पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/५४५

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पाँचवा दृश्य Eso (सत्तारन और सलोने जाते हैं) तोड़ों का सपना देखा था । लवंग- अवश्य है कि मैं तुमसे सब हाल वर्णन गोप- आप कृपा करके चलें : मेरे नये स्वामी कर दें । उसने मुझे सूचना दी है कि मैं उसे किस आपकी राह देखते होंगे, और उन लोगों ने आपस में भालि उसके बाप के घर से ले जाऊँ, कितनी अशरफी और गहने उसने ले रक्खे हैं, और कैसा परिचारक का गुट किया है । यह मैं नहीं कह सकता कि आप अवश्य हो स्वांग देखिएगा परंतु यदि ऐसा हुआ तो निस्संदेह वस्त्र अपने लिये उपस्थित कर रक्खा है । भाई गिरीश यदि कभी इसके बाप जैन को स्वर्ग में आने की आज्ञा कुछ न कुछ रंग खिलेगा क्योंकि मेरी नाक से उस दिन तेवहार के छ बजे सबेरे रुधिर का बहना व्यर्थ न मिलेगी तो अपनी बेटी के सुकृत के बदले, और यदि जायगा । कभी कोई बुराई इस तक आवेगी तो इस बहाने से कि वह एक अधर्मी जैन की बेटी है । आओ. मेरे साथ शैलाक्ष-क्या स्वाग भी बनेंगे ? सुनो जसोदा आओ, मार्ग में इसे पढ़ते चलो । सुंदरी जसोदा आज द्वारों में ताला लगा दो और जब भेर की ढबढब और स्वांग में मशाल दिखलावेगी । बाँसुरी की ध्वनि सुनाई दे तो झरोखों में से झाँकने के (दोनों जाते हैं) लिये ऊपर न चढ़ना और न इन आर्य मसखरो के लुक फेर हुए चिहरों को देखने के लिए खिड़की से बाजार की ओर सिर निकालना वरंच शीघ्र ही मेरे घर के कानों को अर्थात खिड़िकियों को बंद कर लेना जिसमें ऐसे असभ्य तुच्छ जनों का शब्द मेरे सभ्य घर के भीतर न पहुँचने पावे । शपथ है अहंत देव की छड़ी की मेरा जी स्थान -वंशनगर -शैलाक्ष के घर के सामने आज रात के नेवते में जाने को नेक भी नहीं उभरता । (शैलाक्ष और गोप आते हैं) किन्तु मैं जाऊँगा । अबे तू आगे जा कह दे कि मैं आऊँगा। शैलाक्ष-- अच्छा तो तू देखेगा, तेरा आँखें आप ही इस बात का न्याय करेंगी कि वृद्ध शैलाक्ष और बसंत गोप- महाराज में चला । बबुई तुभ इनकी में कितना अंतर है । अरी जसोदा ! जैसा तू मेरे यहाँ बकबक पर ध्यान न देकर आवश्य खिड़की में से भुखमुए की भाँति ढाई सेर भकोसता था उसका स्मरण झांकती रहना क्योंकि आज होगा उस मसीहा को वहाँ आवेगा । अरी जसोदा ! और हर समय पड़े रहने | गुजर इस राह से, जिसने मूसा क और खर्राटे लेने और कपड़े फाड़ डालने की महिमा भी को ।' (जाता है)। जान पड़ेगी । अरी जोसदा, सुनती नहीं ! शैलाक्ष- गोप-जसोदा ! - वह मूर्ख प्रेत का अवतार क्या कहता था, ऐं? शैलाक्ष-तुझे किसने पुकारने को कहा है ? मैंने तुझसे नहीं कहा कि पुकार । जसोदा उसने केवल इतना ही कहा कि गोप-आपही न मुझ पर सदा क्रुध हुआ करते 'बबुई ईश्वर आपको रक्षा करें' और कुछ नहीं । थे जि तू बेकहे कोई काम नहीं करता । शैलाक्ष- वह मूर्ख प्रेम तो रखता है परंतु खाने (जसोदा आती है) में सांड अधिक है, दिन को सोने में जंगली बिल्ली जसोदा-- मुझे आपने बुलाया है ? आज्ञा ? से बढ़कर और काम करने में घोंघे से अधिक सुस्त । शैलाक्ष-- मुझे आज का नेवता आया है, लो | ऐसे कृतघ्नों का निर्वाह मेरे साध कहाँ हो सकता है जसोदा यह कुंजियाँ तुम्हारे सुपर्द हैं । पर मैं क्यों जाने | इसीलिए मैं उसे दूर करता हूँ, और फिर उसे पल्ले भी लगा ? मुझे वह लोग कुछ प्रम में नहीं बुलाते वरंच | कैसे मनुष्य के बाँधता हूँ जिसके उधार लिए हुए रुपये किंतु क्या हुआ मैं भी तिरस्कार की | के नष्ट करने में वह सहायता देगा । अच्छा बसोदा दृष्टि से जाऊँगा और उस बहुव्ययी आर्य का माल अब तुम भीतर जाओ, कदाचित मैं अभी लौट जाऊँ। चाभूगा । मेरी प्यारी बेटी तू घर से सावधान रहियो । जिस मांति मैंने समझा दिया है वैसा ही करना । द्वारों मेरा जाने को तनिक भी जी नहीं चाहता. मुझे कोई को बंद करती जाओ 'जागै सो पावै, सोवै सो खोरे। बुराई आती मालूम होती है जिसका मेरे जी में खटका यह कहावत बहुत ठीक है । (जाता है) लग रहा है, क्योंकि आज ही रात को मैंने रुपये के जसोदा-जाइए - (आप ही आप) दुर्लभ बन्धु ५०१ सुअषा से-