पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/४९

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

जो ऊपर निसि के चरण ने चक्र चिन्ह को सब अशा अंकुश के दिग ध्यान । शंख रह्यो अंगुष्ठ यव के चिन्ह को भाव वर्णन शंख के चिन्ह को भाव वर्णन परम प्रथित निज यश-करन नर को जीपन प्रान । कबई पिय को होइ नहिं विरह ज्वाल की ताप । रावस यव को चिन्ह पद राधा परत सुजान ।१ नीर तत्व को चिन्ह पद या सो धारत आप ।१ भोजन को मत सोच कस भजु पद तजु जंजाल । इति श्री दक्षिन पद चिन्हम् । जव को चिन्ह लखात पद हरन पाप को जाल ।२

-

इति श्री वाम पद चिन्हम् भक्त, मंजूषा आविक अन्य सो अन्य वर्णन | जय बेड़ो अंगुष्ठ मध ऊपर मुख को छत्र । दक्षिन दिसि को फरहरै ध्वज ऊपर मुख तत्र १ पाश के चिन्ह को भाव वर्णन पुनि पताक ताके तले कल्पलता के रेख । देत सकल फल लेख ।२ भव-बंधन तिनके कट आ करि आस । ऊरप रेखा । कमल पुनि चक्र यह आशय प्रगटित करत पास प्रिया-पद पास । चक्र आदि अति स्वच्छ । जेआई याकी दक्षिण श्री हरि कबहुँ न ते छुटि जाहि । इतने चिन्ह प्रतन्छ । पास-चिन्ह श्री राधिका येहि कारन पद माहि ।२ श्री राधा के वाम पद अष्ठ पत्र को पर। पिय मन बंधन हेत मनु पास-चिन्ह पद सोभ । पुन

कनिष्ठिका के तले

४ सेवत जाको शंभु अज भक्ति दान के लोभ ।३ करी ताही के गदा के चिना को भाव वर्णन नीचे मुख को अर्थ ससि एड़ी मध्य प्रमान १५ ताके दिग है वलय को चिन्ह परम सुख-मूल । जे श्रावत याकी शरन पितर सबै तरि जात । दक्षिन पद के चिन्ह अब सुनहु हरन भव-सूल ।६ गया गदाधर चिन्ह पद या हित गदा लबात ।१ में ताको मुख अति हीन । रथ के चिन्ह को माव वर्णन चार अंगुरियन के तले गिरिवर चिन्ह नवीन १७ जामै श्रम कछु होय नहि चलत समय बन-कुच । ऊपर सिर सब अंग-जुत रथ है ताके पास । या हित रथ को चिन्ह पग सोभित सब-सुख-पुंज ।१ दक्षिन दिसि ताके गदा पाएँ शक्ति विलास ।८ यह जग सब रच रूप है सारथि प्ररेक आप । एड़ी पै ताके तले ऊपर मुख को मीन । या हित रथ को चिन्ह है पग में प्रगट प्रताप ।२ चरन-चिन्ह तेहि भांति श्री राधा-पद लखि लीन ।९ वेदी के चिन्ह को भाव वर्णन अन्य मत सों श्री स्वामिनी जू के चरन चिन्ह अग्नि रूप हर जगत को कियो पुष्टि रस दान । वाम चरन अंगुष्ठ तल जव को चिन्ह जखाइ । या हित वेदी चिन्ह है प्यारी-चरन महान १ अर्घ चरन लौ पूमि के ऊरप रेखा जाइ । १ यग्य रूप श्रीकृष्ण है स्वधा रूप है आप । चरन-मध्य ध्वज अब्ज है पुष्प-लता पुनि सोह । यातें बेदी चिन्ह है चरन हरन सब पाप ।२ पुनि कनिष्ठिका के तले अकुश नासन मोह ।२ कुंडल के चिन्ह को भाव वर्णन चक्र मूल में चिन्ह द्वै ककन है अरू छत्र एड़ी में पुनि अर्ध ससि सुनो अझै अन्यत्र ।३ प्यारी पग नूपुर मधुर धुनि सुनिवे के हेत । एड़ी में सुभ सैल अरु स्वदन ऊपर राज । मनहूँ करन पिय के बसे चरन सरन सुख देत ।१ सांख्य योग प्रतिपाद्य है ये खोड पर जलजात । शनिष्ठिका अँगुरी तले वेदी सुंदर जान या हित कुंडल चिन्ह श्री राधा-चरन लाखात १२ कृण्डल है ताके राखे दक्षिन पद पहिचान र मत्स्य के चिन्ह को भाव वर्णन तुलसी शब्दार्थ प्रकाश के मत सों युगल जल विनु मीन रहै नहीं तिम पिय बिनु हम नाहि । स्वरूप के चिन्ह यह प्रगटावन हेत है मीन चिन्ह पद माहि १ छप्पय पर्वत के चिन्ह को भाव वर्णन ऊरध रेखा छत्र चक्र जय कमल ध्वजावर । सब प्रज पूजत गिरिवरहि सो सेवत हे पाय । अंकुश कुलिस सुचारि सथीये चारि जबुधर । यह महास्य प्रगटित करन गिरिवर चिन्ह लखाय ।१ अष्टकोन दश एक गाछन दहिने पग जानौ । Home भक्त सर्वस्व ९ शक्ति गदा खेउ ओर दर दर अँगुठा मूल विराज ४