पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/५३८

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तीसरा जहाज मौक्षिक में तथा चौथा अंग देश में है। बंसत-शैलाक्ष आपने सुना? इसी भांति इधर उधर और बंदरों में भी उनकी जोखों शैलाक्ष-मैं अभी आपने जी में हिसाब कर रहा । परंतु जहाज फिर भी काठ ही है और मल्लाह भी था कि मेरे पास कितना रुपया तैयार है और जहाँ तक मनुष्य ही है : चूहे थल में भी होते हैं और जल में भी, मैंने सोचा इस समय मेरे पास छ सहस रुपया न वैसे ही चोर पृथ्वी पर भी होते हैं और पानी में भी अर्थात निकलेगा – पर इससे क्या ? मैं त्र्यंबक से जो मेरी डाकुओं का भय सभी स्थल है और फिर आँधी, तूफान जाति का एक धनिक पुरुष है शेष मुद्रा ले लूँगा । परंतु और चट्टान का भय अलग लगा हुआ है पर फिर भी वह नेक ठहरिए -के महीने की मिती आप चाहते हैं ? बहुत हैं-छ सहस्त्र मुद्रा मैं समझता हूँ कि (अनंत से) प्रणाम महाशय, आपकी बड़ी आयु है, अभी उनकी जमानत स्वीकार कर लूंगा। आप ही का हम लोग वर्णन कर रहे थे। बंसत-संतोष रखिए उनकी जमानत अंनत-शैलाक्ष यद्यपि मैं ब्याज पर रुपये का निस्संदेह ग्रहण करने योग्य है। कभी लेन देन नहीं करता तो भी अपने मित्र की अत्यंत शैलाक्ष- अपना मन भर लूंगा और किस आवश्यकता को समझ कर अपने नियम के तोड़ने पर तरह मेरा तोष होगा इस पर विचार करूंगा- मैं प्रस्तुत हूँ । बंसत तुम इनसे कह चुके हो कि कितने अनंत से इसकी बातचीत कर सकता हूँ? रुपये की आवश्यकता है? बंसत- यदि दोपहर को कृपा करके हम लोगों शैलाक्ष- हाँ हाँ – छ सहस्र मुद्रा । के साथ खाना खाडा तो वहाँ सब बात निश्चय हो अंनत- और तीन महीने के लिये। जाय । शैलाक्ष- हाँ मैं भूल गया था ---- तीन महीने शैलाक्ष-जी हाँ सूअर सूंघने को और उस घर की मिती पर आप कह चुके हैं - तो किन में खाने को जहाँ आप के देवताओं ने सब पिशाची की प्रतिज्ञाओं पर, नेक ठहरिए -किंतु सुनिए तो सही बाते भर दी हैं । मैं आप लोगों से लेन देन करूँगा अभी आपने कहा था कि हम सूद पर लेन देन नहीं बोलूंगा, आप के साथ चलूँ फिरूँगा और ऐसे ही दूसरी करते। बातें करूगा, परंतु यह नहीं हो सकता कि मैं आप अंनत-मैं इसका व्यापार कभी नहीं करता । लोगों के साथ खाना खाऊँ, पानी पीऊँ या पूजा करूँ । बाजार की क्या खबर है - यह कौन आता है । शैलाक्षः -जब कि यादव अपने मामा लवेंद्र की भेड़ों को चराते थे तो उनको उनकी माँ की चातुरी (अनंत आता है) से बरकत मिली थी। बंसत- अनंत आप आ पहुँचे । अंनत्त-तो उनके नाम लेने से यहाँ क्या तात्पर्य शैलाक्ष- (आप ही आप) देखो इसकी सूरत ही | है ? क्या वह सूद खाते थे ? से यह बात झलकती है कि यह हिंदुओं को प्रसन्न शैलाक्ष-नहीं ब्याज नहीं खाते थे. जिसे आप करने के लिये जैनियों से शत्रुता रखता है । मैं इससे सूद कहते हैं ठीक वैसा ब्याज नहीं लेते थे - सुनिए घृणा करता हूँ क्योकि यह ईसाई है परन्तु मुख्यत : इस वह क्या उपाय करते थे । जब की लवेंद्र और उनमें कारण से ऐसा निरुत्साह और नीच है कि लोगों को परस्पर यह बात निश्चय हुई कि जितने भेड़ों के बच्चे रूपया बिना व्याज के मृण दे देकर हम लोगों के व्याज धारीदार और चितकबरे पैदा हों वह यादव को वेतन में का भाव बिगाड़ देता है । यदि एक बार भी मेरे हाथ चढ़े मिले तो यादव ने चतुराई से बहुत सी हरी छड़ियाँ काट तो में सब पुरानी कसर निकाल लूं । यह मनुष्य हमारी कर और स्थान स्थान से छिलका उड़ा कर उन्हें पवित्र जाति को तुच्छ समझता है और मेरी और मेरे गंडेदार बनाया और उठी हुई भेड़ों के सामने गाड़ दिया व्यवहारों की निंदा वहाँ भी नहीं छोड़ता जहाँ बहुत से और जब यह गाभिन हुई तो इसके प्रयोग से चितकबरे व्यापारी इकट्ठा होते हैं । धम्मोपार्जित द्रव्य का ब्याज बच्चे उत्पन्न हुए. जो यादव के भाग में आये । यह नाम रखता है । धिक्कार है मेरी जाति को यदि मैं इस लाभ उठाने का एक उपाय था और यादव पर ईश्वर की मनुष्य से बदला न लूं कृपा थी क्योंकि लाभ भी होना ईश्वर की कृपा है. यदि भारतेन्दु समग्र ४९४