पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/५२७

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लराई। (जाता है) नसि जैहैं सगरे सत्य धर्म अविनासी । (एक पागल आता है) (निज हरि सो हवैहें बिमुख भरत भुवबासी ।। पागल-मार मार मार-काट काट काट-ले ले तजि सुपथ सबहि जन करिहैं कुपथ बिलासा ।। ले-ईबी-सीबी-बीबी-तुरक तुरक तुरक-अरे आया आया अब तजहु बीर बर भारत की सब आसा ।। आया-भागों भागो भागो । (दौड़ता है) मार मार मार- अपनी वस्तुन कहें लखिहैं सबहि पराई ।। निज चाल छोड़ि गहिहैं औरन की धाई ।। और मार दे मार-जाय न जाय न-दुष्ट चांडाल गोभक्षी जवन-अरे हाँ रे जवनलाल डाढ़ी का जवन-बिना चोटी तुरकन हित करिहैं हिंदू संग का जवन-हमारा सत्यानाश कर डाला | हमारा हमारा यवनन के चरनहि रहिहैं सीस चढ़ाई ।। हमारा । इसी ने इसी ने-लेना जाने न पावै । दुष्ट तजि निज कुल करिहैं नीचन संग निवासा ।। म्लेच्छ हुँ ! हमको राजा बनावैगा । छत्र चंवर मुराल अब तजहु बीर बर भारत की सब आसा ।। सिंहासन सब -पर जवन का दिया -मार मार रहे हमहुँ कबहुँ स्वाधीन आर्य बल धारी । मार -शस्त्र न हो तो मंत्र से मार । मार मार मार । यह दैहें जिय सों सबही बात विसारी ।। मं ही हवं फट चट पट जवन पट -- षट हरि विमुख धरम बिनु धन, बलहीन दुखारी । छट पट -- आ ई ऊँ आकास बाँध पाताल -चोटी आलसी मंद तन छीन छुधित संसारी ।। कटा निकाल । फ: - हा ही हौं-जवन जवन सुख सों सहिहैं सिर यवन पादुका वासा ।। मारय मारय उच्चाटय उच्चाट्य.. बेधय बेधय अब तजहु बीर बर भारत की सब आसा ।। नाशय नाशय फाँसय फाँसय-त्रासय त्रासय . स्वाहा फू: सब जवन स्वाहा फू: अब भी नहीं गया ? सू.दे..

- (सिर उठा कर) यह कौन था ? इस

मार मार मार । हमारा देश -हम राजा हम रानी । मरते हुए शरीर पर इस ने अमृत और विष दोनों एक हम मंत्री । हम प्रजा । और कौन ? मार मार मार । साथ क्यों बरसाया ? अरे अभी तो यहां खड़ा गा रहा तलवार तलवार । टूट गई टूटी । टूटी से मार । ढेले था अभी कहाँ चला गया ? निस्संदेह यह कोई देवता से मार । हाथ से मार । मुक्का जूता लात लाठी सोटा था । नहीं तो इस कठिन पहरे में कौन आ सकता है । ईंटा पत्थर -पानी सबसे मार हम राजा हमारा देश ऐसा सुंदर रूप और ऐसा मधुर सुर और किसका हो हमारा भेस हमारा पेड़ पत्ता कपड़ा लता छाता जूता सब सकता है । क्या कहता था ? 'अब तजहु वीर वर हमारा । ले चला ले चला । मार मार मार -जाय न भारत की सब आसा' ऐ ! यह देववाक्य क्या सचमुच जाय न - सूरज में जाय चंद्रमा में जाय जहां जाय सिद्ध होगा ? क्या अब भारत का स्वाधीनता सूर्य फिर तारा में जाय उतारा में जाय पारा में जाय जहाँ जाय वहीं न उदय होगा ? क्या हम क्षत्रिय राजकुमारों को भी अब पकड़ - मार मार मार । मीयाँ मीयां मीयाँ चीयाँ दासवृत्ति करनी पड़ेगी ? हाय ! क्या मरते मरते भी चीयाँ चीयाँ । अल्ला अल्ला अल्ला हल्ला हल्ला हमको यह वज्र शब्द सुनना पड़ा ? और क्या कहा हल्ला । मार मार मार । लोहे के नाती की दुम से मार 'सुख सौं सहिहैं सिर यवन पादुका त्रासा ।' हाय ! पहाड़ की स्त्री के दिये से मार-मार मार अंड क्या अब यहाँ यही दिन आवैगे ? क्या भारत जननी का बंड का संड का खंड-धूप छाँह चना मोती अब एक भी वीर पुत्र न प्रसव करैगी ? क्या दैव को अगहन पूस माघ कपड़ा लता डोम चमार मार मार । अब इस उत्तम भूमि की यही नीच गति करनी है ? हा! इंट की आँख में हाथी का वान - बंदर की थैली में मैं यह सुनकर क्यों नहीं मरा कि आर्यकुल की जय हुई चूने कमान -मार मार मार-एक एक एक और यवन सब भारतवर्ष से निकाल दिए गए । हाय ! मिल मिल मिल (हाय करता और रोता हुआ मूर्छित हो जाता हैं) खुल -मार मार मार - (जवनिका पतन) (एक मियाँ को आता देखकर) मार मार मार मुसल मुसल मुसलमान मान मान - सलाम सलाम सलाम कि मार मार मार- नबी नबी नबी-सबी सबी सबी- ऊंट के अंडे की चरबी का खर । कागज के छप्पे कर सप्पे की सर-मार मार मार । Omo* 24 नील देवी ४५३ -छिप छिप छिप -खुल खुल आठवाँ दृश्य मैदान वृक्ष ।