पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/४८१

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पर पन्ने के बंगले में बैठे हैं (प्रगट) महाराज की जय (रानी आती है) हो । महाराज ! महारानी कहती हैं कि हम साझ को रानी-(आगे देख कर) अरे यही चामुण्डा हैं ? महाराज का व्याह करेंगे। और कर्पूरमंजरी भी बैठी है। (भैरवानन्द से) विदूषक-ह हा ह हा ! वाह ! क्या अच्छी बे महाराज, ब्याह की सामग्री ले आवें? समय की रागिनी छेड़ी गई है। मै.नं.- हां रानी । राजा-सारंगिके ! सविस्तार कहो, तुम्हारी रानी-(आगे बढ़ती है।) बात हमारी समझ में नहीं आती है। भै.नं.- (हंस कर) यह खोजने गई है कि हमारे सार.-विगत चतुर्दशी को महारानी ने मानिक्य पहरे में से कर्पूरमंजरी कैसे चली आई? तो अच्छा बेटा की गौरी बनाकर भैरवानन्द जी के हाथ से प्रतिष्ठा | कर्पूरमंजरी तुम सुरंग की राह से जाकर अपनी जगह कराई थी, सो जब महारानी ने भैरवानन्द जी से कहा पर बैठो, जब रानी देख ले तब चली आना । कि आप कुछ गुरुदक्षिणा मांगिये तब उन्होंने कहा क.मं.-जो आज्ञा (उसी की भांति जाती है)। "ऐसी गुरुदक्षिणा दो जिसमें महाराज का कल्याण भी रानी-(आगे एक घर में झांक कर) अरे हो और वे प्रसन्न भी हों, अर्थात लाट देश के राजा | कर्पूरमंजरी तो यही है, वह कोई दूसरी होगी, बेटा चन्द्रसेन की कन्या घनसारमंजरी को ज्योतिषियों ने | कर्पूरमंजरी जी कैसी है? बताया है कि जिस से इसका विवाह होगा वह चक्रवर्ती | (नेपथ्य में) सिर में कुछ दर्द है। होगा । उसका महाराज से विवाह कर दो यही हमें रानी-तो चलें (आगे बढ़कर) लाओ जल्दी गुरुदक्षिणा दो । महारानी ने भी स्वीकार किया और | तयारी । (कर्पूरमंजरी सुरंग की राह से आकर अपनी इसी हेतु मुझे आपके पास भेजा है। जगह पर बैठती है) विदू.- वाह वाह ! सिर पर सांप और काबुल रानी-(देखकर) अरे ! यहां भी कर्पूरमंजरी ! में वैद्य, आज व्याह और लाट देश में घनसारमंजरी । मै.नं.-बेटा विभ्रमलेखे! ब्याह की सामग्री ले राजा- इससे क्या ! भैरवानन्द के प्रभाव से आई? सब निकट है। रानी- हां लाई सही, पर कर्पूरमंजरी के सार.- महाराज, आम की बारी वाले चामुण्डा लायक आभूषण लाना भूल गई । के मन्दिर में महारानी और भैरवानन्द जी आपका व्याह भै.नं. तो लाओ जल्दी ले आओ। करेंगे सो आप यहां से कहीं मत टलियेगा । रानी-जो आज्ञा (आगे बढ़कर उसी घर की (जाती है) ओर जाती है। राजा- वह सब भैरवानन्द जी का प्रभाव है। भै.नं.- बेटा कर्पूरमंजरी फिर वैसा ही करो । विदू. .-सच है, चन्द्र बिना चन्द्रकान्तमणि को क.मं.-जो आज्ञा (वैसे ही जाती है।) और कौन द्रवावे? रानी-(उसी घर के दरवाजे से झांककर) (एक ओर बगीचे और मन्दिर का दृश्य) आहा ! मैं निस्संदेह ठगी गई, (प्रगट) अरे ब्याह की (भैरवानन्द आता है) तयारी लाओ (कर्पूरमंजरी वैसे ही आती है) (फिर भैरवानन्द- इस बट के मूल में सुरंग के | भेरवानाद के पास आकर और कर्पूरमंजरी को देखकर) दरवाजे पर चामुंडा की मूर्ति है तो यहीं ठहरै । (हाथ | यह क्या चरित्र है ! हा! हमारी चेष्टा इस योगीश्वर ने जोड़कर) कल्पान्त महास्मशन रूपी क्रीड़ा मन्दिर में ध्यान से सब जानी होगी । ब्रमा की खोपड़ी के कटोरे में राक्षसों का उष्ण रुधिर भै.नं.-रानी ! बैठो, महाराज भी आते होंगे। रूपी मद्यपान करने वाली कराली काली को नमस्कार (राजा और विदूषक ऊपर से उतरते हैं और कुरंगिका है। (आगे बढ़कर) अभी तक कर्पूरमंजरी नहीं आई ? आती है) (सुरंग का मुंह खुलता है और उसमें से कर्पूरमंजरी भै. नं.-महाराज विराजिए (सब बैछते हैं) निकलती है) राजा-(कर्पूरमंजरी को देखकर) यह कामदेव क.मं.-महाराज प्रणाम करती हूँ। की मूर्तिमान शक्ति है, वा श्रृंगार की साक्षात लता है, वा भै.व.- योग्य वर पाओ ! आओ, यहां बैठो सिमटी हुई चन्द्रमा की चांदनी है, या हीरे की पुतली है, क.मं.- (बैठती है)। वा बसन्तऋतु की मूल कला है, जिस को इसने एक भै. न.. अब तक रानी नहीं आई? बार देखा उसके चित्तरूपी देश में कामदेव का sos कर्पूर मंजरी ४३७