जयलक्ष्मी समुद्र के मेरे लेखक को शैलाक्ष का घर दिखला दो। पिता के घर से निकल भागी और एक दरिद्र प्रेमी के गिरीश-मैं प्रस्तुत हूं। साथ वंशनगर से विल्वमठ को चली आई। नरश्री- (पुरभी से) महाशय मैं आप से कुछ जसोदा-ऐसी ही रात में लवंग ने उससे विनय किया चाहता हूँ। (अलग ले जाकर कहती है) चित्त से प्रेम करने की सौंगद खाई और निर्वाह का प्रण देखिए मैं भी अपने पति की अंगूठी लेने का यत्न करती करके उसका मन छीन लिया परंतु एक भी सच्चे न हूँ। मुझसे उन्होंने शपथ खाई थी कि मैं उसे जन्म भर निकले। अपने से पृथक् न करूंगा। लवंग-ऐसी ही रात में कामिनी जसोदा ने पुरनी- अवश्य, चूकियो मत, हम लोगों को अच्छा अवसर हाय आएगा । यह लोग शपथ खायेंगे | दुष्टता से अपने प्रेमी पर दोष लगाया और उसने कुछ न कहा। कि हमने अँगूठी पुरुषों को दी है परन्तु हम लोग उनकी जसोदा -क्या कहूँ मैं तो तुम को बात ही बात एक न मानेंगी और आप सौगद खाकर उन्हें झूठा बना में बेबात कर देती यदि कोई आता न होता । देखो मुझे लेंगी । बस अब चली ही जाव, तुम जानती हो जहाँ में किसी के पैर की आहट जान पड़ती है। ठहरी रहूँगी। (तूफानी आता है) नरश्री- आइए महाशय, मुझे वह घर बतला लवंग - रात के ऐसे सन्नाटे में कौन इतना शीन चला आता है! (दोनों जाते हैं) तूफानी-मैं हूँ, आप का एक मित्र । लबंग-ऐ मित्र ? कैसे मित्र ? मला मित्र, कृपा करके अपना नाम तो बताओ? तूफानी- मेरा नाम तूफानी है। मैं यह पाँचवाँ अंक समाचार लाया हूँ कि मेरी स्वामिनी आज मुंह अंधेरे वित्वमठ में पहुँच जायँगी । वह मंदिरों में घुटने के पहिला दृश्य बल विवाह मंगल होने की प्रार्थना कर रही है। स्थान - वित्वमठ, पुरश्री के घर का प्रवेशद्वार लवंग-उनके साथ और कौन आता है ? तूफानी- कोई नहीं, केवल वह आप एक (लवंग और जसोदा आते है। जोगिन के भेष में और उनकी सहेली । पर यह तो लवंग - आहा ! चाँदनी क्या आनंद दिखा रही कहिए कि हमारे स्वामी अभी तक लौट आए या नहीं। है ! मेरे जान ऐसी ही रात में जब कि वायु इतना मंद लवंग-न वह आए हैं न कुछ उनका हाल चल रहा था कि वृक्षों के पत्तों का शब्द तक सुनाई न | विदित हुआ है। पर आओ जसोदा हम तुम भीतर देता था, त्रिविक्रम दुर्ग की भीत पर चढ़ कर कामिनी | चलकर घर के स्वामी के शिष्टाचार का प्रबंध कर

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भारतेन्दु समग्र ५२४ दीजिए।